शुक्र यंत्र
शुक्र जल तत्व, मध्यम कद का जलीय ग्रह है। शरीर में यह वीयं, शुक्राणु जननेन्द्रिय, स्वर, गर्भाशय, नेत्र एवं संवेग शक्ति को प्रभावित करता है इसके निर्बल एवं अशुभ होने पर वीर्य संबंधी रोग, गुप्त रोग, मूत्र विकार, स्त्री संसर्ग जन्य रोग, नशीले द्रव्यों के सेवन से उत्पन्न रोग, मधुमेह, उपदंश, प्रदर रोग, कफ, वायु विकार रोग होते हैं। शुक्र सांसारिक सुखों का प्रदायक ग्रह है। रूप-सौंदर्य, प्रेम, वासना, घन-संपत्ति तथा दाम्पत्य सुख का कारक ग्रह है। इसके अतिरिक्त नृत्य संगीत, गायन श्रृंगार की वस्तुओं एवं मनोरंजन से जुड़े सिनेमा, टेलिविजन आदि पर इस ग्रह का विशेष प्रभाव है। पुरुषों के लिए यह स्त्री सुख कारक ग्रह है। शुक्र यन्त्र की साधना विशेषतया भौतिक सुख, संपदा धन, ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए करनी चाहिए। इस यंत्र के नित्य दर्शन, पूजन से साधक को जीवन में कभी भी भौतिक सुख-संसाधनों की कमी नहीं होती है। वैवाहिक जीवन मे दापत्य सुख की वृद्धि होती है तथा पति-पत्नी के संबंधों में सरसता बनी रहती है।
उपयोग शुक्र ग्रह अशुभ, निर्बल स्थिति में हो, अथवा शुक्र की महादशा / अंतरदशा चल रही हो ऐसे समय में इस यंत्र को अपने घर में स्थापित करके नित्य पूजन, दर्शन से सुख शति प्राप्त होती है।
गृहस्थ सुख में कमी हो, पति-पत्नी का एक दूसरे के प्रति कम आकर्षण रहता हो, ऐसी स्थिति में इस यंत्र की नित्य पूजा करने से लाभ होता है।
मंत्र: ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः।