जानिए आपकी कुंडली में राहू ग्रह 12 भाव में क्या फल देते है ?
राहू
भारतीय ज्योतिष में राहू एव केतु को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है | इन्हें छाया ग्रह की संंज्ञा दी गई है , क्योंकि इनका वास्तविक रूप से अस्तित्व नाही होता है | राहू और केतु अनायास एव अप्रत्याशीत परिणाम देते है | राहू और केतु के पत्रिका में जिस ग्रह से संबंध होते है उसके अनुसार प्रभाव देते है | प्राय: राहू शनि के समान और केतु मंगल के समान व्यवहार करता है |
1. प्रथम स्थान में राहू का प्रभाव
स्वभाव
लग्न में स्थित राहू के प्रभाव से जातक दुष्ट एव नीच कर्म करने वाला होता है | लग्नस्थ राहू जातक को स्वार्थी बनाता है | राहू के प्रभाव से जातक मनस्वी भी होता है | राहू के प्रभाव से जातक के व्यक्तितव में निखार आता है | वह आपने आपको अभिव्यक्त करने में सक्षम होता है एव उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली होता है |
स्वास्थ्य
लग्नस्थ राहू जातक को मस्तिष्क रोगी बनाता है | जातक को मानसिक चिंता व नकारात्मक विचार परेशान करते है जातक अंतर्मुखी होता है |
पूर्ण दृष्टी
लग्न में स्थित राहू की पूर्ण दृष्टी सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को पत्नी के सुख में न्यूनता आती है | जातक के पत्नी से वैचारिक मतभेद होते रहते है |
मित्र / शत्रु राशी
मित्र व उच्च राशी में होने पर जातक को शत्रु और रोगों से कष्ट नहीं होता | वह विलासिता प्रिय होता है | जातक को मित्रो की सहायता प्राप्त होती है | शत्रु व नीच राशी में लग्न में स्थित राहू से जातक मस्तक रोगी, दुर्बल एव अतिकामी होता है | शत्रु राशी में राहू की स्थिति होने पर जातक मस्तिष्क में नकारात्मक नीच एव दुष्ट विचारों से परेशान व भयभीत रहता है |
भाव विशेष
लगन्गत राहू का जन्म पत्रिका में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है | जिसके प्रभाव से जातक दुसरो पर दबाव बनाने वाला होता है | जातक को स्वयं के प्रयासों से सफलता प्राप्त होती है | राहू के प्रभाव से जातक स्वार्थी , क्रूर , झूठा , नास्तिक , अनैतिक , रोगी , दुष्ट , धोकेबाज और कमी होता है | जातक को पत्नी तथा संतान सुख में न्यूनता आती है | जातक में विपरीत लिंग के प्रति तीव्र आकर्षण होता है |
2. द्वितीय भाव में राहू का प्रभाव
स्वभाव
द्वितीय भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक को धन प्राप्ति परेशानी से होती है। जातक वाचाल, विरोध करने वाला, शत्रुओं से भयभीत, स्वार्थी, दुखी पर धनी, शासन से धन प्राप्त करने वाला एवं चमड़े की वस्तुओं से लाभ प्राप्त करने वाला होता है ।
पूर्ण दृष्टि
द्वितीय स्थान में स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि अष्टम स्थान पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को पेट संबंधी रोग हो सकते है। जातक का स्थूल शरीर होता है एवं वह अत्यंत कामुक होता हैं।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र व उच्च राशि में होने पर राहु शुभ फलदायक होता है। मित्र राशि में द्वितीय स्थान में राहु से जातक की अल्प धन की बचत होती है । शत्रु व नीच राशि में स्थित राहु उत्तराधिकार से प्राप्त धन में हानि करता है एवं पूर्वजों की संपदा नष्ट होती है। शत्रु राशि पर होने पर जातक घमंडी, अहंकारी, चोरी करने वाला, दुर्भाग्यशाली और निम्न कोटि के लोगों की संगत करने वाला होता है। जातक को अत्यधिक परिश्रम करना पड़ता है।
