वास्तु शास्त्र

जानिए वास्तु शास्त्र नुसार दिशा निर्धारण का महत्त्व !!

जैसा की पूर्व में उल्लेखित है , वास्तुशास्त्र में दिशाओं के प्रभावों द्वारा मनुष्य के लिए उपयुक्त व अनुकूल आवास का निर्माण किया जाता है | वास्तु के अनुसार निर्मित भवन में विभिन्न दिशाओं के शुभ प्रभावों से सुरक्षित भी रहता है | वास्तु अनुरूप भवन का निर्माण पूर्णत : दिशाओं पर आधारित होता है | अत : वास्तु के सिधान्तो के प्रयोग के पूर्व दिशाओ का विस्तृत ज्ञान अत्यंत आवश्यक है |

निर्माण से पूर्व सर्वप्रथम भवन की योजना बनाई जाती है | भवन की योजना बनाने के पहले भूखण्ड की दिशाओं से परिचित होना आवश्यक है | भूखण्ड की दिशाओ से परिचित होने के लिए भूखण्ड पर दिशा निर्धारण किया जाता है | दिशा निर्धारण द्वारा ही यही पता चलता है की भूखण्ड के किस और और कौनसी दिशा है, और तब ही एक वास्तु अनुरूप भवन का निर्माण संभव है | दिशा निर्धारण हेतु जो प्रक्रियाए प्रचलित है , वे हैं –

1 .शंकु विधि , 2. कम्पास ( कुतुबनुमा ) विधि |

वास्तु शास्त्र

दिशा निर्धारण के पूर्व भूखण्ड को स्वच्छ करने के लिए भूखण्ड पर से कूड़ा-कचरा , जंगली पेड़-पौधे , गंदगी , कीचड़ इत्याद्दी हटा दिया जाए | फिर पानी का छिडकाव कर भूखण्ड को समतल बनया जाए | समतल करने के पश्चात भूखण्ड पर पुन: छिडकाव करे | अब यह भूखण्ड दिशा – निर्धारण के लिए तैयार है |

1. शंकु विधि वास्तू शास्त्र मे शकू मूल्य मापन कैसे होता है ?

शंखु एक प्रकार का छोटा स्तंभ अथवा कांटा होता है | प्राचीनकाल में इसका उपयोग समय जानने के लिए किया जाता था | शंकु को जमीन पर स्थापित कर इसकी छाया का निरिक्षण किया जाता है | छाया के निरिक्षण के निष्कर्ष से दिशा अथवा समय का ज्ञान हो जाता है | शंकु आकार के आधार पर तीन प्रकार के होते है |

अ . दीर्घ दीर्घ शंकु

दीर्घ शंकु24 अंगुल ( 18 इंच )
शीर्ष का व्यास2 अंगुल ( 1.5 इंच )
इसके आधार का व्यास6 अंगुल ( 4.5 इंच )

दीर्घ शंकु की लम्बाई 24 अंगुल ( 18 इंच ) के बराबर होती है | इसके आधार का व्यास 6 अंगुल ( 4.5 इंच ) तथा शीर्ष का व्यास 2 अंगुल ( 1.5 इंच ) होता है |

ब . मध्यम

मध्यम शंकु की लम्बाई 18 अंगुल ( 13.5 इंच ) , आधार का व्यास 5 अंगुल ( 3.75 इंच ) तथा शीर्ष का व्यास 2.95 से.मी होता है |

मध्यम शंकु की लम्बाई18 अंगुल ( 13.5 इंच )
आधार का व्यास5 अंगुल ( 3.75 इंच )
शीर्ष का व्यास2.95 से.मी

क . लघु

इसकी लम्बाई 12 अंगुल ( 9 इंच ) , आधार का व्यास 11 . 7 से.मी तथा शीर्ष का व्यास 1.65 से.मी होता है | इनमे से किसी भी आकार के शंकु का उपयोग दिशा निर्धारण के लिए किया जा सकता है | विशुद्ध दिशा निर्धारण के लिए उपर्युक्त माप का पालन करना आवश्यक है | शंकु बनाने के लिए सामान्यतः लकड़ी का उपयोग किया जाता है | बबूल , सागी , चंदन आदि वृक्षों की लकड़ी शंकु – निर्माण हेतु उपयुक्त मानी गई है |

इसकी लम्बाई 12 अंगुल ( 9 इंच ) , आधार का व्यास 11 . 7 से.मी तथा शीर्ष का व्यास 1.65 से.मी होता है | इनमे से किसी भी आकार के शंकु का उपयोग दिशा निर्धारण के लिए किया जा सकता है | विशुद्ध दिशा निर्धारण के लिए उपर्युक्त माप का पालन करना आवश्यक है | शंकु बनाने के लिए सामान्यतः लकड़ी का उपयोग किया जाता है | बबूल , सागी , चंदन आदि वृक्षों की लकड़ी शंकु - निर्माण हेतु उपयुक्त मानी गई है |

