जानिए आपके कुंडली मे चन्द्रमा देवता 12 भाव में क्या फल देते है |
लग्न में चन्द्रमा का प्रभाव | 1 प्रथम भाव में चन्द्रमा का प्रभाव
स्वभाव
चन्द्रमा के लग्न में स्थित होने से रसिक, भावुक एव सरल स्वभाव का होता है | जातक विपरीत लिंग के प्रति जल्दी आकर्षित होता है | नयी नयी वस्तुओ की खोज करने वाला , अन्वेषक,दूरस्थ स्थानों की यात्रा करने का इच्छुक,चंचल और अभिमानी होता है | जातक के स्वभाव में कोमलता होती है, एव संगीत एव काव्य का प्रेमी भी होता है | जातक को क्रोध आता है पर वह जल्दी ही शांत भी हो जाता है |
स्वरुप
चन्द्रमा के लग्न में स्थित होने से जातक का व्यक्तित्व आकर्षक एव प्रभावशाली होता है | उसका गौर वर्ण होता है एव शरीर प्राय : स्थूल होता है | जातक का कान्तिवान स्वरुप होता है |
स्वास्थ्य
चन्द्रमा के प्रक्रति में शितलता होती है | अत : जातक के लग्न में स्थित चन्द्रमा सर्दी,जुकाम एव साइनस संबधी बीमारियों का कारण होता है | चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को ह्रदय एव उच्च रक्तचाप से संबंधित रोग हो सकते है |
व्यसाय
लग्न में स्थित चन्द्रमा से प्रभावित व्यक्ति गायन,वादन,लेखन ( काव्य ) इत्यादि क्षेत्रो में सफल होते है | सफ़ेद वस्तुओ का व्यवसाय जैसे दूध,दही,संगमरमर,इत्यादि उनके लिए सर्वश्रेष्ठ होता है | जातक को कपडे इत्यादि के व्यवसाय में भी सफलता प्राप्त होती है |
पूर्ण दृष्टी
चन्द्रमा के लग्न में होने से उसकी पूर्ण दृष्टी सप्तम भाव पर पड़ती है ,जो शुभकारी होती है | जातक का जीवन साथी गोरा एव सुंदर होता है | चन्द्रमा की दाम्पत्य स्थान पर दृष्टी से जातक का जीवन साथी भी कला के प्रति रुझान रखता है |
मित्र/शत्रु राशी
चन्द्रमा लग्न में स्वराशी,मित्र या उच्च राशी का होने पर शुभ फलदायक होता है और उच्च कोटि का राजयोग बनाता है | उच्च का चन्द्रमा जातक को आसमान की उचाइयो पर ले जाता है | स्वराशी में चन्द्रमा के शुभ फलो में वृद्धि होती है | जातक आपने क्षेत्रो में पारंगत होता है तथा यश व धन इत्यादि अर्जित करता है | चन्द्रमा नीच राशी में जातक को संकुचित मनोवृति वाला बना देता है | जातक अत्यंत निर्बल और भावुक होता है | ख्याली पुलाव काफी बनाता रहता है | शत्रु राशी के चन्द्रमा से जातक प्राय: अपने प्रयासों में असफल होता है |
भाव विशेष
लग्न में स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक चन्द्रमा के सौम्य गुणों से प्रभावित होता है | जातक भावुक,कला प्रेमी,गायन,वादन के प्रति सहज आकर्षण रखने वाला , सुखी और ऐश्वर्यशाली होता है | तथा कोमल भावनाओ की अधिकता होती है | नयी खोजे,नये नियम,नयी योजनाए इत्यादि बनाने में लगा रहता है | जातक सोचता आधिक है |
2 द्वितीय भाव में चन्द्रमा का प्रभाव
स्वभाव
चन्द्रमा के द्वितीय भाव में होने से जातक बुद्धिमान,उदार,सबसे मित्रता रखने वाला और मधुरभाषी होता है | वह शांत स्वभाव का और मिलनसार भी होता है |
