मेष राशी का स्वामी मंगल है | मंगल मेष राशी में 18 अंश तक मूलत्रिकोण का होता है एव शेष अंशो में स्वराशी का होता है | मंगल के मेष राशी में स्थित होने के शुभ प्रभाव से जातक तेजस्वी, साहसी और सर्वप्रिय होता है | जातक सत्यवादी व शूरवीर होता है | जातक नेता होता है | जातक स्वयं के भाग्य का निर्माता भी होता है | ऐसा जातक युद्ध में विजय पाने वाला होता है | जातक अधिकार संपन्न तथा वस्त्रभूषनो से सुखी होता है | मेष राशी मंगल जातक को राजा ( सरकार ) से भूमि सम्मान और धन की प्राप्ति करता है | जातक को सर दर्द, नेत्र रोग,चक्कर, जैसे शारीरिक कष्ट भी होते है | जातक शंकालु स्वभाव का, क्रोधी तथा स्वार्थी भी होता है |
वृषभ राशी का स्वामी शुक्र है | शुक्र मंगल से समता रखता है | क्योंकि शुक्र भोग-विलासी गृह है वही मंगल ब्रम्हचारी है इसलिए मंगल वृषभ राशी में क्रूर कहलाता है इसके प्रभाव से जातक कामी एव डरपोक होता है | जातक अल्प धनि होता है | जातक पराये घर में रहना पसंद करता है | जातक लड़ाकू प्रवृत्ति, कर्कश स्वभाव और सुख से वंचित होता है | जातक अपनी संतान से दु:खी तथा शत्रुओ से पीड़ित होता है |
मिथुन राशी का स्वामी बुध होता है | बुध मंगल से समता का भाव रखता है | किंतु मंगल बुध से शत्रुता का भाव रखता है | इस प्रकार मंगल के मिथुन राशी में स्थित होने से यह मंगल की सम राशी होगी | मंगल के मिथुन राशी पर स्थित होने से जातक स्थुल शरीर वाला होता है | जातक अपने कार्य में दक्ष होता है | जातक अधिकारी वर्ग से कृपापात्र, शिल्पी, जन हितैषी तथा खर्चिले प्रवृत्ति के होते है | जातक परदेश में वास करता है |
कर्क राशी का स्वामी चन्द्रमा होता है | कर्क राशी में मंगल नीच का होता है | कर्क राशी में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक रोगी व दुष्ट होता है | जातक को शारीरिक कष्ट निरंतर सताता रहता है | जातक दीनता युक्त , मलिन बुद्धि , शक्तिहीन , दिन एव मानसिक -दुर्बलता से युक्त होता है | जातक हमेशा सुख की कामना करता है | जातक कृषि व भूमि संबंधि कार्यो में सलग्न रहता है | जातक प्राय: नीच कार्य व नीच लोगो की संगती में रहता है | जातक डरपोक स्वभाव का भी होता है |
सिंह राशि का स्वामी सूर्य होता है । सूर्य व मंगल नैसर्गिक मित्र है इसलिए सिंह राशि मंगल की मित्र राशि होती है। सिंह राशि में मंगल के शुभ प्रभाव से जातक शत्रुओं का नाश करने वाला, साहसी, वीर एवं पराक्रमी होता है। जातक धैर्यवान, बुद्धिमान तथा चतुर प्रकृत्ति होता है। जातक नीतिवान होता है एवं उद्योग में सफलता प्राप्त करता है । ऐसे जातक श्रेष्ठ नेता तथा अनेक अधिकार रखने वाले, दृढ़-निश्चयी, भाग्यवान तथा राज सम्मान प्राप्त करने वाले होते है। सूर्य व मंगल दोनों का अग्नि तत्व है इसलिए जातक को क्रोध बहुत आता है। जातक सदाचारी, स्नेहशील व दुसरो की मदत करता रहता है। जातक निर्भय होता है।
कन्या राशि का स्वामी बुध होता है। बुध मंगल से समता का भाव रखता है किन्तु मंगल बुध से शत्रुता का भाव रखता है। इस प्रकार मंगल के कन्या राशि में स्थित होने से यह मंगल की सम राशि होगी। मंगल के कन्या राशि पर स्थित होने से जातक लोकमान्य व व्यवहार कुशल होता है। जातक की गायन, वादन एवं शिल्प कला में विशेष रूचि होती है। जातक पाप करने से डरने वाला, मुकदमा आदि लड़ने में निपुण तथा धन लाभ विलम्ब से प्राप्त करने वाला होता है।
तुला राशि का स्वामी शुक्र होता है। शुक्र मंगल से समता का भाव रखता है। मंगल के तुला राशि में स्थित होने से जातक मित्रों के साथ कुटिलता करने वाला होता है। जातक पराये धन के प्रति आसक्ति रखता है। ऐसे जातक व्यवसाय और स्त्री पक्ष से लाभ पाने वाला तथा स्त्री के अधीन रहने वाले होते है । जातक अपनी आय से ज्यादा खर्च करने वाला होता है ।
वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल है इसलिए वृश्चिक राशि मंगल की स्वराशि है । मंगल के वृश्चिक राशि में स्थित होने के प्रभाव से जातक क्रूर स्वभाव का होता है। जातक शत्रुओं पर विजय पाने वाला तथा खेती द्वारा धन लाभ पाने वाला होता है। जातक पापी, दुराचारी एवं चालाक प्रवृत्ति का होता है। जातक गुप्त रूप से अपने शत्रुओं व विरोधियों के खिलाफ षड़यंत्र रचता है।
धनु राशि का स्वामी गुरु है । गुरु मंगल का मित्र है इसलिए धनु राशि मंगल की मित्र राशि होगी । धनु राशि में मंगल की स्थिति से जातक कठोर व क्रूर होता है |
मकर राशि का स्वामी शनि है। मकर राशि में मंगल उच्च का होता है। मकर राशि में मंगल के स्थित होने के शुभ प्रभाव से जातक योद्धा, पराक्रमी, शूरवीर, सम्पन्न एवं धनी होता है। जातक राज्याधिकार प्राप्त करता है । जातक ऐश्वर्यवान, महत्वाकांक्षी, कीर्तिमान एवं सुखी होता है। जातक में नेतृत्व के गुण होते है एवं वह अपने क्षेत्र में अग्रणी होता है।
कुंभ राशि का स्वामी भी शनि है । शनि मंगल का नैसर्गिक शत्रु है। इस प्रकार कुंभ राशि मंगल की शत्रु राशि होगी। कुंभ राशि में मंगल के स्थित होने से जातक आचारहीन व लोभी होता है। जातक दुःखी व निर्धन होता है। जातक विनय रहित, मित्रों का विरोधी एवं दुष्ट प्रवृत्ति का होता है । कुंभ राशि का स्वामी शनि और मंगल दोनों ही क्रूर ग्रह है इसलिए ये जातक को क्रूरता प्रदान करते है। जातक कुटुंब का विरोधी, अपव्ययी, अनाचारी एवं व्यसनी होता है। जातक सट्टे, शेयर, जुऍ आदि से अचानक धनहानि पाने वाला होता है।
मीन राशि का स्वामी गुरु होता है। मंगल गुरु का नैसर्गिक मित्र है इसलिए मीन राशि मंगल की मित्र राशि होगी । मीन राशि का स्वामी गुरु और मंगल का जिस पत्रिका में मेल होता है तब कुछ शुभ और कुछ अशुभ फल की प्राप्ति होती है। क्योंकि एक ग्रह सौम्य और दूसरा ग्रह की श्रेणी में आता है। मीन राशि में मंगल के प्रभाव से जातक बहुत बोलने वाला होता है। जातक दुष्ट, निर्दयी, चिंतित, भाग्यहीन तथा मूर्ख संगति से बुद्धि भ्रष्ट करने वाला होता है। जातक के रोगों से ग्रस्त रहता है। जातक बहुत जिद्दी व हठी होता गु है। जातक परदेश जाने को तत्पर रहता है तथा ऋणग्रस्त होता है।
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