जानिए आपकी कुंडली मे मंगल गृह 12 भाव में क्या फल देते है |

मंगल पाप गृह माना जाता है | यह दक्षिण दिशा का स्वामी है | मंगल का तत्त्व अग्नि है | मंगल जातक मे धैर्य ,पराक्रम एव साहस का धौत्यक है | छोटे भाई की की स्थिति भी पत्रिका मे मंगल से देखी जाती है | मंगल धैर्य,कीर्ति शत्रु,अभिमान,क्रोध,नेतृत्व,ऑपरेशन,कृषि,उत्साह, दण्ड,नीति,गंभीरता एव स्वतंत्रता का भी धौतक है | भूमि पुत्र होने की वजह से मंगल से भूमि,जमीन,जायजाद इत्यादि का विचार भी करते है |

1 प्रथम स्थान में मंगल का प्रभाव

स्वभाव

लग्न में मंगल से प्रभाव से जातक क्रोधी,भावना शून्य महत्त्वकांक्षी और साहसी होता है | जातक झगडालू ,कामी परन्तु परिश्रमी होता है | जातक को गुस्सा बहुत जल्दी आता है |

स्वरुप

लग्न में मंगल से प्रभाव से जातक दृढ़ शरीर वाला होता है | प्राय : जातक के शरीर ,मुख या सिर पर चोट का निशान होता है | जातक सुंदर स्वरुप वाला होता है |

स्वास्थ्य

जातक दीर्घायु ओता है | लग्न में स्थित मंगल से जातक को सर और शरीर में चोटे लगती है | बचपन मे दात निकलते समय कष्ट होता है | जातक को उदर विकार ,रक्त विकार हो सकते है |

व्यवसाय

जातक के लग्न में मंगल होने से वह सेना या पुलिस में पद प्राप्त करता है | अच्छा शल्य चिकित्सक ( सर्जन ) या भूगर्भ वैज्ञानिक हो सकता है | जातक को भूमि संबंधित कार्यो में विशेष सफलता प्राप्त होती है |

पूर्ण दृष्टी

प्रथम भाव में स्थित मंगल की पूर्ण दृष्टी सप्तम स्थान पर पड़ती है जो दाम्पत्य का स्थान है | इस कारन प्रायः जातक की उसकी पत्नी/पति से अनबन रहती है | प्रथम भाव में स्थित मंगल की पूर्ण दृष्टी चथुर्त भाव पर भी होती है | जो जातक की माता के लिए कष्टकारी होती है जातक मातृभक्त होता है | प्रथम भाव स्थित मंगल की पूर्ण दृष्टी अष्टम भाव पर होती है जिससे जातक को गुदा संबंधित बीमारियों हो सकती है |

मित्र/शत्रु राशी

स्वराशी,मित्र राशी और उच्च राशी का मंगल होने पर जातक साधारन परिस्थितियों से उठकर उच्च पद प्राप्त करता है | प्राय : जातक स्वस्थ और हष्ट – पुष्ट होता है | चेहेरे पर लालिमा होती है | उच्च अधिकारियो का सहयोग मिलता है | नीच का ओने से जातक क्रूर कर्म वाला प्रवृत होता है | शत्रु राशी का मंगल होने के कारन जातक पीड़ित होता है | जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं होता है | तथा मुकदमेबाजी से परेशान होता है |

भाव विशेष

लग्न में जातक की नेतृत्व क्षमता विशेष होती है | जातक सेना,पुलिस में अधिकारी बन सकता है | चेहेरे पर दाग मंगल के प्रभाव से ही ही होते है | जातक को अपने कार्यो मे हस्तक्षेप पसंद नही होता | जातक आक्रमक स्वभाव का होता है | आवेश में आने पर असंतुलित व्यवहार वाला हो जाता है | लग्न में मंगल की स्थिति से जातक स्वय की बढ़ा- चढ़ा कर तारीफ करता रहता है | लग्न में स्थित मंगल जातक को परिश्रम से स्वय के भाग्य का निर्माण करवाता है | जातक प्राय: झूठ बोलता है |

