अंक शास्त्र भाग्य ओर मूळ अंक का फल

अंक 0-9 अंक तक भाग्य फल क्या मिलेगा | Ank shastra

प्रत्येक अंक में एक निश्चित शक्ति विद्यमान रहती है। जो कि वस्तुओं के
आपसी गूढ़ संबंध एवं प्रकृति के गूढ़ सिद्धान्तों पर आधारित है। इसका पता मानव को तब
चला जब मानव ने अंकों को एक क्रम 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 प्रदान किया तथा इन
अंको के द्वारा चाहे गए प्रतीक को अभिव्यक्त किया। नीचे 0 से 9 तक के अंकों में छुपी हुई
शक्ति का वर्णन दे रहे हैं।

० (शून्य) अंक का फल

यह अनंत का प्रतीक है। यह सूक्ष्म से सूक्ष्म है एवं बृहद से बृहदाकार है। इसमें अनंत
असीम अस्तित्व छिपा है जो सभी वस्तुओं का उद्गम स्त्रोत है। इस अनंत ब्रह्मांड में समस्त आकाश मण्डल के सितारे, प्रकाश पंज, सम्पूर्ण सौर मंडल, आकाश गंगा, सार्वभौमिकता,
विश्व प्रजनन शक्ति, ग्रहों की परिक्रमा, परिक्रमा पथ आदि हैं। इसी में सम्पूर्ण विश्व की
शक्ति निहित है। आप कहीं से भी चलना प्रारंभ करें पूरे विश्व या पृथ्वी का चक्कर लगा
लें. लौटकर फिर वहीं आ जाएँगे जहाँ से चले थे। अतः शून्य में ही सब कुछ छिपा होने से
इसे अनंत की शक्ति प्राप्त है।

जन्म कुंडली
जन्म कुंडली

अंक-1 अंक शास्त्र भाग्य ओर मूळ अंक का फल


एक के अंक का प्रयोग सकारात्मक एवं सक्रिय सिद्धांत के प्रतीक रूप में होता है।
अंक एक शब्द में भी प्रयुक्त होता है जो अनंत तथा अव्यक्त को प्रकट करता है। यह अहं
का प्रतिनिधि है। आत्म स्वीकारोक्ति, सकारात्मकता, पृथकतावाद, आत्मा, आत्मत्व, आत्म
निर्भरता, श्रेष्ठता गरिमा तथा प्रशासन का प्रतीक है। धार्मिक दृष्टिकोण से ग्रहों के स्वामी
सूर्य को भगवान माना गया है। अतः ईश्वर का भी प्रतीक है। वैज्ञानिक एवं दार्शनिक रूप
में यह संश्लेषण तथा वस्तुओं में मूल भूत अखंडता को दर्शाता है। व्यक्ति जीवन की ईकाई
है, अतः भौतिक दृष्टि से मनुष्य का प्रतीक है। यह शून्य से उदित है और सूर्य ग्रह का प्रतीक
अंक है।

अंक-2 अंक शास्त्र भाग्य ओर मूळ अंक का फल

दो का अंक विपरीतता का प्रतीक है। इससे प्रमाण एवं पुष्टि होती है। इसमें द्विगुण
हैं, जैसे एक और एक का जोड़ दो अथवा दो में से एक घटाना। अतः जहाँ इस अंक में एक
ओर क्रियाशीलता है तो वहीं दूसरी ओर निष्क्रियता भी है। एक ओर यह पुल्लिंग सूचक है
वहीं दूसरी और स्त्रीलिंग द्योतक है। एक और सफलता तो दूसरी और असफलता, जीत या
हार, लाभ या हानि, सकारात्मक या नकारात्मक, पूर्णमासी या अमावस्या दौनों स्थितियाँ
प्रदान करता है। यह चन्द्रमा का प्रतीक है।

अंक-3 अंक शास्त्र भाग्य ओर मूळ अंक का फल

अंक तीन त्रि-आयामी है। यह सृष्टि भी त्रि-गुणात्मक है। जीवन के त्रिगुण पदार्थ,
बुद्धि, बल व चेतना का प्रतीक है। इसमें सृजन, पालन व संहार के ब्रह्मा-विष्णु-महेश के
गुण समाहित हैं। इससे परिवार में माता-पिता तथा शिशु तीनों का बोध होता है। आत्मा,
शरीर एवं मन का प्रतीक है। यह विस्तार का अंक है। सृष्टि त्रि-गुणात्मक होने से तीन का
गुणा किसी भी अंक में करते जाएँ संख्या का अन्त नहीं आएगा। यह गुरू ग्रह का प्रतीक
है।