भाव विशेष
द्वितीय स्थान में स्थित राहु के प्रभाव से जातक क्रोधी एवं कटु शब्द बोलने वाला होता है। जातक के कटु भाषण के कारण कुटुंब से मतभेद व दूरी बनी रहती है। जातक पैतृक संपत्ति अचानक प्राप्त करता है। जातक हमेशा संघर्षशील रहता है एवं कठोर परिश्रम के बाद थोड़े से धन का संग्रह कर पाता है।
3. तृतीय भाव में राहु का प्रभाव
स्वभाव
तृतीय भाव में राहु के प्रभाव से जातक की राजनैतिक और शैक्षणिक कार्यों में रूचि होती है। जातक को भाई अगर हो तो उनसे लाभ नहीं होता है। जातक गर्विला, पराक्रमी, बुद्धिमान, आशावादी और साहसी होता है।
पूर्ण दृष्टि
तृतीय भाव में स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक के भाग्य में रूकावटें आती हैं किंतु अचानक व अप्रत्याशित तरिके से जातक के कार्य पूर्ण होते है। जातक की धर्म के प्रति कम रूचि होती है।
मित्र/शत्रु राशि
मित्र व उच्च राशि में तृतीयस्थ राहु के प्रभाव से जातक को व्यवसाय में लाभ होता है। वह बलवान और दीर्घायु होता है। स्त्री राशियों में राहु बहनों के लिए अशुभ होता है । पुरूष राशि में होने पर दो भाई साथ-साथ नहीं रह सकते है। शत्रु व नीच राशि में राहु के प्रभाव से जातक अपने कार्यक्षेत्र से दुखी रहता है व कष्ट पाता है। जातक स्वंय के लिए परेशानी खड़ी करता है।
भाव विशेष
राहु के तृतीय स्थान पर होने से जातक की आवाज कर्कश होती है। जातक की गलत लोगों से संगति होती है। तृतीस्थ राहु के प्रभाव से जातक राजनीतिज्ञ बनता है। राहु की स्थिति के अनुसार जातक राजनीति करता है। जातक दृढ़ संकल्प वाला होता है। एवं सोचे काम को करता है। जातक अपने जीवन में परिश्रम से ज्यादा अपनी विचारधारा व कार्यशैली की वजह से प्रतिष्ठा व पद प्राप्त करता है। जातक के भाई बहन से जातक को विशेष सहयोग प्राप्त नहीं होता है।
4. चतुर्थ भाव में राहु का प्रभाव
स्वभाव
चतुर्थ भाव मे स्थित राहु के प्रभाव से जातक को अप्रत्याशित रूप से जमीन व जायदाद में लाभ होता है। जातक को असंतोष व दुख रहता हैं जातक स्वभाव से क्रूर होता है एवं छल-कपट में संलग्न रहता है |
पूर्ण दृष्टि
चतुर्थ स्थान पर स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जीवन नीच कार्यों में संलग्न रहता है। जातक के पिता से भी विशेष अच्छे संबंध नहीं रहते है।
मित्र/शत्रु राशि
मित्र व उच्च राशि में जातक को धन लाभ होता है । जातक को फिर भी पूर्ण रूप से सुख प्राप्त नहीं होता है। जातक के अचानक जमीन जायदाद के योग बनते है। शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक की माता के लिए कष्ट होता है। जातक दुखी एवं झगड़ालू स्वभाव का होता है ।
भाव विशेष
चतुर्थस्थ राहु विशेषकर माता के लिए अभीष्ट कारक होता है। चतुर्थ स्थान पर राहु के प्रभाव से माता को कष्ट होता है या जातक के माता से वैचारिक मतभेद व अनबन रहती है या जातक स्वंय की माता से दूर रहता है। जातक को जमीन एवं वाहन अचानक प्राप्त होते है। जातक असंतोषी, दुखी, क्रूर एवं कपटी होता है। जातक बहुत कम बोलता है।
5. पंचम भाव में राहु का प्रभाव
स्वभाव