2 द्वितीय भाव में मंगल का प्रभाव

द्वितीय स्थान में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक उग्र स्वभाव का, असभ्य और कटु वाणी बोलने वाला होता है। जातक निर्बुद्धि, धनहीन और फिजूल के साधनों में अपव्यय करने वाला होता है। धर्म कर्म के प्रति उसकी श्रद्धा होती है धनसंग्रह बड़े कष्ट से होता है एवं अन्य खर्च आता रहता है |

पूर्ण दृष्टी

द्वितीय भाव में स्थित मंगल की सप्तम पूर्ण दृष्टि अष्टम स्थान पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक दुःखी होता है। जातक को पेट संबंधी रोग हो सकते है। द्वितीय भाव स्थित मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है जिससे जातक को संतान की चिंता रहती है। द्वितीय भाव में स्थित मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है। जिससे जातक के भाग्य में प्रगति होती है।

मित्र/शत्रु राशी

उच्च, स्वराशि व मित्र राशि में स्थित मंगल जातक को पराक्रमी और परदेशवासी बनाता है। शत्रु व नीच राशि में मंगल के होने पर जातक क्रोधी, चोरी का भय, कटु बोलने वाला और भारी आर्थिक हानि होती है जातक पैतृक संपत्ति को लेकर हमेशा चिंतित रहता है। जातक दुर्बुद्धि एवं धनहीन होता है।

द्वितीय भाव विशेष

द्वितीय भाव में मंगल के स्थित होने से जातक की तर्क शक्ति प्रबल होती है। इससे विवादों में लाभ प्राप्त होता है। लेन-देन से जातक को सफलता प्राप्त होती है। जातक कटु तिक्त रस प्रिय होता है। अपार जीवन शक्ति से जातक बिना थके लगातार काम करता रहता है। द्वितीय भाव में स्थित मंगल से जातक को विष व शस्त्र का भय रहता है।

3 तृतीय भाव में मंगल का प्रभाव

जातक की जन्म पत्रिका में तृतीय मंगल लग्न भाव का मंगल प्रबल कारक होता है।

स्वभाव

तृतीय भाव में स्थित मंगल से जातक साहसी, धैर्यवान, सर्वगुण सम्पन्न बलवान, शूरवीर और उदार होता है। जातक की प्रबल जठराग्नि होती है अर्थात् अधिक भोजन करता है। जातक सारे सुख अपने पराक्रम से प्राप्त करता है।

पूर्ण दृष्टि

तृतीय भाव में मंगल की पूर्ण सप्तम दृष्टि नवे स्थान पर पड़ती है। जिसके कारण जातक धनी, पराक्रमी और बुद्धिमान होता है। परंतु फलों की प्राप्ति मंगल के शुभ अशुभ स्थिति पर निर्भर करती है। तृतीयस्य मंगल की पूर्ण चतुर्थ दृष्टि षष्ठ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक शत्रुओं को परास्त करता है। मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को राज्यधिकार व उच्च स्थान की प्राप्ति होती है।

मित्र / शत्रु राशि

मित्र राशि, स्व राशि और उच्च राशि में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक में शौर्य एवं पराक्रम से सब कुछ प्राप्त करते हुए भी सदैव असंतुष्ट रहता है। शत्रु व नीच राशि में होने पर जातक को भाइयों से सुख नहीं मिलता है। रूखापन तथा कटुता में वृद्धि होती है शत्रु राशि में मंगल होने से जातक अपनी शक्ति तथा बुद्धि का उपयोग गलत दिशा में कर सकता है। जातक प्रायः विद्रोही स्वभाव का होता है।

तृतीय भाव विशेष

तृतीय भाव स्थित मंगल के प्रभाव से जातक अपने पुरुषार्थ (प्रयासों) से धन अर्जन करता है। जातक को भाइयों होत विशेष सहयोग नहीं मिलता है। जातक अपने भाईयों को लेकर चिंतित रहता है। जातक में शारीरिक स्फूर्ति अधिक स होती है। जातक शस्त्र कला में विशेष रूचि रखता है।

4 चतुर्थ स्थान में मंगल का प्रभाव

चतुर्थ स्थान में मंगल के प्रभाव से जातक का हृदय कठोर होता है। जातक सुखी, सन्ततिवान, अभिमानी एवं प्रवासी होता है। जातक का अपने पिता से वैचारिक मतभेद रहता है।