शंकु द्वारा दिशा निर्धारण

भूखण्ड – दिशा निर्धारण के एक दिन पहले, पूर्व में उल्लेखित विधि द्वारा, भूखण्ड़ को स्वच्छ कर ले। स्वच्छ भूखण्ड पर निम्नलिखित विधि का पालन करें।

  • 1. सर्वप्रथम भूखण्ड का केन्द्र बिंदु निर्धारित करें। केन्द्र बिन्दु निर्धारित करने हेतु यह प्रक्रिया अपनाई जा सकती है- भूखण्ड के विपरीत कोण को जोड़ने वाली दो विकर्ण रेखाएँ बनाएँ । भूखण्ड के विपरीत कोणों के बीच एक डोरी अथवा रस्सी की सहायता से सरल रेखा बनाई जा सकती है। ये विकर्ण रेखाएँ जिस बिन्दू पर एक दूसरे को काटती हैं वह भूखण्ड का केन्द्र बिन्दु है ।
  • 2. भूखण्ड के केन्द्र बिन्दु को वृत्त का केन्द्र मानकर, शंकु की लम्बाई से दुगुनी त्रिज्या का एक वृत्त बनाएँ । त्रिज्या के बराबर लम्बाई वाली डोरी की सहायता से यह वृत्त भूखण्ड पर बनाया जा सकता है।
  • 3. प्रातः काल सूर्योदय से पहले केन्द्र बिन्दु पर शंकु को मजबूती से स्थापित कर दें ।
  • 4. जैसे-जैसे सूर्य ऊपर चढ़ेगा, वैसे-वैसे शंकु की छाया के आकार तथा स्थिति में परिवर्तन होगा। दोपहर का वह समय जब सूर्य शीर्ष पर होता है। (लगभग 12 बजे ) इस समय में शंकु की छाया का सूक्ष्मता से निरीक्षण करें। जिस बिन्दु पर शंकु की छाया हो उस बिन्दु को उत्तर के रूप में चिन्हित करे ले। अब शंकु को उठा ले तथा भूखण्ड के केन्द्र बिन्दु को दक्षिण के रूप में चिन्हित करें। इन दो बिन्दुओं को एक सरल रेखा द्वारा जोड़ दे। यह रेखा-उत्तर-दक्षिण रेखा है। जैसा कि चिन्हित किया गया है, इस रेखा के एक ओर उत्तर तथा दूसरी ओर दक्षिण दिशा है।
  • 5. उत्तर-दक्षिण रेखा पर एक लम्ब का निर्माण करे । लम्ब बनाने के लिए यांत्रिकी कोणमापक (इंजीनियरिंग प्रोट्रेक्टर) का उपयोग किया जा सकता है। यांत्रिकी कोणमापक को उत्तर-दक्षिण रेखा पर स्थित करें तथा रेखा के मध्य बिन्दु पर 90° के कोण का निर्माण करें। 90° कोण वाली यह रेखा उत्तर-दक्षिण रेखा के लम्बवत होगी।
  • 6. लम्बवत् रेखा के दो अंत बिन्दु प्राप्त होंगे। उत्तर दिशा के दाँए ओर स्थित अंत बिन्दु को पूर्व दिशा के रूप में चिन्हित करें तथा बाएँ ओर स्थित अंत बिन्दु को पश्चिम के रूप में। इस प्रकार जो रेखाएँ प्राप्त हुई हैं। वे पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण दिशाओं को दर्शाती है ।
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  • 7. इन रेखाओं के 45° कोण पर दो और रेखाओं का निर्माण करे। 45° कोण पर बनाई गई इन रेखाओं के अंत बिन्दुओं को इस प्रकार चिन्हित करें।
  • उत्तर व पूर्व के बीच स्थित अंत बिन्दु को उत्तर-पूर्व दिशा ।
  • उत्तर व पश्चिम के बीच स्थित अंत बिन्दु को उत्तर-पश्चिम दिशा ।
  • दक्षिण व पश्चिम के बीच स्थित अंत बिन्दु को दक्षिण-पश्चिम दिशा ।
  • दक्षिण व पूर्व के बीच स्थित अंत बिन्दु को दक्षिण-पूर्व दिशा । .

