पन्ना रत्न का उगम स्थान और पन्ना रत्न धारण करने से क्या लाभ होगा जानिए?

पन्ना रत्न, पन्ना बुध ग्रह का प्रतिनिधि रत्न माना जाता है इसे विभिन्न नामों से पुकारा जाता है संस्कृत में इसे मर्कत, गरुडांकित, अस्मगर्भ, गोरुण, गरलारि तथा बुधरत्न नामों से, हिन्दी में पन्ना, मराठी में पांचू, बंगला में पाना गुजराती में पीलू, फारसी में जमुर्रद तथा अंग्रेजी में इसे एमराल्ड कहते हैं। पन्ना हरे तथा तोते की पंख के रंग का पत्थर पाया जाता है, इसी को पन्ना कहते हैं। पन्ना अति प्राचीन, बहुप्रचलित तथा मूल्यवान रत्न होता है। मूल्यवान रत्नों की श्रेणी में इसका तीसरा स्थान है।

पन्ना के प्राप्ति स्थान

सर्वश्रेष्ठ पन्ना उत्पादन का श्रेय भारत को ही है। अजमेर के करीबी क्षेत्रों में पन्ने की खानें हैं, जहां से विश्व का सर्वश्रेष्ठ पन्ना निकाला जाता है। भारत में ही भीलवाड़ा, छतरपुर, उदयपुर क्षेत्रों में भी पन्ने की कुछ छोटी-छोटी खानें हैं। मडागास्कर द्वीप, साइबेरिया, ब्राजील, कोलम्बिया, पाकिस्तान, अमरीका तथा अफ्रीका में भी पन्ने की खानें। हैं, जहाँ से पन्ना निकाला जाता है।

विशेषता एवं धारण करने से लाभ

पन्ना नेत्र रोग नाशक व ज्वर नाशक होता है। साथ ही पन्ना सन्निपात, दमा, शोथ आदि यानि शरीर में बल एवं वीर्य की वृद्धि करता है। पन्ने की प्रमुख विशेषता यह है कि पन्ना धारण करने से दोष नष्ट हो जाते हैं। इसके धारण करने से धारक की चंचल चित्त वृत्तियां शांत व संयमित रहती हैं तथा को मानसिक शांति प्राप्त होती है। इसके धारण करने से मन एकाग्र होता है। यह काम, क्रोध आदि विकारों को शांत कर धारक को असीम सुख शांत प्रदान करता है। इसीलिए ईसाई पादरी लोग प्रायः धारण किए रहते हैं।

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