पूर्ण दृष्टि

दशम भाव पर मंगल की पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक राजसेवक होता है। प्रायः अपने पिता से वैचारिक मतभेद रहता है। जातक मेहनती भी होता है। चतुर्थस्थ मंगल पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है। जिसके प्रभाव से जातक की पत्नी से अनबन रहती है। चतुर्थस्थ मंगल की अष्टम दृष्टि एकादश भाव पर पड़ती है। जिससे जातक को भूमि संबंधी कार्यो से आय होती है।

 मित्र / शत्रु राशि

स्व, मित्र या उच्च राशि में होने पर जातक को जमीन मकान, वाहन आदि के सुख प्राप्त होते है। यह राज योग कारक होता है। जातक स्वनिर्मित मकान में रहता है। शत्रु व नीच राशि में होने से जातक के घर या व्यवसाय में सदैव अग्नि से भय रहता है। चोरी का भय रहता है। माता का अनिष्ट होता है। जातक जन्म स्थान से दूर गरीबी में रहता है। जातक को जमीन, वाहन आदि का सुख प्राप्त नहीं होता है।

चतुर्थ भाव विशेष

चतुर्थ भाव में मंगल स्थित होने से जातक विशेष रूप से मातृ भक्त होता है किंतु जातक को मातृ सुख नहीं मिलता है। जातक को भूमि एवं वाहन का सुख भी मुश्किल से प्राप्त होता है। घरेलू झगड़े होने की संभावना रहती हैं। चतुर्थस्य मंगल जातक को भ्रमणशील बनाता है। चतुर्थ स्थान व केंद्र में मंगल की स्थिति से जातक यांत्रिकी इंजिनियर व किसी तकनीकि क्षेत्र में जाता है।

5 पांचवें भाव में मंगल का प्रभाव

स्वभाव

पंचम स्थान में स्थित मंगल के प्रभाव से उग्र स्वभाव, क्रोधी, शीघ्र व्याकुल होने वाला एवं धैर्यहीन होता है। जातक बुद्धिमान ओर कपटी होता मंगल है । वह दृढ़ निश्चय से अपना कार्य करता है। जातक जिद्दी एवं अपनी मनमानी करने की प्रवृत्ति भी रखता है।

पूर्ण दृष्टि

पंचम भाव में स्थित मंगल की सप्तम पूर्ण दृष्टि एकादश भाव पर पड़ती है, जो लाभ का स्थान है जिसके प्रभाव से जातक धनी होता है। पंचमस्थ मंगल की चतुर्थ दृष्टि अष्टम भाव में पड़ती है। जिसके प्रभाव से जातक को पेट संबंधी रोग होते है। पंचमस्थ गुरू की पूर्ण दृष्टि द्वादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक चिंताग्रस्त रहता है।

मित्र / शत्रु राशि

मित्र, उच्च अथवा स्वराशि में मंगल के स्थित होने से जातक धनी तो होता है परंतु संतान सुख में कमी होती है। संतान प्रायः शारीरिक रूप से कमजोर होती है। संबंधियों से भी तनाव होता है। शत्रु या नीच राशि में स्थित होने से जातक अत्यन्त क्रोधी, अंर्तमुखी एवं मानसिक रूप से कष्ट पहुँचाने वाला होता है। जातक की शिक्षा में बाधाएं आती हे और संतान की चिंता होती है।

पंचम भाव विशेष

पंचम भाव का मंगल जातक को विशेष जीवन शक्ति देता है। वह परिश्रमी होता हैं। शिक्षा मंगल के क्षेत्र से संबंधित विषयों में ही प्राप्त होती है। जैसे इंजीनियरिंग, पुलिस, कानून इत्यादि । पंचम भाव में स्थित मंगल जातक स्त्रियों की जन्म पत्रिका में संतान के लिए कष्टप्रद माना गया है। प्रायः पहली संतान का गर्भपात होने की संभावना होती है।

