जानिए आपकी कुंडली में गुरु ग्रह 12 भाव में क्या फल देते है ?
गुरु
विद्या, शुभ कार्य , यज्ञ इत्यादि कर्म , धर्म , ब्राम्हण , देवता, पुत्र , मित्र , सोना , पालकी का कारक गुरु है | गुरु गृह न्याय प्रियता , अच्छे गुण व बाते और सुख का धौतक भी है | जन्म पत्रिका में गुरु के शुभ फल से जातक गुणवान , विद्यावान , सयंमी , पुत्रवान संतोषी एव धार्मिक होता है | गुरु के अशुभ फल से जातक विद्याहीन , मुर्ख , निसंतान , बिना सोचे समजे कार्य करने वाला एव असंतुष्ट अनुभव करता है | गुरु जिस भाव में हो उस स्थान की हानि करता है | किन्तु जिस भाव पर उसकी दृष्टी हो उसे शुभत्व देता है और उस भाव की वृद्धि करता है | अकेला गुरु द्वितीय , पंचम सप्तम एव एकादश भावो में हानिकारक होता है एव उन भावो के शुभ फलो को नष्ट करता है |
1. प्रथम स्थान में गुरु के प्रभाव
स्वभाव
लग्न में स्थित गुरु के प्रभाव से जातक ज्ञानी, अधिकार युक्त , राजमान्य , विशाल ह्रदय वाला और दयालु होता है | जातक धार्मिक, सत्यवादी , विद्वान् , आशावादी , सदैव प्रसन्न रहने वाला विश्वसनीय और आत्मविश्वास से भरा होता है | जातक सर्व गुण संपन्न होता है | स्वभाव में अनेक विशेषताए पाई जाती है | वह गंभीर होता है , सोच समजकर नपी तुली बाते करता है |
व्यवसाय
जन्म पत्रिका में स्थित गुरु कारक होता है एव लग्नस्थ गुरु के प्रभाव से जातक न्यायाधीश , विद्या अध्यन संबंधी कार्य, शासकीय अधिकारी या उच्च शिक्षा प्राप्त अधिकारी होता है | प्राय: व्यवसाय या कर्मक्षेत्र में जातक को असाधारन सफलता प्राप्त होती है |
पूर्ण दृष्टी
लग्नस्थ गुरु की पूर्ण दृष्टी सप्तम स्थान पर होती है जिसके प्रभाव से उत्तम पत्नी सुख प्राप्त होता है | जातक की पत्नी सुंदर,सुशिल और गंभीर होती है और परिवार के साथ मधुर संबंध रखती है | जातक को व्यवसाय में सफलता प्राप्त होती है | पंचम स्थान में दृष्टी के प्रभाव से जातक पढने – लिखने में सम्पूर्ण एव सफल होता है | लग्नस्थ गुरु की नवम स्थान पर भी पूर्ण दृष्टी होती है जिससे जातक धर्मात्मा एव भाग्यशाली होता है |
मित्र/ शत्रु राशी
मित्र , स्व व उच्च राशी में गुरु स्थित होने पर जातक का बचपन हर प्रकार से उत्तम होता है | वह धनि और यशस्वी होता है | जातक दीर्घायु और स्वास्थ्य होता है | उसे जीवन के सभी सुखो की प्राप्ति समय समय पर होती है | शत्रु या नीच राशी में स्थित गुरु के प्रभाव से जातक दुर्बल होता है | ज्ञान एव सुख से वंंचित रहता है | परन्तु गुरु के दृष्टिगत भावो को शुभता अवश्य मिलती है | शत्रू या नीच राशी में गुरु होने से जातक अल्पज्ञानि , धन की न्यनूता और निम्न कोटी के लोगों के साथ व्यवसाय करता है |
भाव विशेष
लग्नस्थ के गुरु के प्रभाव से उसके समुदाय में जातक प्रमुख स्थान प्राप्त करता है | जातक को समजदार जीवनसाथी की प्राप्ति होती है | जातक के लग्न में गुरु की उपस्थिति अति शुभ कारक मानी जाती है | जातक उंचा , सुंदर , कांतिमान और चौड़ी भौहों वाला होता है | जातक के केश जल्दी ही श्वेत हो जाते है | लग्न में गुरु होने से जातक की लंबी आयु होती है | वह विद्वान् , समजदार , तेजस्वी , विनीत , पुत्रवान एव ज्योतिष संबंधी विषयो का ज्ञाता होता है |
