जानिए रत्न कैसे होते है ? रत्न का रहस्य |
औषधि मणि मंत्राणांं-ग्रह नक्षत्र तारिका | भाग्य काले भवेत्सिद्धि: अभ्याग्यंं निष्फलंं भवेत् ||
औषधि , रत्न एवं मंत्र ग्रह जनित रोगों को दूर करते है | यदि समय सही हो , तो इनसे उपयुक्त फल प्राप्त होते है | विपरीत समय में ये सभी निष्फल हो जाते है |
जन साधारण रत्नों की महिमा से अत्यधिक प्रभावित है | लेकिन अक्सर रत्न और रंगीन कांच के टुकड़ो में अंतर करना कठिन हो जाता है | रत्न अपने रंग के कारण प्रभाव डालते है , ऐसी धारणा कई लोंगो के मन में आती है परंतु ऐसा नही है | रत्न का रंग केवल उसकी खूबसूरती के लिए होता है | रत्नों की लोकप्रियता बढ़ने का कारण यह भी रहा है की इनसे अध्यात्म , सामाजिक जीवन की हर परेशानी का हल माना जाना लगा है- फिर चाहे वह प्रतिस्पर्धा से निपटने की बात हो या टूटे रिश्ते को जोड़ने का मामला हो | रत्नों का कट और आकार उनके सौंदर्य में इजाफा करता है | रत्नों का समकोणीय कटा होना भी आवश्यक है , यदि ऐसा नही हो तो वे ग्रहों से संबंधित रश्मियों को एकत्रित करने में पूर्ण सक्षम नही होंगे | इसलिए किसी भी रत्न को धारण करने से पहले उसके रंग , कटाव , आकार व कोनसा रत्न आपके लिए अनुकूल होगा इस जानकारियों के बाद ही रत्न धारण करे | रत्नों को धारण करने से मन में एक खास प्रकार की अनुभूति भी होती है , मानो आपने किसी खजाने को धारण कर लिया हो , और वैसे भी रत्नों पर किया निवेश व्यर्थ नाही जाता |
रत्न एवं ग्रहों के संबंध पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण
मानव जीवन पर ग्रहों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। ग्रहों में व्यक्ति के सृजन एवं संहार की जितनी प्रबल शक्ति होती है उतनी ही शक्ति रत्नों में ग्रहों की शक्ति घटाने तथा बढ़ाने की होती है। वैज्ञानिक भाषा में रत्नों की इस शक्ति को हम आकर्षण या विकर्षण शक्ति कहते हैं। रत्नों में अपने से संबंधित ग्रहों की रश्मियों, चुम्बकत्व शक्ति तथा वाइब्रेशन (स्पंदन) को खींचने की शक्ति के साथ-साथ उसे परावर्तित कर देने की भी शक्ति होती है। रत्न की इसी शक्ति के उपयोग के लिए इन्हें प्रयोग में लाया जाता है।
रत्न धारण करने की विधि
रत्नों में प्रकाश रश्मियों के परावर्तन की क्षमता होती है। इसलिए प्रकाश किरणों के संपर्क में आते ही वे झिलमिलाने लगते हैं। कुछ रत्नों में स्वर्ण आभा होती है और वे रात्रि के अंधेरे में प्रकाशवान होते रहते हैं। भारतीय ज्योतिष में सर्वप्रथम इनका उपयोग संबंधित ग्रह को बलवान बनाने के लिए किया जाता है। जातक की जन्मकुंडली या गोचर महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा में जो ग्रह अनिष्ट कर रहा हो, उसके रत्न को दान करना प्राचीन महर्षियों ने लिखा है। साथ ही जो ग्रह निर्बल हो, उसे बलवान करने के लिए रत्नों को संबंधित ग्रह के मंत्रों से जागृत कर पहनना बताया गया है। बिना जन्मकुंडली के अध्ययन के रत्न पहनने का परामर्श देना या रत्न पहनाना लाभ के स्थान पर हानिकारक सिद्ध हो जाता है।
यदि जन्मकुंडली के अध्ययन के पश्चात रत्न धारण किया जाए तो पूर्ण लाभ प्राप्त किया जा सकता है और अशुभता से भी बचा जा सकता है, जैसे मोती रत्न को यदि मेष लग्न का जातक धारण करे, तो उसे लाभ प्राप्त होगा। कारण मेष लग्न में चतुर्थ भाव का स्वामी चंद्र होता है। चतुर्थेश चंद्र लग्नेश मंगल का मित्र है। चतुर्थ भाव शुभ का भाव है, जिसके परिणामस्वरूप वह मानसिक शांति विद्या सुख, गृह सुख, मातृ सुख आदि में लाभकारी होगा। यदि मे लग्न का जातक मोती के साथ मूंगा धारण करे, तो लाभ में वृद्धि होगी ।
रत्न को धारण करने की विधि के बारे में प्राचीन भारतीय ज्योतिष आचार्यों ने बताया है कि रत्न धारण करने से पूर्व, उस रत्न को रत्न के स्वामी के वार में, उसी की होरा में, रत्न के स्वामी के मंत्रों से जागृत करा कर धारण करना चाहिए। रत्न धारण करते समय चंद्रमा भी उत्तम होना आवश्यक है। यदि जो रत्न धारण किया जाए, वह शुभ स्थान का स्वामी हो, तो शरीर से स्पर्श करता हुआ पहनना बताया गया है।
रत्न को धारण करने से पूर्व परीक्षा के लिए उसी रंग के सूती कपडे में बांध कर दाहिने हाथ में बांध कर फल देखें। परीक्षा के लिए रत्न के स्वामी के वार के दिन ही हाथ में बांधे और अगले, यानी आठ दिन बाद, उसी वार के पश्चात, नवें दिन उसे हाथ से खोल लें, तो रत्न द्वारा गत नौ दिनों का शुभ-अशुभ का निर्णय हो जाएगा।
रत्नों को धारण करने से पूर्व यह भी भली भांति देख लें कि रत्न दोषपूर्ण नहीं हो, अन्यथा लाभ के स्थान पर वह हानि का कारण माना गया है। यदि किसी रत्न, जैसे मोती में आड़ी रेखाएं या क्रास या जाल हो तो सौभाग्यनाशक, पुखराज में हों तो बंधुबाधव नाशक, पन्ना में हों, तो लक्ष्मीनाशक, पुखराज में हों तो संतान के लिए अनिष्टकारक, हीरे में हों तो मानसिक शांतिनाशक, नीलम में हों तो रोगवर्धक और धन हानिकारक हैं। यदि गोमेद में हों तो ये शरीर में रक्त संबंधी बीमारी पैदा करती हैं, लहसुनिया में हों तो शत्रुक, माणिक में हो तो गृहस्थ सुख का नाश, मूंगे में हों, तो सुख संपत्ति के लिए नष्टकारक हो सकता है।
इसी प्रकार मोती में धब्बे, दाग हों तो मानसिक शांति में बाधाकारक, पुखराज में हों तो धन-संपत्तिनाशक, पन्ना में हों तो स्त्री के लिए बीमारीकारक, मूंगे में हों तो पहनने वाले जातक के लिए बीमारीकारक, माणिक में हों तो स्वयं जातक को (पहनने वाले को) बीमार करते हैं। हीरे में हों तो मृत्युकारक, नीलम में हों तो हर क्षेत्र में बिन बुलाई परेशानियां गोमेद में हो तो संपत्ति और पशु धन का नाशक, लहसुनिया में हों तो शत्रुवर्धक माने गये हैं।
जब एक से अधिक रत्न धारण करें तो रत्न के शत्रु का भी ध्यान रखा जाना चाहिए, जैसे हीरे के शत्रु रत्न माणिक और मोती हैं। मूंगे का शत्रु रत्न पन्ना है। नीलम के शत्रु रत्न माणिक, मोती, मूंगा हैं। माणिक के शत्रु रत्न हीरा एवं नीलम हैं। अतः इस बात को मद्देनजर रखते हुए रत्न को रत्न के धातु में ही पहनना चाहिए। रत्न को पंच में धातु सोना, चांदी, तांबा, लोहा, कांसा की समान मात्रा की अंगूठी में भी धारण किया जा सकता है। ज्योतिष में प्रत्येक भाव से आठवां भाव उसका मारक माना गया है। इसे मद्देनजर रखते हुए ही रत्न धारण करना चाहिए।
किस प्रकार बनते हैं रत्न?
ऋग्वेद के अनुसार रत्नों की उत्पत्ति में अग्नि सहायक होती है। भूमि के गर्भ में जब विभिन्न रासायनिक तत्व आपस में मिलते हैं, तो भूमि की अग्नि से पिघलकर रत्न बनते हैं इस रासायनिक प्रक्रिया में तत्व आपस में एकजुट होकर विशिष्ट प्रकार के चमकदार, आभायुक्त रत्न बन जाते हैं तथा इनमें कई गुणों का प्रभाव भी समायोजित हो जाता है। खनिज रत्नों में कार्बन, मँग्नीज, सोडियम, तांबा, लोहा, फासफोरस, बेरियम, गंधक, जस्ता, कैल्सियम जैसे तत्वों का संयोग होता है। इनके कारण ही रत्नों में रंग रूप, कठोरता व आभा का अंतर होता है। अपने इन्हीं गुणों के कारण ये लोगों को आकर्षित करते हैं।
रत्न कौन से हैं और कैसे काम करते हैं ?
सूर्य से ले कर केतु तक नव ग्रहों के लिए नौ मूल रत्न हैं- सूर्य के लिए माणिक, चंद्र का मोती, मंगल का मूंगा, बुध का पन्ना, गुरु का पुखराज, शुक्र का हीरा, शनि का नीलम, राहु का गोमेद एवं केतु का लहसुनिया। ये रत्न इन ग्रहों से आ रही किरणों को आत्मसात करने में सक्षम हैं एवं ग्रहों से आ रही किरणों के साथ अनुनाद (resonance) स्थापित कर, शरीर में किरणों के प्रवाह को बढ़ाते हैं। उपरत्न सस्ते होते हैं एवं उनका अनुनाद रत्नों के अनुनाद के नजदीक ही होता है। अनुनाद बिल्कुल सही से न होने के कारण इनका असर दस प्रतिशत से अधिक नहीं होता। अतः मूल रत्न ही धारण करने चाहिएं।
कहां पाए जाते हैं रत्न?
ज्यादातर रत्न समुद्री इलाकों व पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ये अफ्रीका महाद्वीप के कांगो, घाना व ब्राजील, बर्मा, भारत, श्री लंका, अमेरिका, आस्ट्रेलिया तथा रूस आदि विभिन्न में पाए जाते हैं।
रत्न, उपरत्न, कृत्रिम रत्न व रंगीन कांच में क्या अंतर है?
चारों में अंतर उनकी ग्रह रश्मियों को अवशोषित करने की क्षमता पर आधारित है। रत्न सब से अधिक रश्मियां ग्रहण करते हैं। उनके बाद उपरत्न और फिर कृत्रिम रत्न । रंगीन कांच न के बराबर रश्मियां ग्रहण करता है।
क्यों पहनें रत्न?
हम जिस भौतिक युग में जी रहे हैं, वहां व्यक्ति जल्दी प्रगति की सीढ़ियां चढ़ना चाहता है। इसलिए वह रत्न, ज्योतिष एवं मंत्र का सहारा लेता है, व्यक्ति सर्व सुख तत्काल चाहता है। भाग्य परिवर्तन में रत्नों का योगदान अवश्य रहा है। आप हर सौ लोगों में अस्सी लोगों को रत्न की अंगूठी पहने देखते हैं, वे इन्हें अकारण ही नहीं पहने रहते, बल्कि उनमें उनका भाग्य और भविष्य छिपा होता है।
रत्न को कैसे परखें ?
रत्न को आंखों से देख कर ही जाना जा सकता है कि उसमें कोई दरार तो नहीं है। रत्न का पारदर्शी होना एवं उसमें चमक होना उसकी किस्म को दर्शाते हैं। उसका कटाव एक कोण में होना भी आवश्यक है। यदि कटाव ठीक नहीं होगा, तो रत्न रश्मियों को एकत्रित करने में सक्षम नहीं रहेगा |
क्या रत्न प्रभावशाली रहेगा ?
ग्रह कैसी राशि में स्थित है, यह निर्धारित करता है कि कौन सा उपाय फल देगा, जैसे यदि ग्रह वायु राशि में स्थित हो, तो मंत्रोच्चारण, कथा, पूजा आदि सिद्ध होंगे। ग्रह अग्नि राशि में हो, तो यज्ञ, व्रत आदि, जल राशि में दान, पानी में बहाना, औषधि स्नान आदि एवं पृथ्वी तत्व में रत्न, यंत्र, धातु धारण एवं देव दर्शन आदि। यदि जन्मपत्री में योगकारक ग्रह निर्बल हो, तो रत्न धारण, यंत्र धारण एवं मंत्र द्वारा उपचार करना चाहिए। यदि मारक ग्रह बली हो, तो उसे वस्तु बहा कर, या दान से निर्बल बनाना चाहिए, अन्यथा मंत्रोच्चारण एवं देव दर्शन द्वारा कारक में परिवर्तन करना चाहिए। ऐसे में रत्न धारण करने से ग्रह का मारक तत्व और उभरेगा। यदि योगकारक ग्रह बली हो, या मारक ग्रह निर्बल हो, तो किसी उपाय की आवश्यकता नहीं है।
क्या रत्न हमारे लिए शुभ है ?
