मकरसंक्रांति के बारे में जानिये |
पुण्या: षोडश नाड्यस्तु परा: पूर्वास्तु संक्रमात्।
त्रिंशत्कर्काटके पूर्वाश्चत्वारिंशत्परा मृगे ॥
अस्तादूर्ध्वं तु मकरे रात्रौ संक्रमणं रवेः।
तदोत्तरदिनं पुण्यं मध्याह्नात्प्राक् प्रकीर्तितम् ॥
* संक्रांति *
पूर्वं परित्यज्य यदा ग्रहाणां राशिं परं प्रत्ययनं स कालः।
संक्रांतिवाच्योऽयमतिप्रशस्त: स्नाने च दाने च रवेर्विशेषात् ॥
मकरसंक्रांत पौष मास में जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है, तब मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है और सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है इसीलिए इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार है, जिसे संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है|
मकरसंक्रांति यह पर्व जनवरी माह की 14 तारीख को मनाया जाता है, क्युकी सूर्य 14 जनवरी के दिन मकर राशी में प्रवेश करता है| मकर राशी में सूर्य 12/13 फेब्रुवारी तक होता है, 14 – 12/13 फेब्रुवारी सूर्य 00 से 30 अंश तक होता है|
हिन्दू धर्म में माह को दो पक्षों में बांटा गया है | ‘कृष्ण पक्ष’ और ‘शुक्ल पक्ष’| ठीक इसी तरह से वर्ष को भी दो अयनों में बांटा गया है | ‘उत्तरायण’ और ‘दक्षिणायण’ | यदि दोनों को मिला दिया जाए तो एक वर्ष पूर्ण हो जाता है। मकर संक्रांति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ हो जाती है इसलिए मकर संक्रांति को”उत्तरायण” भी कहते हैं।
हिन्दू धर्म के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर उनके सिरों को मंदार पर्वत में दबाकर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। इसलिए इस मकर संक्रांति के दिन को बुराइयों और नकारात्मकता को समाप्त करने का दिन भी मानते हैं।
इस त्योहार को अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में, तो आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और केरला में केवल संक्रांति के नाम से मनाया जाता है जबकि बिहार और उत्तरप्रदेश में इस त्योहार को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है।
उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों को विशेष महत्व दिया जाता है।
क्यों मनाते हैं मकर संक्रांति |यह माना जाता है कि भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं और शनि मकर राशि के स्वामी है|इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है|पवित्र गंगा नदी का भी इसी दिन धरती पर अवतरण हुआ था, इसलिए भी मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता हैं|
महाभारत में पितामाह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था। इसका कारण यह था कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएं या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती है या पुनर्जन्म के चक्र से उन आत्माओं को छुटकारा मिल जाता है। जबकि दक्षिणायण में देह छोड़ने पर आत्मा को बहुत काल तक अंधकार का सामना करना पड़ सकता है।
स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए कहा है कि उत्तरायण के 6 मास के शुभ काल में जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता है और ऐसे लोग सीधे ही ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत जब सूर्य दक्षिणायण होता है और पृथ्वी अंधकार मय होती है तो इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुन: जन्म लेना पड़ता है।
अनेक स्थानों पर इस त्योहार पर पतंग उड़ाने की परंपरा प्रचलित है। लोग दिन भर अपनी छतों पर पतंग उड़ाकर हर्षोउल्लास के साथ इस उत्सव का मजा लेते हैं। विशेष रूप से पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।
पतंग उड़ाने के पीछे धार्मिक कारण यह है कि श्रीराम ने भी पतंग उड़ाई थी। गुजरात व सौराष्ट्र में मकर संक्रांति पर कई दिनों का अवकाश रहता है और यहां इस दिन को भारत के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में अधिक हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
संक्रांति और सेहत : पौष मास की सर्दी के कारण हमारा शरीर कई तरह की बीमारियों से ग्रसित हो जाता है, जिसका हमें पता ही नहीं चलता और इस मौसम में त्वचा भी रुखी हो जाती है। इसलिए जब सूर्य उत्तरायण होता है, तब इसकी किरणें हमारे शरीर के लिए औषधि का काम करती है और पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आता है, जिससे अनेक शारीरिक रोग जो हम जानते ही नहीं हैं वे स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं।
मकरसंक्रांति का उत्तसव सभी भारत वासी योने आनंद से मनाना चाहीये |
आप सभी को मकरसंक्रांती की”हार्दिक शुभका