2. द्वितीय भाव में गुरु का प्रभाव
स्वभाव
द्वितीय भाव में स्थित गुरू जातक को धनी, सहृदय, प्रसिद्ध और यशस्वी बनाता है। जातक विद्वान और बुद्धिमान होता है। जातक को कई अधिकार प्राप्त होते है। वह राजमान्य होता है। जातक विद्वत्ता पूर्ण बातें करने के कारण प्रसिद्ध होता है। जातक ईश्वर की आराधना करता है ।
पूर्ण दृष्टि
द्वितीय भाव स्थित गुरु की पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है। जातक दीर्घायु होता है एवं अपने कर्म स्थल में असाधारण सफलता प्राप्त कर लेता है । द्वितीय स्थान पर गुरु की पंचम पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक ऋणी होता है । गुरु की नवम पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर होने से जातक कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है ।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित गुरु अत्यंत शुभ होता है एवं जातक को धनी बनाता है। उसे परिवार का सुख मिलता है। परिवार में जातक की स्थिति महत्वपूर्ण होती है। शत्रु व नीच राशि में स्थित होने पर जातक का परिवार में विरोध होता है। जातक की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है।
भाव विशेष
दूसरे भाव में गुरु की उपस्थिति से जातक को ससुराल पक्ष से विशेष लाभ रहता है। पत्नी का भी कार्य क्षेत्र एवं आय का स्त्रोत अवश्य रहता है । द्वितीय स्थान पर गुरू होने से जातक मधुरभाषी, अच्छे कार्य करने वाला पुण्यात्मा, सदाचारी, भाग्यवान एवं पुत्र युक्त होता है। द्वितीयस्थ गुरु के प्रभाव से जातक को धन की तंगी हमेशा रहती है ।
3. तृतीय भाव में गुरु का प्रभाव
स्वभाव
तृतीय भाव में स्थित गुरु के प्रभाव से जातक शास्त्रज्ञ, लेखक, योगी, आस्तिक कंजूस, कृतघ्न, विनम्र और जितेन्द्रिय होता है। जातक की रूचि ज्ञान अर्जित करने में होती है। जातक पठन-पाठन का शौक रखता है जातक स्त्रीप्रिय होता है ।
पूर्ण दृष्टि
तृतीयस्थ गुरू की पूर्ण सप्तम दृष्टि नवम भाव पर होती है, जिसके प्रभाव से जातक अपने विषय में प्रभावशाली ज्ञान रखने वाला, संतोषी, धार्मिक, संतान और धन से सुखी, भाग्यशाली और दानी होता है । जातक ईश्वर, धर्म एवं धार्मिक कार्यों में विशेष आस्था रखता है । तृतीयस्थ गुरू की पूर्ण पंचम दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक की पत्नी सुशील एवं आज्ञाकारी होती है। तृतीयस्थ गुरु की नवम पूर्ण दृष्टि आय स्थान अर्थात् एकादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक की आय स्थिर आय होती हैं।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र, स्व या उच्च राशि में जातक धनी होता है। अपने पराक्रम से सभी सुख अर्जित करता है। मित्र राशि के गुरू के प्रभाव से जातक को भाईयों का सुख प्राप्त होता है। शत्रु व नीच राशि का गुरू होने पर जातक डरपोक होता है एवं भाइयों से कष्ट प्राप्त करता है।
भाव विशेष