6 छठे भाव में मंगल का प्रभाव

स्वभाव

छठे स्थान में मंगल के प्रभाव से जातक यशस्वी, परिश्रमी, चतुर, उत्साही और कुशल कार्यकर्त्ता होता है जातक प्रत्येक कार्य को करने के लिए अधीर हो जाता है। छठे स्थान में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक के अनेक कार्य विवादास्पद होते है अतः उसके अनेक शत्रु बन जाते है। परंतु वह अपने शत्रुओं पर विजय अवश्य प्राप्त करता है।

पूर्ण दृष्टि

छठे मंगल की पूर्ण दृष्टि बारहवें भाव पर पड़ती है। जिसके प्रभाव से जातक उग्र प्रकृति का होता है। जातक के व्यय अधिक होते है और उसे धन संग्रह में मुश्किलें आती है। छठे मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है। जिसके प्रभाव से जातक अभिमानी होता है एवं उसकी धर्म के प्रति रूचि कम होती है। छठे स्थान पर स्थित मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि लग्न पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक का उग्र स्वभाव का एवं क्रोधी होता है।

मित्र / शत्रु राशि

मंगल के उच्च, राशि में होने से जातक शत्रु पर विजय प्राप्त करता है वह पराक्रमी ओर परिश्रमी होता है। प्रायः पुलिस या सेना में अधिकारी होता है। व्यवसायी होने पर भूमि, भवन और वाहन के कार्यों में सफल होता है। शत्रु या नीच राशि में मंगल जातक को अस्वस्थ बनाता है। जातक निर्बल तथा कामी होता है। जातक का खर्ची पर नियंत्रण नहीं होता है जिससे कर्ज लेने की स्थिति बन जाती है। एक बार लिए हुए कर्ज जातक से मुश्किल से चुका पाता है।

षष्ठ भाव विशेष

छठवाँ स्थान रोग एवं शत्रु का स्थान है यहाँ पर स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को रोग हो सकते है। जातक को गठिया वात अथवा हृदय रोग भी होने की संभावना होती है। छठे भाव में मंगल के प्रभाव से जातक प्रायः अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होता है। छोटी बड़ी दुर्घटनाएं होती रहती है जातक में प्रचंड जीवन शक्ति होती है। जिसके प्रभाव से जातक विपरित परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारता और अपने जुझारूपन से लक्ष्य को प्राप्त करता है। छठे भाव में स्थित मंगल जातक प्रबल शत्रुहंता योग बनाता है जिसके कारण जातक सदैव शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है।

7 सप्तम भाव में मंगल का प्रभाव

सप्तम भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक साहसी एवं परिश्रमी स्वभाव का होता हैं। जातक की वाणी में कठोरता होती है। यह क्रोधी स्वभाव का होता है एवं उसे जल्दी क्रोध आता है। जातक आवेश में अपना धैर्य खो बैठता है। जातक के स्वभाव में पूर्तता और ईष्यां भी होती है परंतु जातक बुद्धिमान, पौरूष से पूर्ण और प्रभावशाली होता है।

पूर्ण दृष्टि

मंगल की सप्तम पूर्ण दृष्टि लग्न पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक उग्र स्वभाव का होता है। सप्तमस्थ मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को राज्याधिकार प्राप्त होता है। सप्तमस्थ मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिससे जातक को पैतृक संपत्ति मिलने में कठिनाई होती है एवं कुटुवं से जातक के मतभेद बने रहते है।

मित्र / शत्रु राशि

मित्र, स्व व उच्च राशि में मंगल स्थित होने पर मंगल के कुप्रभावों में कमी आती है। वैवाहिक जीवन मध्यम होता है परंतु जीवनसाथी से मतभेद अवश्य होते है। यात्राओं से धन लाभ होता है। शत्रु व नीच राशि में स्थित मंगल अत्यन्त कष्टप्रद होता है। जातक का वैवाहिक जीवन दुखी होता है। पत्नी की मृत्यु या अलगाव होने की प्रबल संभावनाए होती है। स्त्री की पत्रिका में सप्तम मंगल शत्रु राशि होने पर पति वियोग की संभावना होती है।