अंक-4 अंक शास्त्र भाग्य ओर मूळ अंक का फल

चार का अंक वास्तविकता एवं स्थायित्व का संकेत देता है। यह अंक भौतिक जगत
का द्योतक है तथा वर्गाकार एवं घनाकार है। इससे भौतिक अवस्था भौतिक नियम, तर्क
कारण एवं विज्ञान का आभास होता है। यह अनुभूतियों, अनुभव एव ज्ञान के रूप में पहचान
स्थापित करता है। इससे विभाजन, अलग-अलग होना योजनायें बनाना तथा वगीकरण
करना है। यहाँ स्वास्तिक, विधि चक्र, तथा संख्याओं का क्रम एवं योग है। यह चेतना, बुद्धि
विवेक अध्यात्मिकता एवं भौतिकता के अन्तर की पहचान स्थापित करता है। इसका
प्रतिनिधि ग्रह हर्षल या राहु है।

अंक-5 अंक शास्त्र भाग्य ओर मूळ अंक का फल

पाँच का अंक विस्तार का प्रतिनिधित्व करता है। यह वस्तुओं के आपसी संबंध
सूझ-बूझ की क्षमता एवं निर्णय का प्रतीक है। यह बुद्धि विवेक विचार शक्ति देता है। यह
न्याय तथा खेतों में बुआई, कटाई एवं फसल, खाद्यान्न का प्रतीक है। भौतिक जगत में यह
स्वयं के पुर्नउत्पादन, पितृत्व, परितोष एवं दण्ड का प्रतीक है। अतः यह अंक एक रूप में
अनार के बीज की तरह गुण वाला है। यह बुध का प्रतीक है।

अंक-6 अंक शास्त्र भाग्य ओर मूळ अंक का फल

छह का अंक आपसी सहयोग का प्रतीक है। यह विवाह, दाम्पत्य सुख को एक कड़ी
में जोड़ने व आपसी प्रेम संबंधो का संकेत देता है। आपसी व्यवहार, क्रिया, आपसी सन्तुलन
बनाता है। यहाँ भौतिक जगत, भौतिक सुख, एवं आध्यात्मिक जगत, आध्यात्मिक सुख का
द्योतक है। यह मनुष्य की मानसिक एवं शारीरिक क्षमता को प्रकट करता है। देवीय क्षमता,
मनोविज्ञान भी मीमांसा, समागम तथा सहानुभूति को दर्शाता है। इससें परा मनौविज्ञान, दूर
संवेदिता (Telepathy) एवं मानसिक तुलना का प्रतिनिधि है। सहयोग, शांति, सन्तुलन, एवं
सन्तुष्टि प्रदान करता है। सौन्दर्य तथा सत्य दर्शाता है। उद्देश्य प्राप्ति, समागम तथा
पारस्परिक संबंधो का प्रतीक है। यह स्त्री, पुरुष के नैसर्गिक संबंधो को दर्शाता है। यह शुक्र
का प्रतीक है।

अंक-7 अंक शास्त्र भाग्य ओर मूळ अंक का फल

सात का अंक पूर्णता का परिचायक है। यह समय अन्तराल, स्थान एवं दूरी को
दर्शाता है। इससे मनुष्य की क्षीणता, वृद्धावस्था, मृत्यु, सहनशीलता, स्थिरता, अमरत्व
दृष्टिगोचर होता है। यह सप्तद्वीप, सप्तयुग एवं सप्ताह के सात दिनों का प्रतीक है। इससेसात प्रतिज्ञाओं, मनुष्य की सिद्धांत परिपक्वता. ध्वनि के विभिन्न रूप एवं रंगों का बोध
कराता है। मानव की पूर्णता, विकास का क्रम, बुद्धि, मन का सन्तुलन तथा विश्राम का
द्योतक है। यह नेपच्यून या केतु का प्रतीक है।

अंक-8 अंक शास्त्र भाग्य ओर मूळ अंक का फल

आठ का अंक विघटन का अंक है। यह चक्रीय विकास के सिद्धान्तो व प्राकृतिक
वस्तुओं के आध्यात्मिकी करण के झुकाव का प्रतीक है। क्रिया, प्रतिक्रिया जोड़-तोड़,
विघटन, अलगाव, विखराव, अराजकता, विभाजन का प्रतीक है। यह जीवन की अन्तः प्रेरणा,
बुद्धि विकास, अविष्कार एवं अनुसंधान देता है। इससे सनकी स्वभाव मार्ग से हट जाता है,
गल्तीयाँ करना एवं मानसिक विच्छेद होने का प्रतीक है। इसका प्रतिनिधि ग्रह शनि है।

अंक-9 अंक शास्त्र भाग्य ओर मूळ अंक का फल

अंक नौ पुर्नउत्पादन देता है। इससे पुर्नजन्म, अध्यात्म, इन्द्रियों का विस्तार, विकास, पूर्वाभास
व समुद्री यात्रा को दर्शाता है। स्वप्न, बिना घटित घटनायें वायु मण्डल की ध्वनियों को
सुनने का द्योतक है। इससे पुर्नरचना, कम्पन, लय, तरंग प्रकाशन, धनुष विद्या, युद्ध कौशल,
ज्योतिष के रहस्यों का उद्घाटन, विचार तरंगे, दिव्य दर्शन, प्रेत आत्मा, बादल, दुर्बोध तथा
रहस्य प्रकट होता है। यह मंगल का प्रतीक है।

संक्षेप में इन अंको के प्रभाव को निम्नानुसार याद कर सकते हैं।
अंक-1
यह अंक स्वतंत्र व्यक्तित्व का धनी है। इससे संभावित अंह का बोध, आत्म निर्भरता,
प्रतिज्ञा, दृढ़ इच्छा शक्ति एवं विशिष्ट व्यक्तित्व दृष्टि गोचर होता है। इसका प्रतिनिधि सूर्य
ग्रह है।
अंक-2
अंक दो का संबंध मन से है। यह मानसिक आकर्षण, हृदय की भावना, सहानुभूति,
संदेह, घृणा एवं दुविधा दर्शाता है। इसका प्रतिनिधित्व चन्द्र को मिला है।
अंक-3
तीन का अंक विस्तार वादी है। इससे बढ़ोत्तरी, बुद्धि विकास क्षमता, धन वृद्धि एवं
सफलता मिलती है। इस अंक का स्वामित्व बृहस्पति या गुरू ग्रह को मिला है।
अंक-4
इस अंक से मनुष्य की हैसियत, भौतिक सुख संपदा, सम्पत्ति, कब्जा, उपलब्धि एवं
श्रेय प्राप्त होता है। इसका प्रतिनिधि हर्षल या राहु ग्रह है।अंक-5
इस अंक द्वारा वाणिज्य, व्यवसाय, रोजगार, फसल, खाद्यान्न, तर्कशक्ति, वाकपटुता,
कारण और निवारण, नैतिक स्थिति तथा यात्रा का बोध होता है। बुध ग्रह इसका
प्रतिनिधत्व करता है।
अंक-6
छह का अंक वैवाहिक जीवन, प्रेम एवं प्रेम-विवाह, आपसी संबंध, सहयोग, सहानुभूति,
संगीत, कला, अभिनय एवं नृत्य का परिचायक है। इसका प्रतिनिधित्व शुक्र को मिला है।
अंक -7
सात का अंक आपसी ताल मेल, साझेदारी, समझौता, अनुबंध, शान्ति, आपसी
सामंजस्य एवं कटुता को जन्म देता है। इस अंक का प्रतिनिधित्व नेपच्यून या केतु ग्रह को
मिला है।
अंक-8
शनि का अंक होने से इस अंक से क्षीणता, शारीरिक मानसिक एवं आर्थिक कमजोरी, क्षति,
हानि, पूर्ननिर्माण, मृत्यु, दुःख, लुप्त हो जाना या बहिर्गमन हो जाता है। इसका स्वामित्व
शनि का है जो यम का रूप है।
अंक-9
यह अन्तिम ईकाई अंक होने से संघर्ष, युद्ध, क्रोध, ऊर्जा, साहस एवं तीव्रता देता है।
इससे विभक्ति, रोष एवं उत्सुकता प्रकट होती है। इसका प्रतिनिधि मंगल ग्रह है जो युद्ध
का देवता है।

ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन पर हमेशा से रहा है। इस प्रभाव को प्रसिद्ध नाटककार
शेक्सपियर ने अपने कॉमेडी नाटक “एज यू लाइक इट” (As You Like it) में ग्रहों की
चाल के अनुसार मनुष्य जीवन पर प्रत्येक ग्रह के पड़ने वाले प्रभाव को सात वर्गों में
निम्नानुसार विभाजित किया है।

1-4 वर्ष बाल्यकाल-परिवर्तन शीलता- चन्द्र ग्रह का प्रभाव, अंक 2
4-12 वर्ष अध्ययन ज्ञान बुध ग्रह का प्रभाव, अंक 5
12-22 वर्ष प्रणय संबंध – प्रेम, विवाह शुक्र ग्रह का प्रभाव, अंक 6.

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