जानिए आपकी कुंडली मे शनि ग्रह 12 भाव में क्या फल देते है ?

शनि

जन साधारण में सामान्यत: यह माना जातक है की शनि एक क्रूर ग्रह होता है तथा केवल हानि कारक की होता है | वास्तव में ऐसा नही है | शनि एक महत्वपूर्ण ग्रह है | यह जातक को संघर्ष , धैर्य एव सतत लगन रखना सिखाता है | यह किसी भी कार्य की योजना बनाने में एव जीवन को आध्यात्मिक प्रभाव देने और मनुष्य को कड़े परिश्रम का पाठ पढ़ाने के लिए उत्तरदायी होता है | जातक को विघ्न , बाधाओ और कष्टों से लड़ना सिखाता है | यह जातक को चरमोत्कर्ष तक पहुंचाता है |

1. प्रथम स्थान में शनि का प्रभाव

स्वभाव

प्रथम स्थान में शनि के प्रभाव से जातक में कई राजसी गुण होते है | जातक के स्वभाव में नियमितता होती है | वह अपने प्रयासों से उच्च स्थान प्राप्त करता है | जातक की योजनाए दूरगामी होती है | प्राय: किसी कार्य अथवा व्यवसाय में प्रथम प्रदर्शक होता है |

स्वरूप

लग्न में शनि की स्थिति से जातक का रंग सांवला या गहरा होता है |

व्यवसाय

जातक प्राय: नौकरी करता है और उच्चाधिकारियों के सहयोग से उसे उन्नति प्राप्त होती है | सेवा निवृत्ति के बाद अवस्था सर्वोतम होती है | वृधावस्था सुखी व्यतीत होती है | लग्न में स्थित शनि सप्तम पूर्ण दृष्टी सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक का पत्नी से वैचारिक मतभेद होते है | शनि की दृष्टी शुभ नहीं होती जिसके प्रभाव से पत्नी से अनबन बनी रहती है | शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टी तृतीय स्थान पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक के छोटे भाई-बहन नहीं होते है | जातक भयभीत होता रहता है | शनि की दशम पूर्ण दृष्टी दशम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को कर्म क्षेत्र में रूकावटे कठिनाईया आती है | जातक को कड़ी मेहनत के बाद सफलता प्राप्त होती है |

मित्र / शत्रु राशी

मित्र,स्व या उच्च राशी में स्थित शनि के प्रभाव से जातक को उच्च पद प्राप्त होता है जातक संस्थाओ में उच्चाधिकारी होता है | पराक्रमी एव साहसी होता है | शत्रु व नीच राशी का शनि होने पर जातक झूट बोलने वाला और स्वार्थी होता है | वह किसी की सहायता न करने वाला होता है | प्राय: ऐसे जातक की मानसिकता अच्छी नहीं होती है | वह झगडालू और गरीब होता है | शत्रु व नीच राशी में शनि व्यवसाय में कष्ट , पुत्र और धन की कमी देता है | दूषित शनि के प्रभाव से जातक कुरूप,मलिन,आलसी और अभिमानी होता है |

भाव विशेष

जातक स्वय तो कठोर परिश्रमी होता है | परन्तु प्राय: दुसरो के कामो में गलतिया निकालने वाला होता है | जातक थोडा हट्टी सस्वभाव का होता है | लग्नस्थ शनि जातक को जिद्दी बनाता है |

2. द्वितीय भाव में शनि का प्रभाव

स्वभाव

द्वितीय भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक स्पष्टवक्ता होता है | जातक अत्यधिक परिश्रम करके कम लाभ उठाने वाला, प्रारंभिक स्तर पर संघर्षंवान किंतु उत्तराध में धनवान होता है | जन्म स्थान से दूर विदेश में जाकर जातक का भाग्योदय होता है | जातक अपने उत्कर्ष के लिए प्रयासों में कोई कमी नाही छोड़ता है | वह महत्वाकांक्षी होता है |

