कालसर्प योग काय आहे? kalsarpa yog

क्या होगा यदि विष दोष कुंडली में होतो जीवन का भविष्य कैसा होगा |

कहीं आपकी परेशानी का कारण जन्मकुंडली में “विषदोष” तो नहीं

कुंडली में शनि ओर चंद्र की युती से विषदोष का निर्माण होता है जैसे:- १- दोंनो ग्रहों का एकसाथ बैठना। २- शनि-चंद्र का परस्पर दृष्टि योग। ३- एक दूसरे के नक्षत्र में होना। ४- विषय परिस्थितियों में.. इनका ग्रह परिवर्तन भी विषदोष के परिणाम देता है। 

kundali1-1547094032

Vishadosh in kundali | आखिर शनि और चंद्र तो मित्र होते हैं फिर इनका संबंध दोष क्यों ❓ 

चलो समझते हैं….  चंद्र सबसे तीव्रगामी और शनी सबसे मंदगामी होता है। अब दोनों का एक होना मतलब…..  “गाड़ी का क्लच-ब्रैक व एक्सीलेटर को एक साथ दवाकर चलाना यानि कि जिंदगी की गाड़ी के इंजन का घुटते रहना अथवा गर्म हो कर सीज होने का खतरा बने रहना या फिर क्लच प्लेट चिपक जाना । …. हां एक खास बात और इस स्थिति में गाडी चलाने पर फ्यूल “एनर्जी” भी बहुत खर्च होगी परिणाम ना के बराबर।” ….. कुल मिलाकर जीवन गती में असंतुलन ।।

           सायद चंद्र शनि… दोनों मित्र होकर भी नैसर्गिक तौर पर भिन्न गतिशीलता व स्वभाव वाले हैं इसलिए दोनों का योग… सामान्यतः विषाक्त फल ही देता है…. इनकी युती का द्वादश भावों में विस्तृत फल देखते हैं 👇👇

1 लग्न में विषदोष होने पर व्यक्ति का आत्मवल कमजोर “आत्महत्या तक के विचार आना” हीनभावना से ग्रसित, दूसरों से तुलना करके स्वयं को कमजोर मानने से दुखी। हां इसका प्रभाव सातवें भाव पर भी पडता है। इससे दांपत्य जीवन कलह पूर्ण एवं असंतुष्ट ही रहता है आपसी शंका कुशंकाओं से भरा रहता है।।

2 दूसरे भाव में विषयोग होने पर व्यक्ति अक्सर जीवनभर धन के अभाव से जूझता रहता है। कुटुंब से दूरियां वह असहयोग मिलता है। तथा वाणी दोष या कटुभाषी हो सकता है।

3 तृतीय भाव में विष योग व्यक्ति का पराक्रम कमजोर कर देता है और निरास सी महसूस करता रहता है । और वह अपने भाई-बहनों से कष्ट पाता है। स्वयं के कठिन परिश्रम से ही जीवन यापन संभव होता है ।।

4 चतुर्थ भाव सुख स्थान में विषदोष होने पर सुखों में कमी आती है और मातृ सुख कम मिल पाता है। मकान में  नकारात्मक अहसास बेचैनी रहना एवं शीलन या घुटन सी रहना। सार्वजनिक जीवन में असहज महसूस करना।। पडौसियों से संबंधों में कड़वाहट सी बनी रहती है।।

5 पंचम भाव में ये दोष होने पर संतान सुख कम ही मिलता है संतानों की परेशानी रह सकती है और व्यक्ति की अविवेकशीलता व गलत निर्णय क्षमता ही उसको दुखदाई होती है। कुल देवी-देवताओं का कोप भी रह सकता है।

6 छठे भाव में विष योग बना हुआ है तो व्यक्ति के अनावश्यक अनेक शत्रु बनते हैं । बीमारियां समझ में नहीं आती, और जीवनभर अक्सर कर्जदार रहता है। बीमारी व विवादों में धन और समय बर्बाद होता रहता है।

7 सप्तम स्थान में होने पर वैवाहिक जीवन में अक्सर असंतुष्टि, विवाद व तनाव रहता है। तलाक तक होने की स्थिति आ जाती है। विजिनिस पार्टनर से धोखे और जीविका में बदलाव होते रहते हैं ।।

8 अष्टम भाव में  विष योग व्यक्ति को मृत्यु तुल्य कष्ट देता है। दुर्घटनाएं बहुत होती हैं। ससुराल पक्ष से भी परेशान रह सकता है। छवी को खराब करने वाले आरोप भी लगते रहते हैं। गुप्त धन के चक्कर में भी बर्बाद हो सकता है।

9 नवम भाव में विष योग में व्यक्ति का भाग्य साथ नहीं देता है कठिन परिश्रम करने पर भी उचित अवसर नहीं मिलते। ऐसा व्यक्ति धर्म और कर्तव्यों के प्रति भी लापरवाह हो सकता है। प्रेतबाधा ग्रसित भी हो सकता है।

10 दशम भाव में विषयोग होने पर व्यक्ति के मान-प्रतिष्ठा में कमी रहती है अक्सर अपमान का शिकार भी होता है। राजदंड भी हो सकता है। कार्यशैली अक्सर डगमगाई रहती है। पिता या पैतृक संपत्ति से विवाद रह सकता है।

11 एकादश भाव में विष योग व्यक्ति को बार-बार दुर्घटना करवाता है। आय के साधन न्यूनतम होते हैं। बड़े भाई-बहनों से विवाद रहता है। इच्छाओं का अधिकतर दमन ही करना होता है।

12 द्वादश भाव में यह योग है तो सदैव आय से अधिक खर्च रहता है। सैया सुख भी न्यूनतम मिलता है। स्वास्थ्य भी अक्सर गड़बड़ रहता है ।।

          अधिक सूक्ष्म जानकारी व उपाय के लिए अपनी जन्मकुंडली किसी योग्य ज्योतिष विद्वान को दिखाकर ही उचित उपाय अवस्य कर लें क्योंकि…   कोई भी योग कितना और कब प्रभाव देगा….  ये सूक्ष्म ज्योतिष गणनाओं एवं विभिन्न लग्नों के आधार से ही समझा जाता है।  Vishadosh in kundali

वेदश्री ज्योतिष मार्गदर्शन whatsapp 7588363518

Janampatri-removebg-preview-min

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *