होळी 2024 holi 2024

rang panchami 2024 | होली कब है 2024

होली 2024 हम होली का त्योहार क्यों मनाते हैं ? जानिए इसके पीछे का कारण

होळी का दहन दिनाक :- 24 मार्च 2024

भद्रा का समय :- 09:56 से 23:14

धुलीवंदन (करिदिन) :- 25 एप्रिल 2024

हुताशनी पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 24, 2024 को 09:54 AM बजे हुताशनी पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 25, 2024 को 12:29 PM बजे

भद्रा पूँछ – 06:33 PM से 07:53 PM भद्रा मुख – 07:53 PM से 10:06 PM

होलिका दहन मुहूर्त – 11:13 PM से 12:27 AM, मार्च 25 अवधि – 01 घण्टा 14 मि.

होळी 2024 holi 2024
कब है होळी 2024

2024 होलिका दहन

हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन, जिसे होलिका दीपक और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है, को सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो, करना चाहिये। भद्रा, जो पूर्णिमा तिथि के पूर्वाद्ध में व्याप्त होती है, के समय होलिका पूजा और होलिका दहन नहीं करना चाहिये। सभी शुभ कार्य भद्रा में वर्जित हैं।

होलिका दहन के मुहूर्त के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये –

भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। परन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये। धर्मसिन्धु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया है। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया होली दहन अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा है जिसका परिणाम न केवल दहन करने वाले को बल्कि शहर और देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता है। किसी-किसी साल भद्रा पूँछ प्रदोष के बाद और मध्य रात्रि के बीच व्याप्त ही नहीं होती तो ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता है। कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष और भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।

होलिका दहन का मुहूर्त किसी त्यौहार के मुहूर्त से ज्यादा महवपूर्ण और आवश्यक है। यदि किसी अन्य त्यौहार की पूजा उपयुक्त समय पर न की जाये तो मात्र पूजा के लाभ से वञ्चित होना पड़ेगा परन्तु होलिका दहन की पूजा अगर अनुपयुक्त समय पर हो जाये तो यह दुर्भाग्य और पीड़ा देती है।

इस पृष्ठ पर दिया मुहूर्त धर्म-शास्त्रों के अनुसार निर्धारित है। हम होलिका दहन के श्रेष्ठ मुहूर्त को प्रदान कराते हैं। इस पृष्ठ पर दिया मुहूर्त हमेशा भद्रा मुख का त्याग करके निर्धारित होता है क्योंकि भद्रा मुख में होलिका दहन सर्वसम्मति से वर्जित है। होलिका दहन के साथ-साथ इस पृष्ठ पर भद्रा मुख और भद्रा पूँछ का समय भी दिया गया है जिससे भद्रा मुख में होलिका दहन से बचा जा सके। यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले और मध्य रात्रि के पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त और मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता है।

रंगवाली होली, जिसे धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता है, होलिका दहन के पश्चात ही मनायी जाती है और इसी दिन को होली खेलने के लिये मुख्य दिन माना जाता है।

द्रिक पञ्चाङ्ग की सम्पूर्ण मण्डली आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनायें देती है।

2024 में होली कितने मार्च को है? फाल्गुन पूर्णिमा कब है 2024?

holi इस साल होळी कब होगी फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन और इसके अगले दिन होली मनाई जाती है। इस साल फाल्गुन पूर्णिमा तिथि 24 मार्च को सुबह 09 बजकर 54 मिनट से शुरू होगी। वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 25 मार्च को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर होगा। 24 मार्च को होलिका दहन है।

होळीपौर्णिमा– ‘प्रदोषव्यापिनीग्राह्या पौर्णिमा फाल्गुनी सदा’ या वचनानुसार होळीपौर्णिमा ही

मम सकुटुंबस्य सपरिवारस्य सर्वापच्छांति शमनपूर्वक सकल शुभफल प्राप्त्यर्थं ढुंढाप्रीतिकामनया होलिकापूजनं करिष्ये ।’