पूर्ण दृष्टी

द्वितीय भाव स्थित शनि की सप्तम पूर्ण दृष्टी अष्ठम स्थान पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को पेट संबंधि कष्ट रहता है | जातक को प्राय: जानवरों से भय रहता है | द्वितीय भाव स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टी चतुर्थ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को सुख में कमी आती है | शनि की दृष्टी जातक के माता के लिए कष्टकारी होती है | द्वितीयस्थ शनि की दशम पूर्ण दृष्टी एकादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक की आय में रूकावटे आती है |

मित्र / शत्रु राशी

मित्र , उच्च या स्वराशी में शनि के होने से जातक धनि होता है | उसे पैतृक संपत्ति प्राप्त होती है | जातक को पुरातन वस्तुओ इत्यादि से लाभ होता है | शत्रु व नीच राशी का शनि होने से जातक पैतृक संपदा से वंचित रहता है | उसके परिवारजनों से असहयोग और तनावपूर्ण संबंध होते है | वह जिद्दी स्वभाव का होता है |

भाव विशेष

द्वितीय भाव में स्थित शनि से जातक को धन प्राप्ति के लिए अत्यंत संघर्ष करना पड़ता है किंतु जीवन के उत्तर्राध में प्रचुर धन प्राप्ति होती है | द्वितीयस्थ शनि से जातक धन खर्च करने के प्रति कंजूस होता है | शनि के द्वितीय स्थान में होने से जातक का अपने कुटुंब से वियोग होता है |

3 . तृतीय भाव में शनि का प्रभाव

स्वभाव

तृतीय भाव में जातक के पराक्रम को दर्शाता है | यहाँ स्थित शनि के प्रभाव से जातक सजग,साहसी एव पराक्रमी होता है | वह चंचल होता है जातक दयालु , तीव्र बुद्धि एव अहंकारी होता है | जातक की दर्शन शास्त्र , विद्या को ग्रहण करने में तथा लेखन में रूचि होती है |

पूर्ण दृष्टी

तृतीय भाव में स्थित शनि की नवम स्थान पर पूर्ण दृष्टी के प्रभाव से जातक को भाग्य में रूकावटे आती रहती है | जातक को सफलता के लिय कड़ा संघर्ष करना पड़ता है | तृतीयस्थ शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टी पंचम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक की विद्या में रूकावटे आती है | जातक की संतान भी देरी से होती है | तृतीयस्थ शनि की दशम पूर्ण दृष्टी द्वादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक का बिना किसी कारन के अधिक व्यय होता है |

मित्र / शत्रु राशी

स्वराशी , मित्र राशी या उच्च राशी में होने पर जातक चतुराई से कार्य करने वाला , जिम्मेदार , तर्क शक्ति से परिपूर्ण , उदार और धनि होता है | भाइयो की सहायता से सफल होता है | यात्राओ से व्यवसाय या कार्यक्षेत्र में लाभ होता है | शत्रु व नीच राशी में शनि की स्थिति अशुभ होती है जातक को भाइयो का सुख व सहायता प्राप्त नहीं होती है | स्त्री राशी में भाइयो से अलगाव शनि के स्थित होने से होता है और आर्थिक कारणों से संबंध ख़राब होते है | संतान देर से प्राप्त होती है |

भाव विशेष

पराक्रम भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक को हर सफलता प्राप्त करने से पहले अनेक बाधाये आती है , परन्तु जातक अपने प्रयासों से उन पर सफलता प्राप्त करता है | उत्तम कोटि की एकाग्रता , प्रबल मानसिक संतुलन और नियमित जीवन जातक की विशेषताए होती है |

4.चतुर्थ भाव में शनि का प्रभाव

स्वभाव

चतुर्थ भाव में स्थित शनि के प्रभाव | से जातक झगड़ालू स्वभाव का होता हैं वह स्वभाव से दुःखी रहता है। प्रायः अपनी माता से वाद-विवाद की स्थिति होती है। जिससे पारिवारिक सुख में न्यूनता आती है |

