जन्म कुंडली

विवाह कुंडली मिलान ओर शुभ मुहूर्त रावण संहिता: के अनुसार |

कालपुरुष के अंग, गठन और रंग का विचार


मनुष्यों के अंगों का विचार इस प्रकार से होता है-
सिर-मेष, मुख-वृष, दोनों भुजाएं और छाती मिथुन, हृदय-कर्क, उदर-सिंह,
कमर-कन्या, नाभि के नीचे यस्ति अर्थात् नाभि और लिंग के मध्य-तुला, लिंग-
गुदा-वृश्चिक, जंघा दोनों-धनु, घुटना-मकर, दोनों पिंडली-कुम्भ, दोनों चरण-मीन।
जैसे मेषादि राशियों से काल-पुरुष के शरीर के अंगों का विचार किया जाता है इसी
प्रकार द्वादश भाव से भी मनुष्य के अंगों का विचार किया जाता है।

प्रथम भाव-सिर, द्वितीय भाव-मुख, तृतीय भाव-दोनों भुजाएं और छाती,
चतुर्थ भाव-हृदय, पंचम भाव-उदर, षष्ठम भाव-कमर, सप्तम भाव-नाभि के नीचे
यस्ति नाभि और लिंग के मध्य का भाग, अष्टम भाव-लिंग और गुदा, नवम भाव-दोनों
जंघा, दशम भाव-घुटने, एकादश भाव-दोनों पिण्डलियां, द्वादश भाव-दोनों चरण।

गठन-कालपुरुष के गठन का ज्ञान नवमांश आदि द्वारा किया जाता है।
नवमांशाधिपति से अथवा जो ग्रह सबसे बलवान हो, उससे जातक के शरीर
की आकृति, गठन इत्यादि का ज्ञान होता है।

लग्न का नवांशपति रवि हो अर्थात् सिंह नवमांश में जन्म होने से अथवा रवि
के बलवान होने से जातक मोटे गठन का होगा।

कर्क के नवमांश में जन्म होने व चन्द्रमा के बली रहने से जातक उन्नत देह,
सुन्दर नेत्र, कृष्ण-वर्ण और कुछ-कुछ घुंघराले बालों वाला होता है।

मेष तथा वृश्चिक के नवांश में जन्म होने से किंचित् नाटा, नेत्र, पिंगल-वर्ण
और दृढ़ शरीर अर्थात् मजबूत गठन का होता है।

जन्म कुंडली
जन्म कुंडली

मिथुन और कन्या के नवांश में जन्म होने से कद मझोला, परन्तु आंख का कोना
लाल और शरीर की नसें निकली हुई प्रतीत होती हैं।

धनु और मीन के नवांश में जन्म होने से आंख किंचित् पिंगल-वर्ण, आवाज
खूब गम्भीर, वक्षस्थल तथा छाती खूब चौड़ी और ऊंची, परन्तु देखने में खूब ऊंचा
नहीं होता है। अर्थात् मझोला कद होता है।

वृष और तुला के नवांश में जन्म होने से भुजा लम्बी, मुख और गंड-देश स्थूल,
विलास-प्रिय, चंचल और सुन्दर नेत्र और पार्श्ववर्ती स्थान अर्थात् कंधों के नीचे का
भाग और पंजरा आदि स्थूल होता है।

मकर और कुम्भ के नवांश में जन्म होने से आंख का निम्न धंसा हुआ, शरीर
दुबला, आकृति में लम्बा और नस तथा नख स्थूल होते हैं। कमर से नीचे का भाग
प्रायः कृश होता है।

लग्न में यदि कोई ग्रह हो तो अथवा किसी ग्रह की पूर्ण दृष्टि हो तो उपर्युक्त
फलों में कुछ भेद पड़ जाता है। अर्थात् नवांशपति के अनुसार लग्न रहने पर भी लग्न
में जो ग्रह बैठा है अथवा लग्न को जो देखता है, उस ग्रह के प्रभाव का भी कुछ आभास
पड़ जाता है।