यह जान लेना परम आवश्यक है कि रत्न शुभ फल देगा. या दे रहा है। विशेष रूप से नीलम को परख कर ही पहनें। कई बार नग विशेष में कुछ त्रुटि होने के कारण कष्ट झेलने पड़ते हैं। नीलम में यदि कुछ लालपन हो, तो वह खूनी नीलम कहलाता है और दुर्घटना करवा सकता है। अतः रत्न को परखने के लिए उसे अपने हाथ पर बांध लें। यदि ऐसा करने से स्फूर्ति महसूस करते हैं, तो रत्न ठीक है, अन्यथा दूसरा नग देख लें। यदि दो-तीन नग परखने के बाद भी ठीक नहीं लगता, तो वह रत्न धारक को ठीक फल नहीं देगा।
क्या अच्छे रत्नों का प्रभाव अधिक होता है?
अच्छे रत्नों का प्रभाव निश्चय ही अधिक होता है क्योंकि ये रत्न रश्मियों को ज्यों की त्यों अवशोषित करने में सक्षम होते हैं। जैसे एक साफ शीशे के आरपार सब कुछ साफ-साफ दिखाई देता है और धुंधले शीशे के आरपार देखने में कठिनाई होती है।
अच्छा रत्न धारण करने में सक्षम नहीं हो तो क्या वह उपाय से वंचित रह जाएगा?
जैसे कोई गरीब व्यक्ति अपना डॉक्टरी इलाज नहीं करा पाता है वैसे ही वैदिक रत्न धारण करने में असमर्थ व्यक्ति रत्न के उपाय से वंचित रह जाता है। जिस प्रकार डॉक्टरी इलाज में भी कम मूल्य की दवाइयां होती हैं जिनका सेवन कर या फिर परहेज या संयम द्वारा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है, उसी प्रकार, रत्न के अभाव में जातक अन्य उपाय जैसे दान, व्रत, मंत्र जप आदि के द्वारा कष्ट का निवारण कर सकता है।
अंगूठी और लॉकेट में रत्न धारण करने में क्या अंतर है?
मस्तिष्क के विशेष केंद्र बिंदु हमारी उंगलियों पर स्थित हैं। अतः उंगली विशेष में धारण करने से रत्न द्वारा एकत्रित रश्मियों का प्रभाव अधिक प्राप्त होता है। उतना प्रभाव रत्न को लॉकेट में पहनने से नहीं मिलता। अतः लॉकेट में लगभग दोगुने भार का रत्न पहनना चाहिए ताकि पूर्ण प्रभाव प्राप्त हो सके।
क्या दूसरे के पहने हुए रत्न को धारण करना चाहिए?
दूसरे का पहना हुआ रत्न पहनना सर्वथा वर्जित है क्योंकि उसके माध्यम से पहले जातक के ग्रहों का शुभाशुभ प्रभाव भी, जो उसमें अवशोषित हो चुका होता है, दूसरे जातक पर पड़ सकता है। यदि पहनना ही हो, तो नजदीकी । रिश्तेदार का पहना हुआ रत्न ही धारण करें, जैसे माता-पिता, पति या पत्नी का पहना हुआ रत्न, किसी अन्य का नहीं। ऐसे रत्न को भी धारण करने से पहले उसे पूरी तरह शुद्ध करा लें।
क्या तप्त रत्न कम प्रभावशाली होते हैं?
रत्नों को गर्म करने से उसकी गुणवत्ता पर विशेष असर पड़ता है, अतः वे उतने प्रभावशाली नहीं रहते जितने कि । प्राकृतिक ।
क्या छोटे-छोटे कई रत्न एक रत्न के बराबर होते हैं?