सप्तम भाव विशेष

सप्तम भाव में मंगल के प्रभाव से जातक को मध्य आयु में बहुत अधिक संघर्ष और परिश्रम करना पड़ता है। जातक वात रोगी होता है। जातक अपने धन का नाश करता है। पत्नी के सुख में निश्चित रूप से न्यूनता होती है। प्रायः जातक की पत्नी तेज स्वभाव की होती है जिससे वैवाहिक जीवन संतुष्ट कारक नहीं होता है। सप्तम भाव में स्थित मंगल से जातक के वैवाहिक सुख में न्यूनता आती है। पति अथवा पत्नी अलगाव या किसी की मृत्यु होने की संभावना होती है।

8 अष्टम भाव में मंगल का प्रभाव

स्वभाव

अष्टम भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक के स्वभाव में कई प्रकार के व्यसन पाये जाते हैं। जातक मानसिक रूप से अस्थिर होता है। प्रायः जातक लंबे समय तक कोई निर्णय नहीं लग्न मंगल ले पाता हैं जिसके कारण उसे हानि उठानी पड़ती है।

पूर्ण दृष्टि

अष्टम भाव पर स्थित मंगल की सप्तम पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से धन मे न्यूनता आती है। उसे सदैव धन की चिंता बनी रहती है। जातक के पारिवारिक सुख में भी न्यूनता आती है। अष्टम भाव पर स्थिम मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि एकादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को भूमि संबंधी कार्यों में सफलता मिलती है। अष्टम भाव स्थित मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक पराक्रमी एवं साहसी होता है।

मित्र / शत्रु राशि

अष्टम भाव में स्थित मित्र, स्व एवं उच्च राशि का मंगल कुप्रभावों में न्यूनता लाता है। दुर्घटना में मृत्यु नहीं होती कई बार ईश्वरीय कृपा से जान बचती है। मित्र राशि में मंगल के प्रभाव से जातक परिश्रमी होता है। शत्रु व नीच राशि में मंगल होने पर जातक को प्रायः दंगे, लड़ाई, वाहन, दुर्घटना, आगजनी, इत्यादि से कष्ट होने की संभावना होती है। जातक को अग्नि भय रहता है।

अष्टम भाव विशेष

अष्टम भाव में स्थित मंगल अशुभ फलदायी माना जाता है। जो जातक के साथ होने वाली आकस्मिक दुर्घटनाओं की संभावना को बनाता है। अष्टम भाव में स्थित मंगल से जातक की असमय होने वाली मृत्यु की संभावना होती है। अष्टम मंगल के प्रभाव से जातक में अजीर्ण, रक्तचाप, वायुरोग, पेट रोग और रक्त विकार हो सकते है। कभी-कभी शल्य चिकित्सा (सर्जरी) की भी आवश्यकता होती है। इस भाव में मंगल की स्थिति वाले जातक प्रायः अनीति से धन कमाने की लालसा रखते है। जातक को सांसारिक सुख पाने की तीव्र लालसा होती है। जातक हठ योग में सफलता प्राप्त कर सकते है। किसी व्यक्ति की वसीयत पर वाद-विवाद की स्थिति में अतिव्यय की संभावना रहती है।

9 नवम भाव में मंगल का प्रभाव

स्वभाव

नवम भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक यशस्वी, अभिमानी, तेजस्वी और उत्साही होता है। जातक की धर्म के प्रति विशेष आस्था नहीं होती है। जातक एक ही समय में कई कार्य करना चाहता है और वह अपने काम में हस्तक्षेप पसंद नहीं करता है। मंगल के प्रभाव से जातक के स्वभाव में कठोरता होती है। वह विद्रोही स्वभाव का हो जाता है और हर बात में शंकाएं व्यक्त करता है।

पूर्ण दृष्टि

नवम भाव स्थित मंगल की पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक पराक्रमी, भाग्यवान होता है किंतु उसे भाइयों के सुख में कमी होती है। नवम भाव में स्थित मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि द्वादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक उग्र प्रकृति का हो जाता है। जातक के व्यय अधिक होते है और उसे धन संग्रह में मुश्किलें आती है। नवम भाव स्थित मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है जो जातक की माता के लिए कष्टकारी होता है। जातक मातृ भक्त होता है।

मित्र/शत्रु राशि

नवम भाव में स्थित मंगल यदि मित्र, उच्च और स्व राशि में हो तो जातक को कीर्ति और धन प्राप्त होता है। जातक का भाग्योदय अवश्य होता है। उसके यश, मान और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। शत्रु राशि में स्थित मंगल अपकीर्ति फैलाता है। जातक का भाई से क्लेश होता हैं। जातक को व्यवसाय और लाभ में कमी होती है। उसे प्रायः उद्योग एवं धंधों मे हानि होती हैं।

भाव विशेष

नवम भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को वाहन, भवन, भूमि संबंधी कार्यों से विशेष लाभ होता है। नवम भाव पर मंगल के प्रभाव से जातक धर्म कर्म में कम आस्था रखता है। उसकी आध्यात्म और धर्म में विशेष श्रद्धा नहीं होती है। जातक आधुनिक दृष्टिकोण रखता है। आत्म नियंत्रण न होने के कारण सभी परम्पराओं को तोड़ देना चाहता है। जातक ऊँचे पद पर अधिकारी होता है। विदेश यात्रा में या प्रवास में जातक के दुर्घटना के योग बनते है अशुभ योगों के प्रभाव से प्रायः जातक नियमों और कानून का उल्लघंन करता है।

10 दशम भाव में मंगल का प्रभाव

स्वभाव

दशम भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक चंचल स्वभाव का, महत्वाकांक्षी, बलवान, धनवान, सुखी और यशस्वी होता हैं। जातक विख्यात, साहसी, उत्साही और पराक्रमी होता हैं। जातक अत्यन्त स्वाभिमानी होता है।

पूर्ण दृष्टि

दशम भाव में स्थित मंगल की पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर होती है जिससे जातक को उत्तम वाहनों का सुख व धन की प्राप्ति होती है। दशम भाव में स्थित मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि लग्न पर होती हैं जिसके प्रभाव से जातक उग्र स्वभाव का होता हैं। दशम भाव में स्थित मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर होती है। जिसके प्रभाव से जातक शत्रुओं को परास्त करता हैं।

मित्र / शत्रु राशि

मित्र, स्व एवं उच्च राशि में दशम भाव में स्थित मंगल अति शुभ फलदायक होता है जातक को कम प्रयासों से ही अधिक उन्नति प्राप्त होती है। जातक अपने कार्य क्षेत्र में सफल होता है। जातक उच्च कोटि का राजनीतिज्ञ भी बनता है। जातक को धन, मान सम्मान, भूमि वाहन इत्यादि सुखों की प्राप्ति होती है। शत्रु व नीच राशि में स्थित मंगल शुभ प्रभावों में न्यूनता लाता है। जातक को माता पिता का सुख पूर्णतः नहीं मिल पाता है। जातक को व्यवसाय में संघर्ष करना पड़ता है।

भाव विशेष

जातक का प्रायः अपने पिता से वैचारिक मतभेद होता है जिससे पित सुख में कमी होती है। जातक अपने प्रयासों से समस्त कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करता है। जातक उदार होता है और अन्य लोगों द्वारा प्रशंसा प्राप्त करता है। अपने कार्य के प्रति समर्पित होता है। जातक संतान के प्रति समर्पित होता है जातक को संतान कि चिंता भी होती हैं।

11 एकादश भाव में मंगल का प्रभाव

स्वभाव

एकादश भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक का स्वभाव सुशील, सज्जन, प्रतापी और आत्मविश्वास से परिपूर्ण होता है। जातक साहसी, न्यायवान, धैर्यवान एवं ईमानदार होता है। जातक में प्रबल उत्साहहोता हैं जिससे वह कठिन से कठिन कार्य भी आसानी से करता है ।

पूर्ण दृष्टि

एकादश से सप्तम अर्थात् पंचम स्थान पर मंगल की दृष्टि के प्रभाव से जातक को संतान कष्ट होता है। जातक की विद्या में रूकावटें आती है। प्रायः संतान बीमार होती है। जातक के धन संग्रह में समस्याएं आती है प्रायः कर्ज लेने की स्थिति बनती है। एकादश भाव में स्थित मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर होती है जिसके प्रभाव से जातक के धन में न्यूनता आती है। उसे सदैव धन की चिंता बनी रहती है। जातक के पारिवारिक सुख में भी न्यूनता आती है। एकादश भाव में स्थित मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर पड़ती है। जिसके प्रभाव से जातक शत्रुओं को परास्त करता है।

मित्र/शत्रु राशि

मित्र, स्व एवं उच्च राशि का मंगल एकादश स्थान में होने पर जातक में कई साधारण गुण होते है। वह अत्यंत साहसी एवं उत्तम चरित्र वाला होता है। जातक की अधिकाँश इच्छाएँ पूरी हो जाती है। मित्रों से अच्छे संबंध होते है और उनसे लाभ होता है जातक सत्यवादी होता है। शत्रु एवं नीच राशि का मंगल एकादश भाव में होने पर विपरित प्रभाव होते हैं। जातक को मित्रों से हानि होती है। जातक की आय में रुकावटें होती हैं |

विशेष

एकादश स्थान में स्थित मंगल डॉक्टर और सर्जनों के लिए विशेष शुभ फलदायक है जो उन्हें उनके कार्य क्षेत्र में कार्य कुशल, यशस्वी तथा धनी बनाता है। वकील, इंजीनियर, सुनारों और लोहा का व्यापार करने वाले जातकों को जन्म पत्रिका में एकादश मंगल होने पर उन्हें अधिक लाभ होता है। पुलिस व सेना की नौकरी से आय या व्यवसाय की स्थिति में भूमि संबंधी कार्यों से आय होगी।

12 द्वादश भाव में मंगल का प्रभाव

स्वभाव

बारहवें भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक झगड़ालू, जिद्दी, अपव्यय करने वाला और नीच कर्म करने वाला होता है जातक पराये धन की लालसा रखता है। वह चंचल स्वभाव का, क्रोधी प्रवृत्ति वाला तथा दुर्व्यसनी होता है। जातक बचपन से ही दूसरे बच्चों पर अपना रोब जमाता है। जातक प्रशंसा न मिलने पर वह जल्दी ही निराश हो जाता है।

पूर्ण दृष्टि

बारहवें भाव में स्थित मंगल की दृष्टि छठे भाव पर होती है जिसके प्रभाव से जातक शत्रुओं से कष्ट पाता है। जातक की धर्म-कर्म में आस्था कम होती है जातक ऋणी भी होता है। जातक को नेत्र संबंधी परेशानियां होती है। जातक का व्यय अधिक होता है। बारहवें भाव में स्थित मंगल की चतुर्थ दृष्टि तृतीय भाव पर होती है जिसके प्रभाव से जातक पराक्रमी, भाग्यवान होता है किंतु उसे भाइयों के सुख में कमी होती है। बाहरवें भाव में स्थित मंगल की अष्टम दृष्टि सप्तम भाव पर होती हैं जिसके प्रभाव से प्रायः जातक की पत्नी से अनबन बनी रहती है।

मित्र / शत्रु राशि

मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक के स्वभाव के दुर्गुण कम होते हैं। जातक प्रसन्न बलवान, धनी, भ्रमण प्रिय, यात्री, तीव्र बुद्धि, एकाग्रचि और सुखी होता है। शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक अनेक प्रकार के नुकसान उठाता है। जातक की जेल जाने की संभावना होती। हैं अथवा अस्वस्थ होने पर उसे अस्पताल जाना पडता है।

द्वादश भाव विशेष

द्वादश स्थित मंगल से जातक का दांपत्य जीवन कष्टप्रद रहता हैं एवं उसकी पत्नी से अनबन रहती है। द्वादश भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को बाँयी आंख में कष्ट होता है। जातक का बचपन कष्टप्रद होता हैं। जातक को चोरों, हथियारों और शत्रुओं से कष्ट प्राप्त होता है शुभ मंगल के प्रभाव में छोटी-छोटी चोटें | लगती रहती है पर अशुभ मंगल के प्रभाव से हड्डी टूटने के आसार ज्यादा होते है। जातक के अनेक गुप्त शत्रु होते है ।

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