नवग्रह का दोष के लिए अचूक उपाय | अशुभ ग्रहोका परिणाम कम करे ये उपाय करे | Navagrah ke upay

नवग्रहों के शीघ्र फल देने वाले उपाय

सूर्य

सूर्य

भगवान सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा छ वर्ष की होती है सूर्य की प्रसन्नता और शांति के लिए। नित्य सूर्यार्घ्य देना चाहिए और हरिवंशपुराण का श्रवण करना चाहिए। माणिक्य धारण करना चाहिए तथा गेहूं सवत्सा गाय, गुड़, तांबा, सोना एवं लाल वस्त्र ब्राह्मण दान करना चाहिए। सूर्य शांति के वैदिक मंत्र ॐ घृणि सूर्याय नमः’ है। य बीज मंत्र ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं स सूर्याय नमः। इनमें से किसी एकका श्रद्धानुसार एक निश्चित संख्या में नित्य जप करना चाहिए। जप की कुल संख्या 7000 तथा समय प्रातःकाल है।

चंद्रमा

चंद्र देव की प्रतिकूलता से मानसिक कष्ट तथा श्वास आदि के रोग होते हैं। इनकी प्रसन्नता के लिए सोमवार का व्रत शिवोपासना, शिव स्तुति तथा मोती धारण करना चाहिए चावल कपूर सफेद वस्त्र चादी, शंख, सफेद चंदन, श्वेत पुष्प, चीनी, वृषभ, दही और मोती ब्राह्मण को दान करना चाहिए। इनकी उपासना के लिए वैदिक मंत्र इम देवा असपन्न सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्येष्ठाय महतं जानराज्यायन्द्रस्यन्द्रियाय। इसममुष्य पुत्रममुष्यं पुत्रमस्यै विश वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना राजा पौराणिक मंत्र- दधिशखतुषाराम क्षीरोदार्णवसम्भवम् । नमामि शशिन सोम शम्नार्मुकुटभूषणम्। बीज मंत्र- ॐ श्री श्री श्री सः चन्द्राय नमः, तथा सामान्य मंत्र- ॐ सौ सोमाय नमः, है। इनमें से किसी भी मंत्र का श्रद्धानुसार नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। कुल जप-संख्या 11000 तथा समय संध्याकाल है।

मंगल

मंगल ग्रह की पूजा की पुराणों में बड़ी महिमा बतायी गयी है। यह प्रसन्न होकर इच्छा पूर्ण करते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार मंगल देवता के नामों का पाठ करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। यह अशुभ ग्रह माने जाते हैं। यदि ये वक्र गति से न चलें तो एक-एक राशि को तीन-तीन पक्ष में भोगते हुए बारह राशियों को डेढ वर्ष में पार करते हैं। मंगल ग्रह की शांति के लिए शिव उपासना तथा (मूंगा) प्रवाल रत्न धारण करने का विधान है। दान में तांबा. सोना, गेहूं लाल वस्त्र, गुड़, लाल चंदन, लाल पुष्प, केशर, कस्तूरी लाल वृषभ, मसूर की दाल तथा भूमि देना चाहिए। मंगलवार को व्रत करना चाहिए तथा हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। इनकी महादशा सात वर्षी तक रहती है। यह मेष तथा वृश्चिक राशि के स्वामी है। इनकी शांति के लिए वैदिक मंत्र- ‘ॐ अग्निमूर्धा दिव ककुत्पति पृथिव्या अयम् अपा रेता सि जिन्वति ।। पौराणिक मंत्र- घरणीगर्भसम्भूत विद्युत्कान्तिसमप्रभम् । कुमार शक्तिहस्तं गारकाय नमः मंगल प्रणमाम्यहम्।।’ बीज मंत्र ॐ का क्री क्रौं सः भौमाय नमः तथा सामान्य मंत्र- ॐ अ से किसी श्रद्धानुसार नित्य एक निश्चित संख्या में जप चाहिए। कुल जप-संख्या 10000 तथा समय प्रातः आठ बजे है। विशेष परिस्थितिया में विद्वान ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिए।

बुध

नवग्रह शांति मंत्र
नवग्रह शांति मंत्र

बुध ग्रह के अधिदेवता और प्रत्यधिदेवता भगवान् विष्णु हैं। बुध मिथुन और कन्या राशि के स्वामी स्वामी हैं। इनकी महादशा 17 वर्ष की होती है। बुध ग्रह की शांति के लिए प्रत्येक अमावस्या को व्रत करना चाहिए तथा पन्ना धारण करना चाहिए। ब्राह्मण को हाथी दांत, हरा वस्त्र, मूंगा, पन्ना, सुवर्ण, कपूर शस्त्र, फल, षट्स भोजन तथा घृत का दान करना चाहिए। नव ग्रह मण्डल इनकी पूजा ईशान कोण में की जाती है। इनका प्रतीक वाण है तथा रंग हरा है। इनके जप का वैदिक मंत्र- ‘ॐ उद्बुद्ध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्ठापूर्ते ससृजेथामयं च । अस्मिन्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत। पौराणिक मंत्र- ‘ॐ ब्रां श्रीं ह्रीं सः बुधाय नमः तथा सामान्य मंत्र ॐ बुं बुधाय नम है। इनमें से किसी का भी नित्य एक निश्चित संख्या में जम करना चाहिए। जप की कुल संख्या 9000 तथा समय 5 घड़ी दिन है। विशेष परिस्थिति में विद्वान् ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिए।

बृहस्पति

बृहस्पति धनु और मीन राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा सोलह वर्ष की होती है। इनकी शांति के लिए प्रत्येक अमावस्या को तथा बृहस्पति को व्रत करना चाहिए और पीला पुखराज धारण करना चाहिए। ब्राह्मण को दान में पीला वस्त्र, सोना, हल्दी, घृत, पीला अन्न, पुखराज, अश्व पुस्तक, मधु, लवण, शर्करा, भूमि तथा छत्र देना चाहिए। इनकी शांति के लिए वैदिक मंत्र- ‘ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद धुमद्विभाति ऋतुमज्जनेषु यदद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविण धेहि चित्रम्।। पौराणिक मंत्र- देवनाच ऋषीणां च गुरु कांचनसंनिभम् बुद्धिभूत त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ।’ बीज मंत्र- ॐ ग्रा श्री ग्रौं सः गुरवे नमः। तथा सामान्य मंत्र- ‘ॐ बृं बृहस्पतये नमः हैं। इनमें किसी एक का श्रद्धानुसार नित्य निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। जप का समय संध्याकाल तथा जप संख्या 19000 हैं।

शुक्र

मत्स्य पुराण के अनुसार शुक्र ग्रह का वर्ण श्वेत है। शुक्र वृष और तुला राशि के स्वामी है तथा इनकी महादशा 20 वर्ष की होती है। शुक्र ग्रह की शांति के लिए गोपूजा करनी चाहिए तथा हीरा धारण करना चाहिए। चांदी, सोना, चावल, घी, सफेद वस्त्र, सफेद अश्व, दही, चीनी, गौ तथा भूमि ब्राह्मण को दान देना चाहिए। नवग्रह मण्डल में शुक्र का प्रतीक पूर्व में श्वेत पंचकोण है। शुक्र की प्रतिकूल दशा में इनकी अनुकूलता और प्रसन्नता हेतु वैदिक मंत्र- ‘ॐ अन्नात्परिसुतो रस ब्रह्मणा व्यपिवत् क्षत्र पयः सोमं प्रजापति ऋतेन सत्यनिन्द्रियं विपान शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदपयोऽमृतं मधु।। पौराणिक मंत्र- हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् सर्वशास्त्रप्रवक्तारम् भार्गव प्रणमाम्यहम्।। बीज मंत्र- ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः, तथा सामान्य मंत्र- ‘ॐ शुं शुक्राय नमः’ है। इनमें से किसी एक का नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। कुल जप संख्या 16000 तथा जप का समय सूर्योदय काल है। विशेष अवस्था में विद्वान् ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिए।

शनि

शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधि देवता यम है। इनका वर्ण कृष्ण, वाहन गीध तथा रथ लोहे का बना हुआ है। यह एक-एक राशि में तीस-तीस महीने रहते हैं। यह मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है। इनकी शांति के लिए मृत्युंजय जप, नीलम-धारण तथा ब्राह्मण को तिल, उड़द, भैंस,
लोहा, तेल, काला वस्त्र, नीलम, काली गौ जूता, कस्तूरी और सुवर्ण का दान देनाचाहिए। इनके जप का वैदिक मंत्र- ‘ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये श योरभि सवन्तु नः। पौराणिक मंत्र- ॐ प्रां प्री प्रौ सः शनैश्चयराय नमः । तथा सामान्य मंत्र- ॐ शं शनैश्चराय नमः है इनमें से किसी एक का श्रद्धानुसार नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। जप का समय सध्याकाल तथा कुल संखा 23000 होनी चाहिए।