पूर्ण दृष्टी

दशम स्थान पर दृष्टि के प्रभाव से जातक को पिता के सुख में न्यूनता होती है। राज सुख और यश कड़े संघर्ष के बाद प्राप्त होता है। जातक कार्य करने में थोड़ा आलस करता है। चतुर्थस्थ शनि की षष्ठ भाव पर तृतीय पूर्ण दृष्टि पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक रोग, शत्रु एवं कर्ज से दुःखी रहता है। चतुर्थस्थ शनि की लग्न पर दशम पूर्ण दृष्टि पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक जिद्दी एवं हठी होता है।

मित्र / शत्रु राशि

मित्र, स्व एवं उच्च राशि में शनि स्थित होने पर जातक को शुभ फल प्राप्त होते है। जातक नौकरी से धनार्जन करता है । आयु के उत्तरार्ध में भूमि भवन का सुख प्राप्त करता है। व्यवसाय में प्रारंभ में धीरे-धीरे सफलता होती है। प्रारंभिक संघर्ष के बाद व्यवसाय भी लाभदायक होता है। शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक को जीवन भर किराये के मकान में रहना पड़ता है। पिता से तनावपूर्ण संबंध होते है। वाहन सुख में न्यूनता होती है। जातक का पारिवारिक जीवन दुःखी होता है।

भाव विशेष

शनि के चतुर्थ भाव में स्थित होने पर जातक धनी होता है । उसे वाहन सुख प्राप्त होता है। जीवन मे अंत तक सभी इच्छाएं पूरी होती है जातक कपटी, धूर्त व अपयशी होता है। अशुभ स्थिति में शनि होने से जातक पारिवारिक जीवन में कलह एवं मानसिक तनाव से ग्रस्त होता है। जातक की माता का स्वास्थ्य कमजोर होता है। चतुर्थ भाव में शनि प्रोपर्टी, कानूनी मामलों और खनन में कष्टप्रद परिणाम देता है । भयंकर श्रम करने पर थोड़ी सफलता प्राप्त होती है।

5 . पंचम भाव में शनि का प्रभाव

स्वभाव

पंचम भाव स्थित शनि के प्रभाव से जातक अस्थिर स्वभाव का होता है, वह अव्यवस्थित, व्यर्थ भ्रमण करने वाला, आलसी, उदासीन, मलिन, ईर्ष्याल और चिंतित होता है। पंचम भाव स्थित शनि के प्रभाव से जातक शंकालू स्वभाव का और बढ़चढ़ कर बोलने वाला होता है।

पूर्ण दृष्टि

पंचम भाव स्थित शनि की सप्तम दृष्टि ग्यारहवें स्थान पर होती है जिससे जातक को प्रारंभ में अपनी आय अर्जित करने में कठिनाई होती है। जातक व्यापार में साधारण लाभ प्राप्त करता है। नौकरी में व्यवसाय से अधिक सफलता मिलने की संभावना होती है। पंचमस्थ शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक का पत्नी से वैचारिक मतभेद होता है। शनि की दृष्टि शुभ नहीं होती जिसके प्रभाव से पत्नी से अनबन बनी रहती है। पंचमस्थ शनि की दशम पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिससे जातक को पैतृक संपत्ति की प्राप्ति में कठिनाई होती है। जातक का कुटुंबियों से संबंध तनावपूर्ण रहता है।

मित्र / शत्रु राशि

पंचम स्थान में स्वराशि, मित्र राशि तथा उच्च राशि में स्थित शनि के प्रभाव से जातक की शिक्षा पूरी होती है। वह बुद्धिमान, पढ़ा लिखा एवं दार्शनिक होता है जातक की उत्तम संतान होती है। शत्रु व नीच राशि में शनि होने से जातक को अपने प्रयासों से लगातार परिश्रम करने पर अनेक बाधाओं के बाद थोड़ी सफलता प्राप्त होती है। जातक को संतान सुख में ब्यूनता होती है। प्रायः उसे प्रेम संबंधों में निराशा का सामना करना पड़ता है।

भाव विशेष

पंचम स्थान में शनि की स्थिति प्रायः अशुभ होती है। जातक को संतान, विद्या में न्यूनता होती है। स्त्री जातक में पंचम शनि किसी बड़ी उम्र के व्यक्ति के प्रति रूझान अथवा प्रेम संबंध बनाता है। जातक की कला में कोई रूचि नहीं होती है जातक अपने काम से मतलब रखने वाला होता है।