तृतीयस्थ गुरू मुख्यतः पराक्रम एवं भाईयों से संबंध रखता है। शुभ युति और दृष्टि में उच्च शिक्षा तथा भाईयों से अच्छे संबंध होते हे। प्रायः ऐसे जातक को संयुक्त परिवार में रहना पसंद होता है। जातक का बौद्धिक क्षेत्रों में विशेष प्रभाव होता है। अतः जातक बौद्धिक कार्यों जैसे लेखक, साहित्यकार, आलोचक अथवा समीक्षक होता है। शिक्षण कार्य में जातक को विशेष सफलता प्राप्त होती हैं। जातक कम भोजन खाता है। भ्रमण प्रिय होता है एवं नित्य देश-विदेशों में भ्रमण व प्रवास करता है।
4 . चतुर्थ भाव में गुरू का प्रभाव
स्वभाव
चतुर्थ भाव में स्थित गुरु के प्रभाव से जातक कुशल वक्ता, विनम्र, पढने में रूचि रखने वाला, माता-पिता का भक्त, यशस्वी और व्यवहार कुशल होता है ।
पूर्ण दृष्टि
और व्यवहार कुशल चतुर्थ स्थान से गुरु की सप्तम पूर्ण दृष्टि दसवें स्थान पर पडती है जिसके प्रभाव से जातक को पिता का सुख प्राप्त होता है। जातक राजमान्य, प्रतिष्ठित और धनी होता है। गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि द्वादश स्थान पर होने के प्रभाव से जातक के खर्च नियंत्रित होते है। परंतु धार्मिक कार्यो में यह अतिव्यय करता है। गुरु की पंचम पूर्ण दृष्टि अष्टम स्थान पर होती हैं जिससे जातक दीर्घायु होता है।
मित्र / शत्रु राशि.
स्व, मित्र व उच्च राशि में चतुर्थस्थ बृहस्पति को एक अमूल्य मणि की संज्ञा दी गई है। जातक सर्व सुख प्राप्त करता है जैसे जमीन, भवन और वाहन । जातक को मित्रों से लाभ होता है। उसे उच्च पद और अधिकार मिलते है। शत्रु व नीच राशि में गुरू के होने से ठीक विपरित प्रभाव मिलते है। माता का सुख व अन्य सुखों में कमी आती है।
भाव विशेष
जातक को जन्म स्थान में ही कार्य करने पर अधिक लाभ होता है । जातक के पिता उच्च पदाधिकारी अथवा समाज में मान्य व्यक्ति होते है । अपनी समस्याओं का समाधान अंतर्निहित शक्तियों से स्वयं करता है। जातक साधनहीन होने पर भी उच्च शिक्षा आसानी से प्राप्त कर उसका उपभोग करता है। माता व पिता से विशेष स्नेह व लगाव होता है। जातक को जमीन, जायदाद और वाहन की प्राप्ति होती है। शासन में उच्च पद प्राप्त करता है। जातक को माता-पिता से धन, मकान भी प्राप्त होते है ।
5 . पंचम भाव में गुरु का प्रभाव
स्वभाव
पंचम भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक स्वभाव से आस्तिक, यशस्वी साहसी नीतिकुशल और कुल में श्रेष्ठ होता है।
पूर्ण दृष्टि
पंचमस्थ गुरू की सप्तम पुर्ण दृष्टि एकादश भाव पर पड़ती है जिससे जातक की आय स्थिर होती है। गुरु की पंचम पूर्ण दृष्टि भाग्य स्थान पर होने से जातक भाग्यशाली एवं धर्मात्मा होता है। गुरु की नवम पूर्ण दृष्टि लग्न पर होने से जातक समझदार, विद्वान, स्वाभिमानी एवं स्पष्ट वक्ता भी होता है ।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र, स्व और उच्च राशि में जातक की शिक्षा आसानी से होती है। ऐसे जातक भाषा और दर्शन शास्त्र में विद्वान होते हैं। जातक पुत्रवान होता है । शत्रु राशि में गुरु स्थित होने से जातक को प्रायः संतान विलंब से होती हैं। ऐसे जातक की शिक्षा में भी रूकावटें आती है। या शिक्षा पूर्ण नहीं हो पाती है।
भाव विशेष