पूर्ण दृष्टी
द्वितीय भाव में चन्द्रमा हो तो उसकी पूर्ण दृष्टी अष्टम भाव अर्थात मृत्यु स्थान पर होने के कारण जातक को जल घात का भय रहता है इसलिए जल वाले स्थानों में जातक को विशेषतौर से सावधान रहना चाहिए |
मित्र/शत्रु राशी
स्व,उच्च या मित्र राशी में द्वितीय स्थान में चन्द्रमा होना अति शुभकारी है | जातक के पास धन संपत्ति एकत्र होती है | ऐसा जातक बहुत अच्छा गायक या कवी होता है अथवा इन क्षेत्रो में रूचि रखता है | शत्रु व नीच राशी में द्वितीय भाव में चन्द्रमा होने से विपरीत फल प्राप्त होते है | तथा स्त्रियों से धन हानि होने की संभावना होती है | जातक की आखो में कष्ट तथा उसे श्वास संबंधित रोग हो सकते है |
द्वितीय भाव विशेष
द्वितीय भाव में स्थित चन्द्रमा जातक को धनी एव मधुरभाषी बनाता है | जातक को परिवार का सुख प्राप्त होता है | उसकी समाज में उत्तम स्थिति होती है | जातक परदेश मे निवास करता है | द्वितीय भाव के चन्द्रमा से जातक सहनशील,शांतिप्रिय एव भाग्यवान होता है | दोषी या ग्रसित चन्द्रमा होने पर वाणी में हकलाहट संभव होती है |
3 तृतीय भाव में चन्द्रमा का प्रभाव
स्वभाव
तृतीय भाव में स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक तीव्र स्मरण शक्ति वाला होता है | वह पराक्रमी , साहसी एव धार्मिक कार्यो में रूचि रखने वाला होता है | जातक को यात्रा तथा परिवर्तन प्रिय होता है | जातक प्रसन्नचित्त रहता है और कम बोलने वाला होता है |
पूर्ण दृष्टी
तृतीय भाव में स्थित चंद्रमा की पूर्ण दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जो भाग्य स्थान है। नवम भाव पर चंद्रमा की दृष्टि होने से जातक को महिलाओं के सहयोग से भाग्योदय होता है। विवाह के बाद पत्नी भाग्योदय का कारक होती है व्यक्ति विलासी, धार्मिक और सुन्दर शरीर वाला होता है।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र, उच्च और स्वराशि का चन्द्रमा शुभ फलदायक होता है। जातक कला प्रेमी होता है। उसे सर्वत्र सफलता मिलती है। बहनों का सुख और सहयोग विशेष रूप से प्राप्त होता है। शत्रु व नीच राशि का चन्द्रमा रोग कारक होता है। भाइयों व बहनों से वैर करने वाला तथा भाग्य में न्यूनता लाता है। जातक झगड़ालू एवं ईर्ष्यालू होता है।
तृतीय भाव विशेष
जातक की देह वायु प्रधान होती है। प्रायः देह में स्थूलता होती है । चेहरे पर कान्ति होती है । इस भाव में चन्द्रमा भाई-बहनों के सुख में वृद्धि करता है एवं अपनी बहनों से विशेष लगाव होता है। तृतीय भाव स्थित चंद्रमा जातक को भाग्यशाली बनाता है। तृतीय भाव में स्थित चंन्द्रमा कफ रोगी भी बनाता है। जातक को शीत संबंधी कष्ट एवं एलर्जी होती हैं। वायु तथा वात संबंधी रोग जैसे गैस बनना इत्यादि होने की संभावना होती है ।
4 चतुर्थ स्थान में चन्द्रमा का प्रभाव
स्वभाव
चन्द्रमा के चतुर्थ स्थान में होने से जातक उदार, स्वाभिमानी एवं शांत स्वभाव का होता है । जातक दयालू, बुद्धिमान, विनम्र और मिलन सार होता है। तथा उदार हृदय का भाग्यशाली एवं सदा प्रसन्न रहने वाला होता है ।
पूर्ण दृष्टि
चतुर्थ स्थान में चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि दशम स्थान पर होने से जातक को व्यवसाय में अनुकूल प्रभाव होते हैं जातक की नौकरी में पदोन्नति होती है ओर उसे उच्चाधिकारियों का सहयोग मिलता है।
मित्र/शत्रु राशि
मित्र, उच्च और स्वराशि का चन्द्रमा चतुर्थ स्थान में सभी प्रकार का सुख प्रदान करता है। जातक को माता का विशेष सुख प्राप्त होता है । उसे भूमि, वाहन, उच्च कोटि का मकान, इत्यादि प्राप्त होते है। शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक को उपरोक्त सुखों में कमी आती है। किराये के मकान में रहना पड़ता है। माता से विरोध होता है। जमीन-जायदाद से जुड़े विवाद होते हैं।
भाव विशेष
चतुर्थ भाव पर चन्द्रमा से जातक को जल से संबंधित व्यवसाय शुभ फलदायक होते है। परिवार और देश के लिए सद्भावना रखने वाला होता है। सहानुभूति, सुन्दरता का पुजारी तथा उच्च कल्पना शक्ति वाला होता है। चतुर्थ भाव में चन्द्र कारक ग्रह है अतः शुभकारी होता है। जातक को धन, भूमि, भवन, वाहन इत्यादि का सुख अवश्य प्राप्त करता है तथा परिवार से विशेष कर माता पिता से अत्यंत प्रेम करता है। किन्तु अन्य स्थिति क्लेश कारक भी रहती है।
5 पंचम स्थान में चन्द्रमा का प्रभाव
स्वभाव
चन्द्रमा के पंचम स्थान में स्थित होने से जातक बुद्धिमान, धैर्यवान और भावुक होता है। जातक मेधावी, तेजस्वी और मीठा बोलने वाला होता है। हर कार्य में शीघ्रता करने वाला और संगीत पंसद करने वाला होता है। पंचम भाव में स्थित चंद्रमा जातक को चंचल बनाता है।
पूर्ण दृष्टि
पंचम स्थान में स्थित चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि एकादश स्थान पर पड़ती है। इसके प्रभाव से सुखी, लोकप्रिय और दीर्घायु होता है। जातक ईमानदारी से अपनी आय अर्जित करने के लिए प्रयत्नशील रहता है। दूध व सफेद वस्तुओं संबंधी कार्यों से अच्छी आय होने की संभावना होती है।
मित्र/शत्रु राशि
चन्द्रमा के मित्र, स्व और उच्च राशि में होने पर शुभ फलों में वृद्धि होती है। जातक की संतान होनहार होती है । जीवनकाल में उसकी इच्छाएँ पूरी होती है। दयालु होता है और कई संस्थाओं में दान देता है। शत्रु व नीच राशि में होने पर जातक को विद्या और धन कठिनाई से प्राप्त होते है। अपने पुत्र-पुत्रियों से जातक बदनाम और दुःखी होता है। जीवन तनाव पूर्ण और चिंता से ग्रसित होता है। उसे कई प्रकार के विवादों का सामना करना पड़ता है।
भाव विशेष
पंचम भाव में चन्द्रमा की स्थिति से जातक को कन्या संतान ज्यादा होती है। पंचम भाव में चंद्रमा के स्थित होने से जातक जुए, सट्टे, शेयर, इत्यादि से धन कमाने वाला होता है। तथा देवी उपासक या देवी का अनन्य भक्त होता है। जातक के पुत्र आज्ञाकारी होते है। जातक को विशेष वस्तुओं जैसे घड़ियाँ, डाक-टिकट, इत्यादि के संग्रह में रूचि होती है।