6. छठे भाव में शनि का प्रभाव

स्वभाव

छठे भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक साहसी, शत्रु को पराजित करने वाला, जिद्दी, दुर्व्यसनी और उद्योगी होता है। वह दयालु, धनी, चतुर और प्रसिद्ध होता है। जातक वाद-विवाद में निपुण एवं न्याय क्षेत्र में अधिकार रखता है। जातक के शत्रु उससे डरते है ।

पूर्ण दृष्टि

छठे भाव में स्थित शनि की पूर्ण दृष्टि द्वादश के प्रभाव से जातक मितव्ययी होता है। अपने प्रयासों से संघर्ष कर जीवन में सफलता प्राप्त करता है। जातक धैर्यवान होता है। छठे स्थान पर स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को पेट संबंधी कष्ट रहता है। जातक को प्रायः जानवरों से भय रहता है। छठे स्थान पर स्थित शनि की दशम पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ती है। जिसके प्रभाव से जातक के छोटे भाई-बहन नहीं होते है। जातक भयभीत होता रहता है।

मित्र / शत्रु राशि

स्व, मित्र व उच्च राशि में उत्तम स्थिति का शनि होने घर जातक को राजनीति में सफलता प्राप्त होती है। जातक शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है जातक निरोगी काया, पुत्र सुख, धन और वैभव प्राप्त होता है। शत्रु व नीच राशि स्थान में होने पर जातक के परिवार में कलह होती है। वह अहंकारी, रोगी, कर्ज से घिरा हुआ होता है। जातक को संतान सुख में न्यूनता होती है जातक का जीवन निराशा से घिरा हुआ होता है |

भाव विशेष

छटवे स्थान में शनि की उपस्थिति प्रायः शुभकारी होती है। कई तरह के लाभ शत्रु पर विजय, निरोगी, धन, चतुराई, राजनैतिक सफलता इत्यादि जातक को प्राप्त होते है संतान उत्तम कोटि की होती है। नौकरों का सुख होता है। जातक को स्वादिष्ट भोजन के प्रति असीम लगाव होता है। जातक छोटी-छोटी बातों में मीन-मेख निकालने वाला होता है। जातक को श्वास या कंठ में रोग हो सकते है ।

7. सातवे भाव में शनि का प्रभाव

स्वभाव

सप्तम भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक महत्वाकांक्षी, व्यवहार कुशल व्यवसायी होता है। जातक आत्मसम्मान के प्रति विशेष सजग होता है। जातक भ्रमण का इच्छुक विदेशों से लाभ प्राप्त करने वाला ओर स्वार्थी होता है।

 पूर्ण दृष्टि

सप्तम भाव में स्थित शनि की पूर्ण सप्तम दृष्टि लग्न पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक आत्मकेंद्रित हो जाता है। अपनी प्रगति के लिए वह दूसरों को भी हानि पहुँचाने की भावना रखता है। जातक प्रायः अपने जन्म स्थान से दूर नौकरी करता है। जातक को क्रोध भी आता है। सप्तम भाव में स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को भाग्य में रुकावटें आती रहती है। जातक को सफलता के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। सप्तम भाव में स्थित शनि की दशम पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को सुख में कमी आती है। शनि की दृष्टि जातक की माता के लिए कष्टकारी होती है।

मित्र / शत्रु राशि

मित्र, स्व या उच्च राशि में स्थित शनि के प्रभाव से जातक को विवाह के बाद जीवन में सफलता प्राप्त होती है। जातक की इच्छा शक्ति प्रबल होती है । शत्रु व नीच राशि का शनि होने पर जातक विशाल हृदय वाला और खर्चीला होता है । उसे शीघ्रता से क्रोध आता है । प्रायः अहंकारी होता है जातक के आत्म सम्मान में कमी होती है।

भाव विशेष

सप्तम स्थान स्त्री का कारक है इसलिए सप्तम भाव में स्थित शनि से जातक स्त्री भक्त होता है। शनि की इस स्थान पर स्थिति जातक को कामी और विलासी बनाती है। जातक आलस करता है और नीच प्रकार का कर्म करता है।