पंचम भाव में गुरू होने से जातक उच्च कोटि का सलाहकार और राजमान्य होता है। जातक को पुत्र की प्राप्ति विलंब से होती है। पंचमस्थ गुरु अकेला होने पर पेट विकार उत्पन्न करता है तथा रोग और कब्ज होने की संभावना होती है। जातक अपने कुल में श्रेष्ठ होता है एवं पूरे कुल का ध्यान रखता है। जातक ज्योतिष व नीति में विशेष रूचि रखता है। वह बुद्धिवान कला प्रेमी और स्नेही स्वभाव का होता है ।
6 . छठे भाव में गुरू का प्रभाव
स्वभाव
छठे भाव में स्थित गुरु के प्रभाव से जातक मधुरभाषी, विवेकी, प्रसिद्ध, विद्वान, उदार, जग में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला और धैर्यवान होता है। जातक की रूचि सत्कार्यो में होती है। जातक शांत किंतु मानसिक तनाव से युक्त होता है। जातक स्वभाव से थोड़ा आलसी होता है।
पूर्ण दृष्टि
छठे स्थान में स्थित गुरु की सप्तम पूर्ण दृष्टि बारहवें भाव पर होती है जिसके प्रभाव से जातक के नेत्र में कष्ट होने की संभावना होती है। द्वादश भाव पर गुरू की दृष्टि से जातक के नियत्रित खर्चे होते हैं किंतु जातक धर्म संबंधी कार्यों में व्यय अधिक करता है। छठे स्थान में स्थित गुरु की पंचम पूर्ण दृष्टि दशम स्थान पर होने से जातक अपने कार्यक्षेत्र में प्रसिद्धि, ऐश्वर्य एवं सफलता प्राप्त करता हैं गुरु की नवम पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव में होने से जातक को पिता की संपत्ति प्राप्त होती है। जातक मृदुभाषी होता है। जातक को ससुराल पक्ष से विशेष लाभ होता है।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र, स्व एवं उच्च राशि में गुरु स्थित होने पर जातक शत्रुओं को पराजित करने वाला, निरोगी एवं दीर्घायु होता है। छठे भाव में शत्रु व नीच राशि में गुरु स्थित होने से अशुभ फलदायक होता है। जातक शत्रुओं से दुखी, कर्ज से घिरा और आर्थिक रूप से दुःखी रहता है ।
भाव विशेष
स्वास्थ्य खराब होने पर जातक की अच्छी सेवा सुश्रुषा होती है। जातक को राजनीतिज्ञों से लाभ होता हैं। छठा गुरू जातक को प्रबल शत्रु हंता बनाता है। जातक के शत्रु स्वतः ही जातक से पराजित होते है। जातक ऋण मुक्त होता है। जातक का स्वास्थ्य सामान्यतः स्थिर होता है। छठे गुरू के प्रभाव से जातक के मामा को कष्ट होता हैं । जातक विभिन्न प्रकार की सवारियों का शौकीन होता है। दुर्बल गुरू के प्रभाव से जातक प्रायः अस्वस्थ रहता है और मानसिक पीड़ा का शिकार होता हैं |
7 . सातवें भाव में गुरू का प्रभाव
स्वभाव
सातवें भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक दयालु, बुद्धिमान, धार्मिक और चंचल स्वभाव का होता है। जातक नम्र कांतिवान, वाचाल, स्पष्टवक्ता, भावुक और सुखी होता है। जातक भाग्यशाली होता है।
पूर्ण दृष्टि
सप्तम गुरू की दृष्टि लग्न भाव पर होती हैं, जिसके प्रभाव से जातक धर्मात्मा, यशस्वी, धनी, कुलीन, सुंदर और सुशील एवं शांत स्वभाव का होता है । सप्तम भाव में स्थित की नवम पूर्ण दृष्टि तृतीय स्थान पर होने से जातक को भाईयों का सहयोग प्राप्त होता है एवं जातक स्वयं के पराक्रम से सफलता अर्जित करता है। गुरु की पंचम पूर्ण दृष्टि एकादश भाव में होती है जिससे जातक की स्थिर आय होती है।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र, स्व और उच्च राशि में गुरू का प्रभाव अति शुभकारी होता है। जातक का विवाह सर्वगुण सम्पन्न कन्या से होता है एवं जातक का विवाह के बाद भाग्योदय होता है। शत्रु व नीच राशि का गुरू होने पर जातक शत्रुओं से पीड़ित एवं दुखी होता है। उसे पत्नी सुख में न्यूनता प्राप्त होती है।