6 छठे भाव में चन्द्रमा का प्रभाव
स्वभाव
छठे भाव में स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक अंधविश्वासी होता है । वह शंकालु स्वभाव का होता है । मानसिक रूप से लगातार परेशान रहता है। वह अपने शत्रुओं से भी कष्ट उठाता है ।
पूर्ण दृष्टि
छठे चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि बारहवें स्थान पर पड़ती है जो व्यय भाव है जिसके प्रभाव से जातक व्यर्थ ही इधर-उधर भटकता है। जातक के अनेक प्रयास व्यर्थ हो जाते है एवं परिणाम प्राप्त नहीं होता है। जातक खर्चीले स्वभाव का होता है ।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित चंद्रमा षष्ठ भाव जनित अशुभ फलों में कमी करता है।शत्रु एवं नीच राशि में स्थित चंद्रमा जातक को रोगी एवं दुखी बनाता है।
भाव विशेष
जातक प्रायः कफ रोगों यथा सर्दी जुकाम से पीड़ित होता है। साइनस से संबंधित कष्ट भी होता है। जातक के फेफड़े कमजोर होते है। मंदाग्नि, अपच और जलोदर जैसे रोग भी होते हैं । प्रायः छठे स्थान में स्थित चन्द्रमा जातक को अस्वस्थ बनाये रखता है।
7 सप्तम भाव में चन्द्रमा का प्रभाव
स्वभाव
सप्तम् भाव में चन्द्रमा के प्रभाव से जातक धैर्यवान, सोच समझकर काम करने वाला और यशष्वी होता है। वह स्वभाव से शांत और सभ्य होता है। उसे अपने रूप और गुणों पर अभिमान करने वाला जीवन साथी प्राप्त होता है। जातक को प्रायः भ्रमण करना अच्छा लगता है ।
पूर्ण दृष्टि
चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि लग्न पर पड़ती है, जो जातक के लिए शुभकारी होती है इस दृष्टि के प्रभाव से विनम्र और प्रभावशाली व्यक्तित्व होता है। जातक के स्वभाव में अस्थिरता आती है। वह अति भावुक हो जाता है और किसी भी विषय पर बहुत देर तक सोचता रहता है। शुभ प्रभावी होने पर सभ्य, धैर्यवान, कीर्तिवान व स्फूर्ति वाला होता है।
मित्र / शत्रु राशि
स्व, उच्च अथवा मित्र राशि में स्थित चन्द्रमा जातक के लिए सर्व सुख कारक होता है। जातक की पत्नी सुन्दर और धार्मिक होती हैं। जातक के व्यक्तित्व में एक आकर्षण होता है। शत्रु व नीच राशि में स्थित चन्द्रमा जातक को व्याभिचारी बनाता है। तथा वैवाहिक जीवन मध्यम होता है । प्रायः वैचारिक मतभेद या अति भावुकता के कारण जातक अपने जीवनसाथी के साथ सुखी नहीं होता है।
सप्तम भाव विशेष
सप्तम भाव में स्थित चंद्रमा से जातक में विपरित लिंग के प्रति सहज आकर्षण होता है। जातक को पत्नी द्वारा धन लाभ होता है और उसका गृहस्थ जीवन सुखी रहता है। जातक को सुंदर जीवन साथी मिलता है। तथा जल यात्रा भी करता है।
8 अष्टम् भाव में चन्द्रमा का प्रभाव
स्वभाव
अष्टम भाव में चन्द्रमा के प्रभाव से जातक अधिक बोलने वाला होता है। ईर्ष्यालू, सम्मान से युक्त एवं सदैव चिन्तित रहने वाला होता है वह कठोर और दूसरों के प्रति अपने मन में दुर्भावना रखता हैं। जातक प्रायः झूठ भी बोलता है।
पूर्ण दृष्टि
अष्टमस्थ चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि दूसरे भाव पर पड़ती है । सप्तम पूर्ण दृष्टि धन भाव पर पड़ने से जातक को किसी स्त्री द्वारा धन प्राप्ति के योग बनाते है । जातक को परिवार का सुख प्राप्त होता है। द्वितीय भाव में चन्द्रमा की दृष्टि होने पर जातक के बहुत अधिक कुटुंबी होते है। अर्थात् एक बड़े परिवार में जन्म होता है।
मित्र / शत्रु राशि
अष्टम भाव में स्थित मित्र, स्व व उच्च राशि के चंद्रमा से जातक को स्त्री द्वारा धन प्राप्ति के योग बनते हैं । जातक व्यापार में सफलता प्राप्त करता है। जातक स्वाभिमानी भी होता है। शत्रु व नीच राशि के चंद्रमा के अष्टम स्थान में होने से धन हानि होती है। व्यापार में हानियाँ होती है। इससे जातक के स्वाभिमान में कमी आती है ।
भाव विशेष
अष्टम भाव में स्थित चन्द्रमा जातक को जल से भय उत्पन्न करता है। अष्टम चंद्रमा मुत्र विकार व प्रमेह रोग से ग्रसित करता है। जातक प्रायः बंधनों से मुक्त रहता है। व्यवसाय से सफलता के योग भी अष्टम चंद्रमा बनाता है किन्तु यह स्थिति घर से दूर ले जाती है।
9 नवम भाव में चन्द्रमा का प्रभाव
स्वभाव
नवम् भाव भाग्य और धर्म का है अतः इस भाव के शुभ फल जातक के स्वभाव में होते है। जातक सुख-सम्पत्ति से पूर्ण, धार्मिक, मेहनती, न्यायी और अधिक होता विद्वान होता है । साहस है। प्रकृति प्रेमी होता है।
पूर्ण दृष्टि
नवम भाव के चंद्रमा की पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक के भाई तो कम होते हैं पर बहनों की संख्या अधिक रहती है। तथा बहनों से विशेष सहयोग भी मिलता है ।
मित्र/शत्रु राशि
चन्द्रमा मित्र, स्व या उच्च राशि का होने पर वह जातक के भाग्य को प्रबल बनाते है। जातक को सभी प्रकार के सुख, धन आदि प्राप्त होते है। धार्मिक कार्यो में रूचि रखती है । चन्द्रमा शत्रु व नीच राशि में होने पर निर्बल होता है। ऐसा जातक गरीब और धर्महीन व्यवहार करता है । भाग्य उसका साथ नहीं देता है एवं जातक को कार्यक्षेत्र में रूकावटें आती रहती है।
नवम भाव विशेष
नवम भाव में चन्द्रमा के प्रभाव से जातक भाग्यशाली होता है। महिलाओं के सहयोग से या विवाह के बाद भाग्योदय होता है। इसके बाद जातक अपने पराक्रम और परिश्रम से आसानी से प्रगति की ओर बढ़ता है एवं यश और धन अर्जित करता है। जातक कुछ वहमी या अंधविश्वासी होता है । न्याय संगत एवं विद्वान होता है। स्त्रियों की जन्म पत्रिका में नवम स्थान का चन्द्रमा उन्हें दार्शनिक बनाता है। वे प्रायः गृहकार्य से उदासीन हो धार्मिक कर्म में अधिक रूचि रखती है।
10 दशम भाव में चन्द्रमा का प्रभाव
स्वभाव
दशम भाव में स्थित चंद्रमा के प्रभाव से जातक यशस्वी, सुखी, बुद्धिमान, प्रसन्न -चित्त एवं विलासी होता है। जातक के कई मित्र होते हैं महत्वाकांक्षी होता है एवं अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहता है। जातक नित नये विचारों एवं तरीको की खोंज में रहता है।
पूर्ण दृष्टि
दशम भाव में स्थित चन्द्रमा की चतुर्थ स्थान पर पूर्ण दृष्टि से जातक विशेा रूप से मातृ भक्त होता है। उसे जमीन, जायदाद, मकान आदि का सुख प्राप्त होता है।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र, स्व या उच्च राशि में होने पर चंद्रमा के दशम स्थान में शुभ फल बढ़ जाते हैं। जातक को कार्य या व्यवसाय में उच्च कोटि की सफलता मिलती है। जातक को यश, मान और सम्मान की प्राप्ति होती है। माता पिता का सुख प्राप्त होता है । शत्रु व नीच राशि में होने पर जातक को बार-बार व्यवसाय में हानि होती है उसे महिलाओं से सहयोग नहीं मिलता है। जातक को पिता द्वारा लिये हुए ऋण चुकाने पड़ते है।
भाव विशेष
दशम स्थान में चंद्रमा के प्रभाव से जातक को किसी स्त्री मित्र के कार्य स्थान में सहयोग से प्रगति प्राप्त होती है । दशम भाव जातक की जन्म पत्रिका में राज्य सम्मान, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य और पिता के सुख का कारक होता है । जातक अपने कार्य क्षेत्र में विशेषज्ञ होता है। दशम भाव में स्थित चंद्रमा जातक को कार्य परायण भी बनाता है। दशम भाव में स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को सफेद वस्तु के व्यवसाय से विशेष लाभ होता है। चंद्रमा के प्रभाव से जातक अपने व्यवसाय में बार-बार परिवर्तन करता रहता है। दशम भाव में स्थित चंद्रमा वाले जातक को कुल दीपक की संज्ञा दी गई है। जातक धार्मिक, सहिष्णु और माता पिता की सेवा करने वाला होता है ।
11 एकादश भाव में चन्द्रमा का प्रभाव
स्वभाव
चन्द्रमा के एकादश स्थान में स्थित होने से जातक कला और साहित्य प्रेमी, संयमी, धनी और राजकार्य में निपुण होता है । जातक अनेक गुणों से परिपूर्ण और यशस्वी होता है।
पूर्ण दृष्टि
एकादश भाव में स्थित चंद्रमा की पंचम स्थान पर पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक व्यवहारकुशल, बुद्धिमान और कला प्रिय होता है। कन्याओं की अधिकता होती है उच्च शिक्षित होता है और गायन, वादन इत्यादि में विशेष रूचि रखता है।
मित्र/शत्रु राशि
स्व, मित्र और उच्च राशि में चन्द्रमा होने पर जातक को नित्य अनेक स्त्रोतों से धन का अर्जन होता है । वह कला और साहित्य का प्रेमी होता है स्त्रियों में लोकप्रिय होता है एवं उनके सहयोग से आय अर्जित करता है । शत्रु राशि में चन्द्रमा निर्बल होता है । चन्द्रमा के शुभ फलों में न्यूनता आती है व्यवसाय व आय में कठिनाई मिलती है |
एकादश भाव विशेष
चंद्रमा के एकादश भाव में स्थिति के प्रभाव से जातक को आकस्मिक रूप से व्यवसाय से आय होती है। किसी स्त्री का संरक्षण जातक को प्राप्त होता है। जातक चंचल होता है। यात्रा करने में रूचि रखता है। जातक प्रायः लॉटरी और सट्टे से धन कमाने की इच्छा रखता है।
12 बारहवें भाव में चन्द्रमा का प्रभाव
स्वभाव
बारहवें भाव में स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक एकान्त प्रिय, चिंता-शील, आलसी, मिथ्यावादी, अधिक व्ययी और स्वार्थी होता है।