पंचम भाव में राहु के प्रभाव से जातक प्रसिद्ध किंतु अहंकारी होता है । प्रायः व्यवसाय / विद्या के लिए उचित विषय का चयन नहीं कर पाता । जातक पढाई मे बहुत प्रयास के बाद सफलता अर्जित करता है |
पूर्ण दृष्टि
पंचम भाव में स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि एकादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को आय में अचानक बहुत बड़ा लाभ होता है। कई बार जातक को क्षणों में हानि भी होती हैं ।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र व उच्च राशि स्थित राहु के प्रभाव से जातक शास्त्रप्रिय होता है। जातक कई कार्यों को करता है एवं उसका भाग्य प्रबल होता है । शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक का पुत्र कुरूप और रोगी होता है। प्रायः जातक को उसके पुत्रों से कष्ट उठाना पड़ता है। शत्रु राशि में राहु के प्रभाव से अवैध संबंध होने की संभावना होती है ।
भाव विशेष
स्त्री जातक की जन्म पत्रिका में पंचमस्थ राहु गर्भाशय संबंधी रोग, पुत्र प्राप्ति में विलंब और मानसिक शांति की न्यूनता का कारक होता है। प्रायः जातक पेट संबंधी रोग, निराशा और चिंतायुक्त होता है। पंचमस्थ राहु के प्रभाव से जातक की जुएँ, सट्टे या शेयर बाजार में विशेष रूचि होती है।
6. छठवें भाव में राहु का प्रभाव
स्वभाव
छठे भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक साहसी, दीर्घायु, शत्रुओं पर विजय पाने वाला, विश्वसनीय और ईमानदार होता है। जातक के पास अपार शारीरिक और मानसिक शक्तियां होती है। जातक असाधारण मानसिक और शारीरिक श्रम करने में सक्षम होता है।
पूर्ण दृष्टि
छठे स्थान में स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि द्वादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक लोगों को ठग कर धन अर्जित करता है। ऐसा जातक धूर्त भी होता है।
मित्र/शत्रु राशि
मित्र व उच्च राशि में षष्ठ भाव में स्थित राहु जातक बड़े-बड़े कार्य करने वाला बनाता है। जातक प्रबल शत्रुहंता होता है। अर्थात जातक के शत्रु होते नहीं है और अगर होते है तो हमेशा जातक से परास्त होते है । जातक संघर्षो में विजय प्राप्त करता है। शत्रु एवं नीच राशिगत राहु के प्रभाव से जातक का नाना व मामा पक्ष दुखी रहते है। जातक कर्जयुक्त होता है ।
भाव विशेष
छठवें स्थान में राहु की स्थिति शुभ फल जैसे-धन, सम्मान, सुख एवं शत्रु की पराजय कराती है। छठवें राहु के प्रभाव में जातक बलवान, निरोगी एवं पराक्रमी होता है। जातक की पीठ में दर्द, दांत, अल्सर और घावों से कष्ट होता है।
7. सप्तम भाव में राहु का प्रभाव
स्वभाव
सप्तम भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक अपनी इच्छानुरूप कार्य करने वाला, गर्वीला, स्वतन्त्र, चतुर, विपरित लिंग के प्रति आकर्षित और उनसे लाभ उठाने वाला होता है। जातक का जीवन साथी चतुर होता है। पूर्ण दृष्टि सप्तमस्थ राहु की पूर्ण दृष्टि लग्न पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक क्रूर एवं स्वार्थी होता है। जातक की सोच नकारात्मक होती है।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र व उच्च में स्थित राहु सप्तम भाव में स्थित होने से दांपत्य जीवन ठीक रहता है। मित्र राशि का होने पर जातक को यात्राओं में सफलता प्राप्त होती है उसे विवाद और निंदनीय कार्यों से सफलता मिलती है। जातक जल्दी क्रोधित होने वाला होता है। शत्रु व नीच राशि का होने पर वैवाहिक जीवन कष्टकारी होता है, यात्रा में हानि उठानी पड़ती है एवं पारिवारिक सुख नष्ट होता है । शत्रु राशि में सप्तमस्थ राहु स्त्री को पीड़ा देता है। जातक को भी स्त्री के कारण पीड़ा होती है।