भाव विशेष
गुरु की सप्तम भाव में स्थित वैवाहिक संबंधों के लिए बहुत सुखद नहीं मानी जाती है। जातक के लिए साझेदारी में विशेष लाभ प्राप्त नहीं होता है। सप्तमस्थ गुरु के प्रभाव से जातक की स्थिति धन एवं यश में उत्तम होती हैं। जातक उच्चकोटि का व्यवसायी होता है। दूषित गुरु से जातक पर स्त्री में आसक्ति रखता है।
8 . अष्ठम भाव में गुरु का प्रभाव
स्वभाव
जन्म पत्रिका में अष्टम भाव में स्थित गुरु के प्रभाव से जातक लोभी, ईर्ष्यालू एवं उदासीन होता है। जातक अपनी मनमर्जी से कार्य करता है एवं यही स्वतंत्रता उसके कष्टों का कारण होती है। जातक अस्थिर बुद्धि वाला होता है। उसे उचित अनुचित का भेद नहीं होता है।
पूर्ण दृष्टि
अष्टम गुरू की द्वितीय भाव पर पूर्ण सप्तम दृष्टि के प्रभाव से जातक अपने पिता द्वारा अर्जित धन का नाश करता हैं। जातक स्वयं अर्जित धन से सुख प्राप्त करता है। अष्टम गुरू की पंचम दृष्टि द्वादश भाव पर होने से प्रायः जातक धार्मिक व परमार्थिक कर्मों में अधिक व्यय करता है। अष्टम गुरु की नवम दृष्टि चतुर्थ भाव पर होने से जातक को भूमि, भवन एवं वाहन का सुख मिलता है।
मित्र / शत्रु राशि
स्व, मित्र व उच्च राशि में गुरू के प्रभाव से जातक को धन लाभ होता है। जातक स्वस्थ, परिश्रमी, पढ़ा-लिखा और वेदों के प्रति रूचि रखता है। मित्र राशि में गुरु होने से स्त्री के द्वारा धन प्राप्ति होती है । शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक दुःखी, झगड़ालू एवं क्रोधी होता है । प्रायः परिवार के रहस्य का बाहर पता चलता है। शत्रु राशि में गुरू स्थिति से जातक को परिवार में उचित मान नहीं मिलता है |
भाव विशेष
अष्टम भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक गूढ़ विद्याओं का ज्ञाता होता हैं। जातक की आयु लंबी होती है। प्रायः जातक शतायु होते है । जातक के शत्रु भी जातक की प्रशंसा करते है । जातक रक्त दोषों, हृदय रोग, मानसिक तनाव से ग्रस्त होता है अष्टम गुरु से जातक को अपने मित्रों की संगति प्रिय होती है एवं वह अपने मित्रों पर अधिक धन व्यय करता है |
9 . नवम भाव में गुरू का प्रभाव
स्वभाव
नवम भाव में स्थिम गुरु के प्रभाव से जातक भाग्यशाली, कुलीन, स्वतंत्र विचारों वाला, धर्मात्मा, दानी, यशस्वी और परोपकारी होता है। वह तीर्थ यात्राएं करने वाला, भक्त, दार्शनिक, प्रतिभाशाली और विद्वान होता है। जातक पराक्रमी और राजमान्य होता है। जातक की ज्योतिष में विशेष रूचि होती है ।
पूर्ण दृष्टि
नवमस्थ बृहस्पति की सप्तम पूर्ण दृष्टि तीसरे भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक पराक्रमी और दूर देशों की यात्रा करता है। जातक भाई को सुख देने वाला नवमस्थ गुरु की पंचम पूर्ण दृष्टि लग्न पर होती है जिसके प्रभाव से जातक सुंदर, समझदार एवं विवेकी होता है। नवमस्थ गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि पंचम भाव पर होने से जातक पुत्रवान व शिक्षावान होता है। जातक की संतान उत्तम होती है।