पूर्ण दृष्टि
चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि छठे स्थान पर चंद्रमा पड़ती है जिससे जातक शत्रुओं एवं कर्जे से दुःख और कष्ट पाता है। प्रायः गुप्त रोग भी परेशानी का कारण होते है जातक का व्यय अधिक और व्यर्थ होता है।
मित्र / शत्रु राशि
मित्र राशि में द्वादश भाव का चंद्रमा जातक के व्यय उपयोगी वस्तुओं के लिए अधिक कराता है। मित्र राशि चंद्रमा जातक को मृदुभाषी भी बनाता है। शत्रु राशि में द्वादश भाव में चंद्रमा स्थित होने से जातक एकांतप्रिय चिंताग्रस्त होता है। कफ संबंधी रोग भी होते है।
भाव विशेष
द्वादश भाव में चंद्रमा होने पर जातक अपने व्यवसाय व नौकरी में चंद्रमा की दशा में धुमकेतू की तरह चमकता है और उच्चकोटि की प्रसिद्धि प्राप्त करता है। जातक प्रायः चंचल स्वभाव का होता है। पर्यटन करना अच्छा लगता है।
जानिए आपकी रशिअनुसार राहू ग्रह का आपकी कुंडली में क्या प्रभाव होता है ? मेष : – मेष राशी में राहू स्थित होने से जातक पराक्रम हिन होता है | जातक दुसरो पर आश्रित रहता है | जातक आलसी होता है एव अपने कार्यो को पूर्ण नहीं कर पाता | जातक विवेकहीन व क्रोधी होता…
जानिए आपकी कुंडली मे शनि ग्रह 12 भाव में क्या फल देते है ? शनि जन साधारण में सामान्यत: यह माना जातक है की शनि एक क्रूर ग्रह होता है तथा केवल हानि कारक की होता है | वास्तव में ऐसा नही है | शनि एक महत्वपूर्ण ग्रह है | यह जातक को संघर्ष ,…
जानिए आपकी कुंडली में गुरु ग्रह 12 भाव में क्या फल देते है ? गुरु विद्या, शुभ कार्य , यज्ञ इत्यादि कर्म , धर्म , ब्राम्हण , देवता, पुत्र , मित्र , सोना , पालकी का कारक गुरु है | गुरु गृह न्याय प्रियता , अच्छे गुण व बाते और सुख का धौतक भी है…
बृहस्पति नवम भावामधे | तुमच्या जन्म कुंडलित कोणत्य स्थानात आहे? शुभ फळ नवव्या भावात गुरु असल्याने जातक धार्मिक, खरे, बोलणारा, नीतिवान, विचाराी आणि सन्माननीय असतो. जातक शांत स्वभावाचा आणि सदाचारी असतो – उच्च विचारांचा असतो. तीर्थयात्रा आणि देव-गुरु-ब्राह्म. यांच्यावर श्रद्धा ठेवतो. तसेच जातकाला पुण्यकर्मा बनवतो. जातक साधुंच्या सहवासात रहाणारा, भक्त, योगी, वेदान्ती, शास्त्रज्ञ, इच्छा तसणारा…
जानिए आपकी रशिअनुसार मंगल भगवान का आपकी कुंडली में प्रभाव कैसा है ? मेष :- मेष राशी का स्वामी मंगल है | मंगल मेष राशी में 18 अंश तक मूलत्रिकोण का होता है एव शेष अंशो में स्वराशी का होता है | मंगल के मेष राशी में स्थित होने के शुभ प्रभाव से जातक तेजस्वी,…
सूर्य भगवान आपकी कुंडली में किस भाव मे है देखिये अपनी कुंडली !! स्वभाव सूर्य के लग्न (प्रथम भाव) में से जातक क्रोधी,,स्थित होने स्वाभिमानी, स्थिर एवं दृढ़इच्छा शक्ति वाला होता है।स्वरूप जातक का ललाट विशाल होता है व बड़ी नाक भी होती है। जातक का शरीर हालांकि दुबला-पतला रहता है। स्वास्थ्य लग्नस्थ सूर्य सिर…