इसी प्रकार कुण्डली के किसी ग्रह का उच्च तथा बलवान होने के कारण उस
ग्रह का भी प्रभाव पड़ जाता है। परन्तु यदि कोई बली ग्रह इस लग्न में पड़ता हो तो
अथवा लग्न पर उसकी पूर्ण दृष्टि हो तो उस ग्रह का लक्षण विशेष रूप से जातक
के गठनादि में प्रतीत होता है।

जातक के रंग का विचार इस प्रकार होता है
मनुष्य के शरीर का रंग चन्द्रमा के अनुसार होता है। लग्ननवांश के अनुसार शरीर
की आकृति आदि होती है और चन्द्रमा जिस नवांश में होता है उसके अधिपति के
अनुसार जातक का रंग होता है। यह भी माना गया है कि जो ग्रह ठीक लग्न-स्फुट
के समीपवर्ती होता है, उसके अनुसार भी रंग में भेद-अभेद होता है।

चन्द्रमा यदि सिंह के नवांश में हो तो जातक का रंग श्यामवर्ण होगा पर यदि
कर्क के नवांश में हो तो गौरवर्ण होगा। चन्द्रमा यदि मेष और वृश्चिक के नवांश में
है तो जातक रक्त-गौर वर्ण का होगा। चन्द्रमा यदि मिथुन और कन्या के नवांश में हो
तो जातक कांचन वर्ण का होगा। चन्द्रमा यदि वृष और तुला के नवांश में हो तो जातक
का रंग श्यामवर्ण, परन्तु चित्ताकर्षक होगा। चन्द्रमा यदि मकर और कुम्भ के नवांश
में हो तो जातक का रंग काला होगा।

रवि लग्न में हो तो जातक ताम्र वर्ण होगा। चन्द्रमा लग्न में रहने से गौरवर्ण होगा
मंगल लग्न में हो तो रक्त-गौर वर्ण होगा। बुध लग्न हो तो श्यामवर्ण होगा अर्थात् काला
नहीं होगा। वृहस्पति लग्न हो तो जातक का रंग कांचन वर्ण और अत्यन्त चित्ताकर्षक
होगा। शुक्र लग्न में हो तो रंग गोरा रंग न होगा पर चित को आकर्षित करने वाला होगा
शनि लग्न में हो तो काला वर्ण होगा।
वाग्दान मुहूर्त-उत्तराषाढ़ा, स्वाति, श्रवण, तीनों पूर्वा नक्षत्र अनुराधा, धनिष्ठा,

कृतिका, रोहणी रेवती, मूल, मृगशिरा, मघा, हस्त, उत्तरा फाल्गुनी और उत्तरा भाद्रपद्
नक्षत्रों में वाग्दान (सगाई) करना शुभ है।

घर बैठे शादी विवाह के शुभ मुहूर्त निकालने का सटीक और आसान तरीका

मूल, अनुराधा, मृगशिरा, रेवती, हस्त, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा,
उत्तरा भाद्रपद, स्वाति, मघा, रोहणी इन नक्षत्रों में और ज्येष्ठ, माघ, फाल्गुन, बैशाख.
मार्गशीर्ष, आषाढ़ इन महीनों में विवाह करना शुभ है।

प्रत्येक पंचांग में विवाह के मुहूर्त लिखे रहते हैं।
विवाह में कन्या के लिए गुरुबल, वर के लिए सूर्यबल और दोनों के लिए
चन्द्रबल का विचार करना चाहिए।

गुरुबल विचार-वृहस्पति ग्रह कन्या की राशि से नवम, पंचम, एकादश,
द्वितीय और सप्तम, राशि से शुभ, दशम, तृतीय, षष्ठ और प्रथम राशि में दान देने से
शुभ होता है और चतुर्थ, अष्टम द्वादश में दान देने से अशुभ माना गया है।
सूर्यबल विचार-सूर्य ग्रह वर की राशि से तृतीय, षष्ठ, दशम, एकादश,
पंचम, सप्तम, नवम राशि में दान देने से शुभ और चतुर्थ, अष्टम, द्वादश राशि में अशुभ
माना गया है।

विवाह के समय चन्द्रबल विचार आपको अशुभ नाही है?