राहु

मत्स्यपुराण के अनुसार राहु का रथ अन्धकार रूप है। इसे कवच आदि से सजाए हुए काले रंग के आठ घोडे खींचते हैं। राहु के अधिदेवता काल तथा प्रत्यधि देवता सूर्य है। नव ग्रह मण्डल में इसका प्रतीक वायव्य कोण में काला ध्वज है। राहु की महादशा 18 वर्ष की होती है। अपवाद स्वरूप कुछ परिस्थितियों को छोड़कर यह क्लेशकारी ही सिद्ध होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि कुण्डली में राहु की स्थिति प्रतिकूल या अशुभ है तो यह अनेक प्रकार की शारीरिक व्याधियां उत्पन्न करता है। कार्य सिद्धि बाधा उत्पन्न करने वाला तथा दुर्घटनाओं का यह जनक माना जाता है। राहु की शांति के लिए मृत्युंजय जप तथा फिरोजा धारण करना श्रेयस्कर है। इसके लिए अभ्रक, लोहा, तिल, नीला वस्त्र, ताम्रपात्र, सप्तधान्य, उड़द, गोमेद, तेल, कम्बल, घोडा तथा खड़ग का दान करना चाहिए। इसके जप का वैदिक मंत्र- ‘ॐ कया निश्चित्र आ भुवदूती सदावृध सखा कयाशश्चिष्ठया वृता।।. पौराणिक मंत्र- अर्धकाय महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम्। सिहिकागर्भसम्भूतं तं राहु प्रणमाम्यहम्॥ बीज मंत्र- ‘ॐ श्री श्री श्री सः राहवे नमः तथा सामान्य मंत्र- ‘ॐ रां राहवे नमः है इसमें से एक का निश्चित संख्या में नित्य जप करना चाहिए। जप का समय रात्रि तथा कुल संख्या 18000 है।

केतु

यद्यपि राहु-केतु का मूल शरीर एक था और वह दानव जाति का था परंतु ग्रहों में परिगणित होने के पश्चात् उनका पुनर्जन्म मानकर उनके नये गोत्र घोषित किए गये है। इस आधार पर राहु पैठीनस-गोत्र तथा केतु जैमिनी-गोत्र का सदस्य माना गया केतु का वर्ण धूम्र है। कहीं-कहीं इसका कपोत वाहन भी मिलता है। केतु की महादशा सात वर्ष की होती है। इसके अधिदेवता चित्र केतु तथा प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा है। यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में केतु अशुभ स्थान रहता है तो अनिष्टकारी हो जाता है। अनिष्टकारी केतु का प्रभाव व्यक्ति को रोगी बना देता है। इसकी प्रतिकूलता से दाद, खाज तथा कुष्ठ जैसे रोग होते हैं। कंतु की प्रसन्नता हेतु दान की जाने वाली वस्तुएं इस प्रकार बतायी गई हैं। वैदूर्य रत्न तेल व तिल कम्बलमर्पयेत् शस्त्रं मृगमद नीलपुष्प केतु ग्रहाय है। वैदूर्य नामक रत्न, तेल, काला तिल, कम्बल, शस्त्र कस्तूरी तथा नीले रंग का पुष्प दान करने से केतु ग्रह साधक का कल्याण करता है। इसके लिए लहसुनिया रत्न धारण करने तथा मृत्युंजय जप का भी विधान है। नव ग्रह मण्डल में इसका प्रतीक वायव्य कोण में काला ध्वज है। केतु की शांति के लिए वैदिक मंत्र- ॐ केतु कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। सुमुषदिरजायथाः ।।’ पौराणिक मंत्र- ॐ सा स्त्रीं सौ सः केतवे नमः । तथा सामान्य मंत्र ॐ के केतवे नमः’ है। इसमें किसी एक का नित्य श्रद्धापूर्व निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। जप का समय रात्रि तथा कुल जप संख्या 17000 है। हवन के लिए कुशा आसन का उपयोग करना चाहिए। विशेष परिस्थिति में विद्वान ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिए।

नवग्रह मंत्र

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