यह इस तथ्य के समानांतर है कि जैसे एक कमरे में सौ मोमबत्तियां जल रही हों और दूसरे कमरे में बड़ा बल्ब जला रहा हो। बड़े बल्ब की रोशनी सौ मोमबत्तियों की रोशनी से कहीं ज्यादा होगी। अतः एक बड़ा रत्न धारण करना ही उत्तम है।
रत्न धारण करने के समय का क्या महत्व है?
रत्न में ग्रह के देवता का वास माना गया है। बिना देव के रत्न कांच के टुकड़े के बराबर होता है। रत्न धारण करते समय उसमें देवता का आवाहन किया जाता है। आवाहन से देव उस रत्न में बस जाएं इसके लिए उनका वार वहोरा का समय चुना जाता है। अतः रत्न को को प्रभावशाली बनाने के लिए उपयुक्त समय पर धारण करने का विशेष महत्व है। धारण करते समय ग्रह बल भी पूर्ण होना आवश्यक है।
कौन से ग्रह का रत्न धारण करें?
रत्न ग्रह को बली करने के लिए पहनाया जाता है। किसी ग्रह से संबंधित पीड़ा हरने के लिए, अथवा जिस ग्रह की दशा, या अंर्तदशा चल रही हो, उस ग्रह का रत्न धारण करना चाहिए। लेकिन यह आवश्यक है कि वह ग्रह जातक की कुंडली में योगकारक हो, मारक, बाधक, नीच या अशुभ न हो। अष्टमेश यदि लग्नेश न हो, तो सर्वथा त्याज्य ही है। योगकारक ग्रह यदि निर्बल हो, तो रत्न अवश्य धारण करना चाहिए।
क्या रत्न का वजन सवाया होना आवश्यक है?
प्रायः सवाया वजन ही शुभ माना जाता है और पौना अशुभ। लेकिन यह सर्वथा आवश्यक नहीं कि वजन सवाया ही हो, क्योंकि जो वजन एक इकाई में सवाया होता है, वह दूसरी इकाई में पौना हो जाता है, जैसे पौने पांच रत्ती लगभग सवा चार कैरेट होता है। रत्ती भी कई प्रकार की होती है, जैसे कच्ची या पक्की । अतः रत्न का कुल वजन मुख्य है, न कि सवाया होना ।
क्या शरीर से रत्न का स्पर्श आवश्यक है?
रत्न का शरीर से स्पर्श अति आवश्यक है; केवल हीरे को छोड़ कर, जो प्रतिबिंब से काम करता है, न कि अपवर्तन से। रत्न का कोण भी सम होना चाहिए, जो उंगली को छुए। लॉकट आदि में भी रत्न इसी प्रकार छूते हुए जड़वाने चाहिए। लेकिन उंगली रश्मियों को आत्मसात करने में अधिक सक्षम होती है। लॉकेट में कम से कम दोगुने वजन का रत्न होने पर उतना असर होगा, जितना अंगूठी में । अतः रत्न को अंगूठी में पहनना ही श्रेष्ठ है।
किस धातु में रत्न जड़वाएं?
स्वर्ण रत्न के लिए उत्तम धातु है। सभी नौ ग्रहों के लिए स्वर्ग का उपयोग शुभ है। हीरे के लिए प्लेटिनम अत्युत्तम है। नीलम तथा गोमेद के लिए पंच धातु मिश्रित चौदह कैरेट का सोना उत्तम है। मोती के लिए चांदी इस्तेमाल की जा सकती है मूंगे के लिए तांबे की अपेक्षा तांबा मिश्रित स्वर्ण अत्युत्तम है। माणिक्य, पन्ना, पुखराज तथा लहसुनिया बाइस कैरेट सोने में पहनें।
रत्न किस उंगली एवं हाथ में पहनें ?
रत्न पुरुष को दाएं एवं स्त्री को बाएं हाथ में धारण करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति बाएं हाथ से काम करता है, या कोई स्त्री पुरुष की भांति काम-काज करती है, तो भी स्त्री को बाएं एवं पुरुष को दाएं हाथ में ही रत्न धारण करना चाहिए। छोटी उंगली में हीरा एवं पन्ना, अनामिका में माणिक्य, मोती, मूंगा तथा लहसुनिया, बीच की उंगली में नीलम तथा गोमेद एवं तर्जनी में पुखराज पहनना उत्तम है। हीरा अनामिका एवं बीच की उंगली में पहना जा सकता है। पन्ना अनामिका में तथा लहसुनिया छोटी उंगली में भी पहने जा सकते हैं।
रत्न कब तथा कैसे धारण करें?
