आप यादी मध्य रात्री के समय पूजा नाही कर सकते हो तो आप प्रदोष समय मे शिव रात्री कि पूजा अरे इस पूजा से आपको अच्छा आरोग्य ओर धन , शुभ फल , सुख ,शांती, सामंधान मिलेगा . आप अपने काम मे सफलता पाओगे. प्रदोष काल सायंकाळ 06:00 से 07:00 है |
शिवरात्रि की पूजा किस प्रकार से की जाती है| शिवरात्रि के दिन हम मध्य रात्रि के समय में शिव लिंग की सभी प्रकार से पूजा कर सकते हैं यानी की हम भगवान शिव शंकर के शिव लिंग पर, जल और पंचामृत से हम अभिषेक करके, स्वच्छ भगवान को स्नान करवाएं और उसी के बाद हम भगवान शिव शंकर को भस्म लगे और उसी के साथ पुष्प पुष्पमाला भगवान को अर्पण करें और शिवलिंग की पांचोंप चार पूजा करके, भगवान की कपूर आरती करें
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महाशिवरात्रि के दिन हम जो पूजा करेंगे उसमें साहित्य किस प्रकार से हम ला सकते हैं|
पूजा संपन्न होने के बाद शिवलिंग के सामने बैठकर हमें जो शिवरात्रि की महा कथा है शिवरात्रि कथा है| उसे शिवरात्रि के कथा को पढ़ना चाहिए समझना चाहिए तो हमारे जीवन में आने वाले जो दुख है, या हमारा जो मन है वह किस प्रकार से और हमारे लिए जो सुबह फल है वह लाता है वह आपको ऐसा कथा के माध्यम से और यह नीचे दी गई महाशिवरात्रि की कथा के पढ़ने से वह समझ कर आएगा तो इस कथा को आप महाशिवरात्रि के दिन पूजा संपन्न होने के बाद पढ़ सकते हो तो आपको शुभ फल मिलेगा और आप की सभी मनोकामनाएं पूरी होगी
एक बार एक गांव में एक शिकारी रहता था पशुओं के हत्या करके वह अपने कुटुंब को पालता था वह एक साहूकार का ऋणी था लेकिन उसका अरुण समय पर जो चुका सका| क्रोध दिवस साहूकार ने शिकारी को शिव मैथ में बंदे बना लिया सहयोग से उसे दिन शिवरात्रि थी| शिकारी ध्यान मग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा| चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और अरुण चुकाने के विषय में बात की| शिकारी अगले दिन सारा रूल लौटा देने का वचन देखकर बंधन से छूट गया| अपनी दिनचर्या भाती वहजंगल मैं शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख प्यास से व्याकुल था| शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ा बनाने लगा बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्व पत्र से ढका हुआ था| | शिकारी को उसका पता न चला| पड़ाव बनाते समय उसने जो दहानिया तोड़ी, वह सहयोग से सेवा लिंग पर गिरी, इस प्रकार दिनभर भूखे प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गया| एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भणी मुर्गी तालाब पर पानी पीने पहुंची| शिकारी ने धनुष पर तीन ते र चढ़ा कर जो ही प्रत्यंचा खींची मृगी बोली, मैं गर्भिणी हूं, शैग्रही प्रसव करूंगी| तुम एक साथ दो जीवन की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है| मैं अपने बच्चों को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब तुम मुझे मार लेना| शिकारी ने प्रतिज्ञा और मुर्गी झाड़ियां में लुप्त हो गई| प्रत्यंचा छुड़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अचानक ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए| इस प्रकार उसे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी संपन्न हो गया| कुछ ही देर बाद एक और हिरनी उधर से निकली| शिकारी के प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा| समीप आने पर उसने धनुष पर बंद चढ़ाया| तब उसे देख हिरानी ने विनम्रता पूर्वक निवेदन किया, हे शिकारी में थोड़ी देर पहले रितु से निवृत हुई हूं| कामथुर वीर हैं हूं अपने प्रिय कोई खोज में भटक रही हूं|मै अपने पती से मिलकर शीघ्र हि तुम्हारे पास आ जाऊगी | शिकारी ने उसे भी जाने दिया दो बार शिकार को ठोकर माथा ठणका | वह चिंता में पड़ गया| रात्रि का आखिर पहर बीत गया था| तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी यह स्वर्णिम अवसर था उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर में लगाई छोड़ते ही वाला था कि मुर्गी बोली मैं पार्टी में इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊंगी इस समय मुझे मत मारो|
शिकारी ऐसा और बोला सामने आए शिकार को छोड़ दूं मैं ऐसा मूर्ख नहीं| इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार हो चुका हूं मेरे बच्चे भूख प्यास से तड़प रहे होंगे|
उत्तर में मुर्गी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं| द पार्टी मेरा विश्वास कर मैं उन्हें उनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं|
मुर्गी का दिन स्वर सुनकर शिकारी को उसे पर दया आ गई| उसने उसे मुर्गी को भी जाने दिया| शिकार के अभाव में बेल वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़ तोड़ कर फेकता जा रहा था | एक धास्त पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया| शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा| शिकारी की तानी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला है परिधि भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मुर्गियों तथा छोटे-छोटे को मार डाला है तो मुझे भी करने में विलंब ना करो| ताकि उनके वियोग में मुझे एक एक्शन भी दुख न सहना पड़े, मैं उन मुर्गियों का पिता हूं यदि तुमने उन्हें जीवन दान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो| मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊंगा| मुर्गा के बात सुनते ही शिकारी के सामने जुड़े रात| का घटना चक्र घूम गया उसने सारी कथा मुर्गों को सुना दी तब उसने कहा. मेरी तीनों पत्नियों जिस प्रकार प्रतिज्ञा पत्र होकर गई है, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएगी|| अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वास पात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो| मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं| उपवास रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था| उसमें भागवत शक्ति का वास हो गया था| धनुष तथा पान उसके हाथ से छूट गए| भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय करुणा भाव से भर गया| वह अपने अतीत में किए कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा|
थोड़ी ही देर बाद मृगल सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेम भावना देखकर शिकारी को बड़ी लानी हुई| उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई| उसे मुर्गा परिवार को ना मार कर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा दिया और कोमल एवं दयालु बना लिया|| देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था घटना की परिणीति होते ही देवी देवताओं ने उसको वर्ष की, तब शिकारी तथा मुर्गा परिवार मोक्ष को प्राप्त हुआ|
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