मित्र/शत्रु राशि
नवमस्थ गुरू उच्च, स्व एवं मित्र राशियों में फलदायक होता है। जातक उच्च चरित्र वाला और सद्विचारों से युक्त होता हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त कर समाज में आदरणीय स्थिति अर्जित करता है। जातक शिक्षा से संबद्ध कार्यों में सफल होता है । शत्रु व नीच राशि का गुरू होने से जातक का भाग्य उसका साथ नहीं देता जातक के कार्य में रूकावटें आती है व अधिक परिश्रम के बाद कार्य पूरे होते है। जातक स्वभाव से डरपोक होता है ।
भाव विशेष
जातक की जन्म पत्रिका में नवम स्थान का गुरु सर्वोत्तम माना गया है। जातक जीवन के किसी भी व्यसन में कठिनाई होने पर ईश्वरीय मदद मिलती हैं। उच्चकोटि की सफलता, उच्च पद और यश अर्जित करता है। सामाजिक स्तर पर विख्यात होता है। जातक का चरित्र उत्तम होता है। वह सबकी सहायता करने की भावना रखता है। जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। तथा उच्चाधिकारी बनकर अथवा शिक्षा से संबंधित व्यवसाय प्राप्त करता है। जातक मुद्रक, प्रकाशक या संपादक भी हो सकता है।
10 . दशम भाव में गुरु का प्रभाव
स्वभाव
दशम भाव में गुरु के प्रभाव से जातक यशस्वी, भक्तिभाव से पूर्ण, वेदान्ती, भाग्यशाली, साहसी, सच्चरित्र, सत्यवादी, शत्रुओं से रहित, स्वतंत्र विचारों वाला और धनी होता है । जातक किसी धार्मिक संस्था का प्रधान, महत्वाकांक्षी और प्रसिद्ध पुण्यात्मा होता है। जातक का रहन-सहन उत्तम का होता है।
पूर्ण दृष्टि
दशम भाव में गुरू की सप्तम पूर्ण दृष्टि चतुर्थ स्थान पर होती है, जिसके प्रभाव से जातक को भूमि, भवन और वाहन का सुख प्राप्त होता है। जातक को माता-पिता से विशेष प्रेम, सुख, सहयोग एवं धन मिलता है । जातक माता-पिता का आदर्श पुत्र होता है। दशम भाव स्थित गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव में होने से जातक को पैतृक संपत्ति की प्राप्ति होती है। ससुराल पक्ष से भी विशेष लाभ होता है। दशम भाव स्थित गुरु की नवम पूर्ण दृष्टि छठे भाव पर होने से जातक कर्जमुक्त व शत्रुनाशक है।
मित्र / शत्रु राशि
उच्च, स्व एवं मित्र राशियों मे गुरु के शुभ प्रभावों में वृद्धि होती है । जातक को धन एवं अधिकारों की प्राप्ति होती हैं। शत्रु व नीच राशि में गुरु के होने से जातक को पिता के सुख में कमी होती है। व्यवसाय में जातक को कठिनाईयों अस्थिरता की संभावना होती हैं।
भाव विशेष
दशमस्थ गुरू के प्रभाव से जातक जन सहयोग से उच्च पद प्राप्त करता है। जातक को उत्तम कोटि का मकान और वाहन सुख प्राप्त होता है। दशमस्थ गुरू उच्च राशि में होने से माता-पिता से प्राप्त सुखों को श्रेष्ठता प्रदान करता है । दशमस्थ गुरू व्यवसाय में अपार सफलता देता है। जातक को प्रचुर धन प्राप्त होता है। राजनीति में भी अति शुभ फलदायी है। जातक को मान-सम्मान प्राप्त होता है। किसी भी क्षेत्र में किये गये व्यवसाय के लिए दशमस्थ गुरु शुभ प्रभाव देता है।
11 . एकादश भाव में गुरु का प्रभाव
स्वभाव
एकादश भाव में स्थित प्रभाव से गुरु के जातक वैभवशाली, प्रभावशाली, उच्च स्तरीय मित्रों से युक्त, दानी और विख्यात होता है। जातक यशस्वी, विद्वान, सत्यवादी, स्त्री से प्रभावित, सदव्ययी और पराक्रमी होता है ।
पूर्ण दृष्टि
ग्यारहवें स्थान में स्थित गुरू की सप्तम पूर्ण दृष्टि पंचम स्थान पर होती है जिसके प्रभाव से जातक धनी, भाग्यशाली, पढ़ा-लिखा, विद्वान और उत्तम पुत्रों को प्राप्त करता है। एकादश स्थान में स्थित गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ती है जिससे जातक पराक्रमी एवं भाईयों से सहयोग प्राप्त करता है। एकादश भाव में स्थित गुरु की नवम पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को स्त्री का सुख प्राप्त होता है ।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित गुरू जातक को समस्त सुखों को प्राप्त कराता है। जातक शत्रुओं पर विजय, कई स्त्रोतो से आय, उत्तम पुत्र, मान-सम्मान इत्यादि प्राप्त होते है। शत्रु व नीच राशि में स्थित गुरू के प्रभाव से फल प्रतिकूल होते है। पुत्रों से विवाद होता है । व्यवसाय में हानि, बदनामी और गरीबी से कष्ट उठाने पड़ते है ।
भाव विशेष
एकादश भाव में के गुरु शुभ प्रभाव से जातक को पत्नी से लाभ एवं धन प्राप्त होता है। जातक का आय का स्त्रोत अनियमित रहता है। जातक को व्यवसाय में अद्भूत सफलता प्राप्त होती है । आमदनी का स्त्रोत नियमित रहता है। किसी स्त्री की जन्म पत्रिका में एकादश भाव के गुरू होने से उसका विवाह उच्च श्रेणी के अधिकारी अथवा व्यापारी से होता है। विवाह के बाद उसका पति उच्च पद एवम् सफलता प्राप्त करता है ।
12 . द्वादश भाव में गुरु का प्रभाव
स्वभाव
द्वादश भाव में गुरु के प्रभाव से जातक बिना सोचे समझे अत्यधिक व्यय करता है। जातक का व्यय प्रायः शुभ कार्यो और परोपकार में होता है। जातक स्वभाव से अकर्मण्य, योगाभ्यासी, शास्त्रज्ञ लोभी, मितभाषी, प्रवासी और सुखी चित्त वाला होता है।
पूर्ण दृष्टि
द्वादश भाव में स्थित गुरू की सप्तम पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक ऋणी व शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला होता है। द्वादशस्थ गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है जिससे जातक को माता व भूमि, भवन, वाहन इत्यादि का सुख प्राप्त होता है। द्वादशस्थ गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है। जिससे जातक दीर्घायु होता है ।
मित्र / शत्रु राशि
उच्च, मित्र या स्वराशि का होने पर जातक को अपार संपदा मिलती है, परंतु स्वयं जातक के परिवारजनों से विवाद होते है। शत्रु व नीच राशि में स्थित होने से जातक पाप कर्म करता है। जातक को शत्रुओं द्वारा हानि होती है। जातक अपनी लापरवाही से हानि उठानी पड़ती है ।
भाव विशेष
द्वादश गुरू के प्रभाव से जातक प्रबल देश भक्त होता है। जातक को गुप्त संगठनों का लाभ होता है। जातक अहंकारी होता हैं जातक की शत्रुओं पर विजय होती है। जातक को ज्ञान या शिक्षा का उचित लाभ नहीं मिलता है। जातक कई चिन्ताओं से ग्रसित, संचित धन नष्ट करने वाला, क्रोधी और धूर्त होता है। द्वादश गुरु के प्रभाव से जातक आलसी होता है। जातक निंरतर यात्रा करता रहता है ।
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