8 .अष्टम भाव में शनि का प्रभाव

स्वभाव

अष्टम भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक रोगी, निर्धन, अधिक परिश्रमी, उदासीन, कपटी, वाचाल, डरपोक, धूर्त और दुःखी होता है। वह स्त्रियों से संबंध रखने वाला होता है। जातक चतुर, शत्रुओं से व्यथित और गुप्त कार्य करने वाला होता है। प्रायः जातक नौकरी या व्यवसाय के कारण प्रवासी जीवन व्यतीत करता है ।

पूर्ण दृष्टि

अष्टम भाव स्थित शनि की सप्तम पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को आमदनी में बचत में कष्ट होते है । व्यवसाय होने पर बाधाएँ आती है। सर्विस होने पर प्रमोशन देर से होता है। धन संग्रह भी नहीं हो पाता है। पारिवारिक सुख में न्यूनता आती है। जातक की शिक्षा दिक्षा में बाधा आती है। अष्टम भाव स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को पिता के सुख में न्यूनता होती है। राज सुख और यश कड़े संघर्ष के बाद प्राप्त होता है। जातक कार्य करने में थोड़ा आलस करता है। अष्टम भाव स्थित शनि की दशम पूर्ण दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है। जिसके प्रभाव से जातक की विद्या में रूकावटें आती है जातक की संतान भी देरी से होती है।

मित्र / शत्रु राशि

अष्टम भाव स्थित शनि निराशाजनक फल ही देता है परंतु मित्र राशि में जातक दीर्घायु अवश्य होता है जातक को व्यवसाय, धन, संतान, पक्ष से संतोष प्राप्त नहीं होता है। अशुभ प्रभाव में होने पर स्वयं जातक के माता-पिता उसका तिरस्कार करते है।

भाव विशेष

अष्टम भाव में शनि की स्थिति शुभकारी नहीं होती है। जातक दीर्घायु अवश्यक होता है वृद्धावस्था में शांतिपूर्वक मृत्यु होती है। जीवन का पूर्वाद्ध सुखी होने पर उत्तरार्ध में कष्ट और पूर्वाद्ध दुःखी होने पर उत्तरार्ध में सुख प्राप्त होता है। दूषित शनि के प्रभाव से जातक को कारावास भी हो सकता है। जातक को कुछ गुप्त रोग हो सकते है। जातक का स्थूल शरीर होता हैं जातक डरपोक भी होता है। जातक श्वास रोग, वायु रोग एवं गुप्त रोगों से पीड़ीत एवं दीर्घायु होता है।

9. नवम भाव में शनि का प्रभाव

स्वभाव

नवम भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक स्वभाव से हठी, अभिमानी, बलवान, शत्रुनाशक, साहसी, धूर्त, चतुर, वाचाल एवं तर्क शक्ति से परिपूर्ण होता है। जातक वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला, भावना शून्य और धर्म में अधिक रूचि रखने वाला होता है। जातक का गृहस्थ जीवन प्रायः अत्यंत सुखी नहीं होता है जातक का स्वभाव कठोर होता है।

पूर्ण दृष्टि

शनि की पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक पराक्रम और साहस से परिपूर्ण होता हैं एवं यात्राएं करने का शौकीन होता है जातक को भाईयों के सुख में न्यूनता होती है। वह निम्न कोटि के व्यक्तियों से मित्रता करने वाला तथा दुर्व्यसनी होता है। शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि एकादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को प्रारंभ में अपनी आय अर्जित करने में कठिनाई होती हैं जातक व्यापार में साधारण करता है। नौकरी में व्यवसाय में अधिक सफलता मिलने की संभावना होती है । शनि की दशम पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को रोग, शत्रु एवं कर्ज रहता है।

मित्र / शत्रु राशि

प्रबल शनि के प्रभाव से जातक विजयी, शक्तिवान, वाहन सुख और सुखी संतान युक्त जीवन व्यतीत करता है। शत्रु व नीच राशि में स्थित शनि के प्रभाव से जातक विदेश में कष्ट पाता है। जातक का भाग्य साथ नहीं देता है। जातक को शत्रु से कष्ट होता है जातक क्रूर व्यर्थ की समस्याएं खड़ी करने वाला, स्वार्थी, कामी, रोगी और धोखेबाज होता है।

भाव विशेष

नवम भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक की रूचि ज्योतिष, भूगर्भ विज्ञान, खनिज विज्ञान एवं दर्शन शास्त्र जैसे विषयों में होती है। इससे संबद्ध अध्यापन या व्यवसाय होता है। जातक प्रायः इन्हीं क्षेत्रों से संबंधित व्यवसाय या नौकरी करता है जातक का भाग्योदय विलंब से होता है। अति आत्मविश्वास का शिकार होता है। उच्च स्थान में जातक शिव भगवान का भक्त होता है। शिवजी का मंदिर बनवाता है। वह शिवजी की पूजा, अर्चना ओर यज्ञ करता है। जातक के मन में मोक्ष प्राप्ति की तीव्र आकांक्षा होती है। वृद्धावस्था में वह योग की ओर ध्यान लगाता है।

10. दशम भाव में शनि का प्रभाव

स्वभाव

दशम स्थान में स्थित शनि के प्रभाव से जातक सुखी, प्रवासी, बलवान, साहसी पराक्रमी एवं भावुक होता है। जातक महत्वाकांक्षी एवं सफल व्यवसायी होता है। जातक न्यायप्रिय, भाग्यशाली, उदार और धनवान होता है। जातक में लोगों का नेतृत्व करने का स्वाभाविक गुण होता है।

पूर्ण दृष्टि

दशम भाव में स्थित शनि की पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक को परिवार, माता एवं पत्नी के साथ मतभेदों का सामना करना पड़ता है। प्रारंभिक स्थिति में संघर्ष के बाद जातक को उच्चकोटि की सफलता प्राप्त होती है। दशम भाव स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि द्वादश भाव पर पड़ती है। जिसके प्रभाव से जातक मितव्ययी होता है। अपने प्रयासों से संघर्ष कर जीवन में सफलता प्राप्त करता है। जातक धैर्यवान होता है। दशम भाव स्थित शनि की दशम पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक का पत्नी से वैचारिक मतभेद होता है। शनि की दृष्टि शुभ नहीं होती जिसके प्रभाव से पत्नी से अनबन बनी रहती हैं।

मित्र / शत्रु राशि

शुभ राशि, उच्च और स्वराशि में शनि अति शुभ फलदायक होता है। जातक निरंतर प्रगति करता है। व्यवसाय में उच्चता प्राप्त करता है। नौकरी में उच्चाधिकारी का पद, मान-सम्मान और धन की प्राप्ति होती है। जातक का पिता से लगाव होता है। शनि के शत्रु व नीच भाव में स्थित होने पर जातक को सफलता के बाद अपयश मिलता हैं अच्छे अवसर नहीं प्राप्त होते है। भाग्य साथ नही देता है जातक को आर्थिक कष्ट शोषण, अपमान और परिवार में क्लेश होता है।

भाव विशेष

शनि दशम स्थान में तभी शुभ होगा जब वह योग कारक हो अर्थात् केन्द्र और त्रिकोण का स्वामी हो । शनि के दशम भाव में स्थित होने से जातक प्रबल महत्वाकांक्षी होता है। वह अपने लक्ष्य को किसी तरह से प्राप्त करना चाहता है। दशमस्थ शनि होने पर पिता और पुत्र एक साथ रहकर प्रगति नहीं कर सकते है अर्थात् एक का उत्थान, दूसरे के लिए बाधक होता है। जातक के जीवन में अनायास उत्थान और पतन होता है ।

11 . एकादश भाव में शनि का प्रभाव

स्वभाव

एकादश भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक धनी, विश्वस्त, संपत्तिवान, कम मित्रों वाला, विद्वान और बलवान होता है जातक साहस पराक्रम से परिपूर्ण, सम्मान प्राप्त राजनैतिक स्तर पर माननीय, ‘ दीर्घायु और प्रभावशाली होता है।

पूर्ण दृष्टि

एकादश भाव में स्थित शनि की दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक संतान पक्ष से दुखी, संतान विहीन और निम्न कार्य करने वाला होता हैं जातक की विद्या अध्ययन में बाधाएं आती हैं जातक का व्यवहार निराशवादी होता जाता है। एकादश भाव में स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि लग्न पर पड़ती हैं जिसके प्रभाव से जातक आत्मकेन्द्रित हो जाता है। अपनी प्रगति के लिए वह दूसरों को भी हानि पहुँचाने की भावना रखता है। जातक को क्रोध भी आता है। एकादश भाव में स्थित शनि की दशम पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को पेट संबंधी कष्ट रहता है। जातक को प्रायः जानवरों से भय रहता है।

मित्र / शत्रु राशि

मित्र, स्व और उच्च राशि में शनि जातक को प्रचुर धन, जमीन, भवन, शासन से सम्मान, विद्या, भाग्य और वाहन सुख देता है। जातक को सफलता जीवन के उत्तरार्ध में मिलती है। मित्र कम पर विश्वसनीय होते हैं जातक का तन, मन और मस्तिष्क स्वस्थ होता है। शत्रु व नीच राशि में शनि होने पर जातक की आय में निरंतर बाधाएं आती रहती है। विद्या अध्ययन और संतान पक्ष में भी कष्ट होता है ।

भाव विशेष

एकादश भाव में स्थित शनि विलंब से परन्तु सफलता अवश्य देता है। जातक धनी होता है जातक को अग्नि, बोरी और दुर्घटना का भय होता है। प्रारंभिक जीवन में संघर्ष के बाद जातक के जीवन की सारी इच्छाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। एकादश भाव में स्थित शनि जातक को मेहनती बनाता है जातक शनि से संबंधित वस्तुओं यथा लोहा, तेल, मशीनरी और खनन के व्यवसायों में सफल होता है एवं धनार्जन करता है।

12 . द्वादश भाव में शनि का प्रभाव

स्वभाव

द्वादश भाव में शनि के प्रभाव से जातक का स्वभाव विवेकहीन, अपव्ययी चिंता से ग्रस्त, दुखी, झगड़ालू एवं दुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत करता है। वह एकांत प्रिय, गुप्त विद्याओं में रूचि रखने वाला और प्रेम संबंधो से असंतुष्ट होता है।

पूर्ण दृष्टि

द्वादश भाव में स्थित शनि की पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक अस्वस्थ होता है। उसे शत्रु से कष्ट होता है। धन संग्रह, पारिवारिक सुख एवं भाग्य में बाधाएं आती है। द्वादश भाव में स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को आमदनी में बचत में कष्ट होते हैं व्यवसाय होने पर बाधाएं आती हैं सर्विस होने पर प्रमोशन देरी से होता है। धन संग्रह में बाधा आती हैं द्वादश भाव में स्थित शनि की दशम पूर्ण दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को भाग्य में रुकावटें आती रहती है। जातक को सफलता के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है।

मित्र / शत्रु राशि

मित्र, स्व या उच्च राशि में स्थित शनि के प्रभाव से जातक के व्यय में न्यूनता आती है एवं शत्रुओं का नाश होता है। शत्रु व नीच राशि में स्थित दूषित शनि के प्रभाव से जातक को शत्रुओं से हानि, अपमान, चोरी, दुर्घटना, अग्निकांड इत्यादि से भय होता है।

भाव विशेष

द्वादश भाव में स्थित शनि जातक के सांसारिक पक्ष के लिए अशुभ होता है पर जातक का धार्मिक जीवन सुखद होता है। वह आध्यात्मिक स्तर पर प्रगति अवश्य करता है। द्वादश भाव स्थित शनि के प्रभाव से जातक के शत्रु या तो होते ही नहीं एवं होने पर स्वयं नष्ट हो जाते है। जातक व्यर्थ पैसा खर्च करने वाला एवं व्यसनी होता है। जातक कटुभाषी एवं अविश्वासी होता है। द्वादश भाव मे स्थित शनि जातक की माता के लिए कष्ट कारक होता हैं ।

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