रत्न को धारण करने के लिए आवश्यक है कि पहली बार उसे पहनते समय मुहूर्त शुभ हो एवं चंद्र बली हो; समय, वार एवं नक्षत्र रत्न के अनुकूल हों। ऐसे समय में रत्न को, गंगा जल एवं पंचामृत से धो कर, धूप, दीप दिखा कर, ग्रह के मंत्रोच्चारण सहित, धारण करना चाहिए। इस प्रकार रत्न के शुभ फल में अभिवृद्धि होती है एवं अशुभ फल में न्यूनता आती है। माणिक्य रविवार, मोती सोमवार, मूंगा मंगलवार, पन्ना तथा लहसुनिया बुधवार, पुखराज गुरुवार, हीरा शुक्रवार, नीलम और गोमेद शनिवार को धारण करने चाहिए। नीलम सूर्यास्त से पहले, गोमेद सूर्यास्त के बाद और अन्य सभी रत्न प्रातः धारण करना श्रेष्ठ होता है।
रत्न शकुन
यदि रत्न खो जाए, या चोरी हो जाए, तो समझें कि ग्रह के दोष खत्म हुए। यदि रत्न में दरार पड़ जाए, तो समझें कि ग्रह बहुत प्रभावशाली है- उसकी शांति करवाएं। यदि रत्न का रंग फीका पड़े, तो ग्रह का असर शांत हुआ समझें ।
कितने वजन का रत्न पहनें ?
नग का वजन शरीर के वजन एवं ग्रह की निर्बलता के अनुपात में होना चाहिए। यदि ग्रह अति क्षीण है, तो अधिक वजन का नग पहनना चाहिए। महिलाओं को तीन रत्ती से पांच रत्ती तक एवं पुरुषों को पांच रत्ती से आठ रती तक के नग पहनने चाहिएं। हीरा एक अपवाद है। यह कम वजन एवं कई टुकड़ों में भी हो सकता है।
रत्न कितने वजन का होना चाहिए?
जिस रत्न को धारण करने की सलाह दी जाती है, वह कितने वजन का हो? ज्योतिष की अनेक पुस्तकों को छानने के बाद भी ऐसी कोई ठोस विधि हाथ नहीं लगी, जो सर्वमान्य हो। फिर भी जो ज्ञात है, उसे इस प्रकार देखा। जा सकता है :
जातक के भार के अनुसार
आम तौर पर रत्न का वजन कम से कम 3 रत्ती तो होना ही चाहिए । फिर भी सामान्यतः जातक के पहनाने पर अधिकांश विद्वानों की सहमति है अर्थात 10 किलो पर 1 रती; यानी जालक 60 किलो का है 6 रत्ती का रत्न पहनना चाहिए।
जातक की उम्र के अनुसार
बच्चों को कम वजन के रत्न बतलाये जाते हैं। पुरुषों के वयस्क होने पर अधिक वजन के रत्न बतलाए जाते है।
रत्न कब तक पहनें ?
कोई भी रत्न तीन साल तक ही पूर्णतया फल देने में सक्षम है। केवल हीरा पूर्ण काल तक पूरे फल देता है। अत: आवश्यक है कि तीन वर्ष बाद रत्न बदल लें, या उस रत्न को उतार कर रख दें एवं कुछ साल बाद दोबारा पहनें, या रत्न किसी और को दे दें। यदि वांछित कार्य हो गया हो, या दशा बदल गयी हो, तो भी रत्न उतार देना चाहिए।
किस रत्न के साथ क्या न पहनें ?
माणिक, मोती, मूंगा, पुखराज के साथ नीलम तथा गोमेद नहीं पहनना चाहिए। हीरा, पन्ना और लहसुनिया के साथ अन्य कोई भी रत्न धारण करने में दोष नहीं है। लेकिन हीरे के साथ माणिक्य, मोती एवं पुखराज को परख कर ही पहनना चाहिए।
रत्न कैसे उतारें
आम तौर पर लोग रत्न को उतारने के लिए समय आदि पर ध्यान नहीं देते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए। रत्न को उसके वार के दिन ही उतार कर रखना चाहिए। उतार कर उसे, गंगा जल में धो कर, सुरक्षित स्थान पर रखें एवं उसके बाद उस ग्रह की वस्तुओं का दान करें।