नंतर घरुन आणलेले पदार्थ नारळ, पुरणपोळी होळीत अर्पण करुन होळीस तीन प्रदक्षिणा घालाव्यात. वरिल संकल्यात ढुंढा राक्षसीचा उल्लेख आला आहे त्याचा संदर्भ पुढील प्रमाणे – सत्ययुगात ढुंढा नावाच्या राक्षसीस शंकराकडून वर मिळाला होता व ती लहान मुलांस पीडा देत असे.भयभीत झालेल्या जनतेने रघुराजास आपले गा-हाणे सांगितले.रघुराजाने राजपुरोहीतास या राक्षसीच्या बंदोबस्ताचा उपाय विचारला असता राजपुरोहीताने सांगितले की फाल्गुन पौर्णिमेस वाळलेली लाकडे, गोवऱ्या यांच्या सहाय्याने प्रदोषकाळी अग्नि प्रज्वलित करावा व त्याचे भस्म लहान मुलांस लावावे ज्यायोगे त्यांचे संरक्षण होईल.

होळी करण्यामागचे इतिहासिक कारण ?

 

होळी साजरी करण्या मागे एक प्राचीन इतिहास आहे. हिरण्यकश्यपू नावाचा राजा होता जो स्वतःला खूप बलवान समजायचा. स्वतःच्या अहंकारामुळे तो देवतांची घृणा करायचा तसेच त्याला देवांचा देव भगवान विष्णू चे नाव ऐकणे देखील पसंत नव्हते. परंतु त्याचा पुत्र प्रल्हाद हा भगवान विष्णू चा परम भक्त होता. आणि हे हिरण्यकश्यपू ला अजिबात पसंत नव्हते. तो वेगवेगळ्या प्रकारे त्याला घाबरवण्याचा प्रयत्न करत असे जेणे करून पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णूची उपासना करणे सोडून देईल. परंतु ….

भक्त प्रह्लाद त्यांना न डगमगता त्याच्या भगवान विष्णूच्या भक्तीत लीन होत असे. ह्या सगळ्याला कंटाळून राजाने एक योजना बनवली, आणि त्यानुसार आपली बहीण होलिका जिला वरदान मिळाले होते कि ती आगीवर विजय प्राप्त करू शकते तसेच कोणतीही अग्नि तिला जाळू शकत नाही. राजाने होलिकेला भक्त प्रह्लाद ला घेऊन अग्नीच्या चितेवर बसण्यास सांगितले. प्रह्लाद आपल्या आत्या सोबत अग्नीच्या चितेवर बसला व भगवान विष्णूच्या नामस्मरणात लीन झाला आणि थोड्याच वेळात होलिका जळायला लागली आणि एक आकाशवाणी झाली आणि ज्यानुसार होलिकेला आठवलं कि तिला वरदानात असेही सांगितले होते कि ज्यावेळी ती तिच्या वरदानाचा दुरुपयोग करेल तेंव्हा ती स्वतः जळून राख होईल. भक्त प्रह्लाद ला अग्नी काहीही करू शकली नाही. मात्र होलिका त्या अग्नीत जळून भस्म झाली. अश्या प्रकारे त्या दिवशी लोकांनी उत्सव साजरा केला आणि तो दिवस होळी दहन म्हणून ओळखू लागले. दुसऱ्या दिवशी रंगाने हा सण उत्सवात साजरा करू लागले.

होळी कश्या प्रकारे साजरी करतात ?

प्रत्येक ठिकाणी होळीची जागा ठरलेली असते. त्या ठिकाणी एक छोटा खड्डा तयार केला जातो, आणि त्या तयार केलेल्या खड्डया मध्ये झाडाची एक फांदी लावून त्या फांदिला लागून गोलाकार लाकडे रचून होळी(Holi) तयार केली जाते. नंतर तयार केलेल्या होळीला पुरण पोळीचा नैवेद्य दाखवला जातो, आणि तिची पूजा केली जाते. मग हि होळी पेटवतात आणि होळी भवती गोल चक्कर मारत सगळे गाणी म्हणत नाचतात. असे म्हणतात कि होळीच्या ह्या अग्निमध्ये सर्व वाईट क्रूर गोष्टींचा अंत होतो.

होळी holi 2021

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