8 . अष्टम भाव में राहु का प्रभाव
स्वभाव
अष्टम भाव में राहु की स्थिति अशुभ होती है विशेषकर मानसिक अवस्था के लिए हानिकारक होता है। जातक का पुष्ट शरीर होता है किंतु उसे गुप्त रोग या पेट संबंधी रोग होते है।
पूर्ण दृष्टि
अष्टमस्थ राहु की पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक स्वयं के कुटुंब द्वारा उपेक्षित होता हैं जातक को मृत लोगों से उत्तराधिकार में धन, भवन प्राप्त होता है।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र व उच्च राशि में राहु में अष्टम भाव में होने से जातक धैर्यवान, धनी और समझदार होता है। शत्रु व नीच राशि में अष्टमस्थ राहु कष्टप्रद जीवन एव जातक को गलत साधनों से धन अर्जन की इच्छा कराता है जिसके परिणामस्वरूप जातक को कारावास की संभावना होती है।
भाव विशेष
अष्टम भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक को नाम और धन अर्जित करने में परेशानी होती है। जीवन में जातक निंदा का पात्र बनता है । प्रायः जातक को जन्मस्थान से दूर रहना पड़ता है। अष्टम राहु जातक को क्रोधी व कामी बनाता है। जातक बहुत ज्यादा एवं व्यर्थ की बातें बोलता है । जातक मूर्खतापूर्ण आचरण भी करता रहता है। जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आते है।
9 . नवम भाव में राहु का प्रभाव
स्वभाव
नवम भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक की दुष्ट बुद्धि होती है । जातक निश्चित उद्देश्य लेकर कार्य करने वाला होता है। जातक यात्राएं करने वाला एवं विदेशों में सफल होता है।
पूर्ण दृष्टि
नवम भाव में स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ती है जो कि पराक्रम व भाईयों से संबंधित है। तृतीय भाव पर राहु की दृष्टि से जातक के भाईयों से मध्यम संबंध होते है जातक हालांकि पराक्रमी होता है।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र व उच्च राशि में स्थित राहु जातक को भाग्यवान और धनी बनाता है। जातक की धर्म के प्रति थोड़ी आस्था होती है। जातक का भाईयों से अलगाव होता है। राहु के नवम भाव में शत्रु व नीच राशि में स्थित होने पर विपरित प्रभाव मिलते है । जातक दुखी, नास्तिक एवं व्यर्थ भ्रमण करने वाला होता है।
भाव विशेष
नवम भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक की दुष्ट बुद्धि होती है। जातक को दूसरों को सताने में व दूसरों की परेशानी देखकर खुशी होती हैं ऐसे जातक का भाग्योदय विशेष स्थिति में ही हो पाता है।
10. दशम भाव में राहु का प्रभाव
स्वभाव
दशम भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक भयहीन एवं सोच समझकर खर्च करने वाला होता है। वह स्वभाव से चिंतित, कार्य में समर्थ एवं चतुर होता है। जातक संघर्ष प्रिय होता है। जातक कार्य पूर्ण होने तक शांत नहीं बैठता है ।
पूर्ण दृष्टि
दशमस्थ राहु की पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को माता के सुख में कमी होती है। जातक को भूमि, भवन, वाहन, इत्यादि भी थोड़े से ही प्राप्त होते है।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र व उच्च राशि का होने पर जातक राजमान्य, और भूमि भवन का सुख प्राप्त करता है एवं शुभ फल प्राप्त होते है। शत्रु राशि का होने पर राह के दुष्प्रभाव से जातक चरित्रहीन, झगड़ालू, कामी, बेईमान, वाचान और उसे काम का उचित परिणाम प्राप्त नहीं होता है । प्रायः नौकरी या व्यवसाय में परिवर्तन होता है। वह अस्थिर, भाग्यहीन, माता और पिता के लिए कष्ट कारक होता है।
भाव विशेष
दशमस्थ राहु विशेष व शुभ स्थिति में राजयोग कारक होता है। दशम राहु के प्रभाव से जातक की कार्य शैली अव्यवस्थित एवं अनियमित रहती है। दसवें भाव पर स्थित राहु जातक को आलसी बनाता है। जातक क्लेश कारक होता है।
11. एकादश भाव में राहु का प्रभाव
स्वभाव
एकादश भाव राहु के लिए शुभ स्थान है इसके प्रभाव से जातक संपत्ति युक्त, प्रसिद्ध और व्यवसायी होता हैं |
पूर्ण दृष्टि
एकादश भाव स्थित राहु की पूर्ण पंचम दृष्टि भाव पर पड़ती है। जिसके प्रभाव से जातक को संतान से कष्ट प्राप्त होता है एवं जातक विद्या संपूर्ण नहीं हो पाती है।
मित्र/शत्रु राशि
मित्र व उच्च राशि का होने पर जातक को यश, वैभव एवं धन की प्राप्ति होती है। जातक को मित्रों और अन्य लोगों से लाभ होता है । जातक को विश्वास पात्र नौकर प्राप्त होते है । शत्रु व नीच राशि में स्थित राहु से व्यवसाय और कारखानों में कष्ट, कर्ज, आलस, झगड़ालू, कामी, काले रंग का होता है। वह परिवार और पुत्र से कष्ट पाता है।
भाव विशेष
एकादश भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक दूसरों के धन पर दृष्टि रखने वाला होता है। जातक अन्य लोगों की सलाह से लाभ प्राप्त करने वाला होता है। जातक अति महत्वाकांक्षी एवं अतिव्ययी होता है। एकादश भाव में स्थित राहु जातक को अचानक बहुत बड़ा लाभ मिलता है। एकादश स्थान पर राहु जातक की कार्य सिद्धी करने वाला होता है एवं जातक व्यवसाय करता है।
12. द्वादश भाव में राहु का प्रभाव
स्वभाव
द्वादश भाव में स्थित राहु जातक के स्वास्थ्य के लिए अशुभ, प्रारंभिक अवस्था में बीमार और दुखी पर बाद में सफलता प्राप्त करता है । जातक धोखेबाज, अपव्ययी, संबंधियों से झगड़ा करने वाला होता है ।
पूर्ण दृष्टि
द्वादश भाव स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक अपने शत्रुओं पर हावी रहता है। जातक अचानक बड़े कर्जे में डूब जाता है।
मित्र / शत्रु राशि
द्वादश भाव स्थित मित्र व उच्च राशि में राहु के होने से जातक • विद्याओं विशेाकर तंत्र शास्त्र में सफलता मिलती है एवं जातक गुप्त को गुप्त स्त्रोंतो से आय और अप्रत्याशित लाभ होता है। शत्रु व नीच राशि का होने पर अशुभ प्रभाव में जातक की संपत्ति का नाश, प्रेम संबंधों में हानि होती है। जातक व्यर्थ कार्य करता रहता है ।
भाव विशेष
जातक अपना समय और ऊर्जा व्यर्थ नष्ट करता है। जातक प्रायः यात्रा करने वाला होता है। जातक विवेकहीन, मंद बुद्धि एवं मूर्ख होता है। द्वादश राहु के प्रभाव से जातक व्यर्थ चिंता करता है। जातक किसी के अधीन होता है। जातक अत्यंत परिश्रमी होता है ।
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