चन्द्रमा ग्रह वर और कन्या की राशि से तृतीय, षष्ठम,
सप्तम, दशम, एकादश शुभ तथा प्रथम, द्वितीय, पंचम, नवम दान देने से शुभ और
चतुर्थ, अष्ठम, द्वादश अशुभ होता है।

विवाह में अन्धा लग्न-दिन में तुला लग्न और वृश्चिक, लग्न राशि में तुला
लग्न और मकर लग्न बहिरें होते हैं तथा दिन में सिंह, मेष, वृष और रात्रि में कन्या,
मिथुन, कर्क अन्धा लग्न है। दिन में कुम्भ, रात्रि में मीन ये दो लग्न पंगु होते हैं।
किसी-किसी आचार्य के मत से धनु लग्न तुला, वृश्चिक ये दो अपराह्न में बधिर होते
हैं। मिथुन, कर्क, कन्या ये लग्न रात्रि में अन्धे हैं। सिंह, मेष, वृष ये लग्न दिन में अन्धे
हैं और मकर, कुम्भ, मीन ये लग्न प्रातःकाल तथा सायंकाल में कुबड़े होते हैं।

अन्धादि लग्नों का फल-यदि कन्या-वर का विवाह बहिरे लग्न में हो तो
वर-कन्या दरिद्र होते हैं। दिवान्ध लग्न में हो तो कन्या विधवा हो जाती है। रात्र्यन्ध
लग्न में हो तो संतान-मरण और पंगु लग्न में हो तो धन-नाश होता है।
विवाह में शुभ लग्न विचार-तुला, मिथुन, कन्या, वृष एवं धनु लग्न ये शुभ
होते हैं। अन्य लग्न मध्यम होते हैं।

विवाह में लग्न-शुद्धि-लग्न से द्वादश शनि, दशम मंगल, तृतीय शुक्र, लग्न
में चन्द्रमा और क्रूर ग्रह अच्छे नहीं होते हैं, लग्नेश शुक्र, चन्द्रमा षष्ठम और अष्टम
में शुभ नहीं होते हैं। ये दो ग्रह इन स्थानों में अशुभ होते हैं। लग्नेश और सौम्य ग्रह अष्टम
में अच्छे नहीं होते हैं और सप्तम स्थान में कोई भी ग्रह शुभ नहीं होता है।

ग्रहों का बल विवाह मेलान मे देखणं आवश्यक होता है |

प्रथम, चतुर्थ, पंचम, नवम और दशम स्थान में स्थित वृहस्पति
सब दोषों को नष्ट कर देता है। सूर्य एकादश स्थान में स्थित तथा चन्द्रमा वर्गोत्तम लग्न
में स्थित नवांश दोषों को नष्ट कर देता है। बुध लग्न चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम स्थान
में हो तो सौ दोषों को दूर कर देता है। यदि इन्हीं स्थानों में शुक्र हो तो दो सौ दोषों को
दूर करता है। यदि इन्हीं स्थान में वृहस्पति स्थित हो तो एक लाख दोषों को दूर करता
है। लग्न का स्वामी अथवा नवांश का स्वामी यदि लग्न, चतुर्थ, दशम, एकादश स्थान
में स्थित हो तो अनेक दोषों को शीघ्र भस्म कर देता है।

वधू प्रवेश मुहूर्त-विवाह

के दिन से सोलह दिन के भीतर नौ, सात, पांच दिन
में वधू का प्रवेश शुभ होता है। यदि किसी कारण से 16 दिन के भीतर वधू से प्रवेश
न हो तो विषम मास, विषम दिन और विषम वर्ष में वधू प्रवेश करना चाहिए।
दिन-तीनों (उत्तरा भाद्रपद, उत्तरा फाल्गुनी) रोहिणी, अश्विनी, पुष्य, हस्त,
चित्रा, अनुराधा, रेवती, मृगशिरा, श्रवण, धनिष्ठा, मूल, मघा और स्वाति, श्रवण में
नक्षत्र रिक्ता (4/9/14) को छोड़ करके शुभ तिथियों को और रविवार, मंगलवार,
बुधवार को छोड़ करके शेष वारों को वधू-प्रवेश करना चाहिए।

विवाह कुंडली मिलान ओर शुभ मुहूर्त रावण संहिता: के अनुसार | vivah milaan or muhurt vidhi

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