कम्पास (दिशासूचक) द्वारा दिशा निर्धारण

दिशा निर्धारण का सरल व शुद्ध तरीका है दिशासूचक द्वारा दिशा निर्धारण। दिशासूचक का उपयोग अत्यंत प्राचीनकाल से होता आ रहा है। समुद्री यात्राओं में दिशा निर्धारण हेतु दिशासूचक ही एकमात्र साधन था । आधुनिक काल में समुद्री यात्राओं, हवाई यात्राओं, युद्ध क्षेत्र आदि में दिशा ज्ञात करने हेतु दिशा-सूचक का ही उपयोग होता है। दिशा सूचक में एक चुम्बकीय सुई एक अक्ष पर स्थापित होती है। यह सुई अपने अक्ष पर सरलता से घूम सकती है। चुम्बकीय सुई सदा उत्तर-दक्षिण दिशा में ही ठहरती है। अतः दिशासूचक की सुई भी सदा उत्तर-दक्षिण दिशा की ओर संकेत देती है। दिशासूचक की सुई के दोनों सिरों पर उत्तर अथवा दक्षिण चिन्हित होता है। इसके अतिरिक्त चुम्बकीय सुई के लम्बवत् पूर्व-पश्चिम दिशा भी स्पष्ट अंकित होती है। इन चारों दिशाओं के 45° मध्य में शेष चार दिशाएँ, उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम भी अंकित होती है। अतः दिशासूचक द्वारा किसी भी स्थान पर आठों दिशाएं सरलता से ज्ञात की जा सकती है। भवन निर्माण हेतु चयनित भूखण्ड पर भी दिशा सूचक द्वारा दिशा निर्धारण किया जा सकता है। स्वच्छ किए हुए भूखण्ड के केन्द्र बिन्दु पर दिशासूचक को रख दें। दिशा सूचक की चुम्बकीय सुई को स्थिर अवस्था में आने तक प्रतीक्षा करें। दिशा सूचक की सुई जिस दिशा में ठहरी है वही उत्तर-दक्षिण रेखा है। भूखण्ड की अन्य दिशाओं का निर्धारण भी दिशा सूचक के अनुसार हो जाएगा।

दिशा निर्धारण किया जा सकता है। स्वच्छ किए हुए भूखण्ड के केन्द्र बिन्दु पर दिशासूचक को रख दें। दिशा सूचक की चुम्बकीय सुई को स्थिर अवस्था में आने तक प्रतीक्षा करें। दिशा सूचक की सुई जिस दिशा में ठहरी है वही उत्तर-दक्षिण रेखा है। भूखण्ड की अन्य दिशाओं का निर्धारण भी दिशा सूचक के अनुसार हो जाएगा।

भूखण्ड के मानचित्र को कागज पर निर्मित कर लें। भूखण्ड का मानचित्र सदा भूखण्ड के नाप से अनुपात में बनाया जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी भूखण्ड का नाप 50 फिट x 40 फिट है तो जब इस भूखण्ड का चित्र कागज पर उकेरा जायेगा तो उस चित्र का आकार भूखण्ड के आकार के अनुपात में अर्थात 50 से.मी. x 40 से.मी बनाया जा सकता है। इसके अलावा अन्य कोई आधार भी सुविधानुसार लिया जा सकता है। अब भूखण्ड पर ज्ञात दिशाओं को नक्शे पर निशान लगाकर दर्शायें। अब नक्शे को इस प्रकार रखें कि उसमें दिखाई लम्बाई-चौड़ाई भूखण्ड की लम्बाई-चौड़ाई की सीध मे हो ।

दिखाए गए चित्र में उत्तर दिशा नक्शे की एक रेखा के बीच में है। यह कहीं भी हो सकती है। सभी स्थितियों में यह विधि समान रूप से काम करेगी। नक्शे के केन्द्र से उत्तर दिशा की ओर बिन्दुदार रेखा खीचे जो नक्शे की रेखा तक जाये । प्रत्येक दिशा 45° की होती है। चित्र में दिखाई गई बिन्दुदार रेखा उत्तर दिशा के कोण के ठीक बीच में है और 45° के कोण को दो 22.5° के कोणों में बांटती है। इसलिए इस बिन्दुदार रेखा से 22.5° का कोण बनाना होता है। इसके लिए नक्शे के केन्द्र पर चांदे का केन्द्र रखें और चांदे की आधार रेखा बिन्दुदार रेखा से मिलायें । अब यहां पर 22.5° का कोण बनायें।

अब बिन्दुदार रेखा को रबर से मिटा देना है। बचे सारे कोण भी 450 के होंगे। तब प्राप्त चित्र नीचे दिखाए चित्रं जैसा होगा । ब्रह्म स्थान बनाने के लिए प्रत्येक रेखा के तीन बराबर भाग करना होता है। हर रेखा पर बिन्दु लगाकर उसके भागों को अलग-अलग दर्शाएं।

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अब प्रत्येक रेखा के बिन्दुओं को चित्र में दिखाए गये तरीके से मिलाने पर ब्रह्म स्थान बन जाएगा । यदि यह तरीका बहुत कठिन लगता है तो इसी तरीके के एक वृत्त को आठ भागों में विभाजित करे लें।

अब इस वृत्ताकार चित्र की फोटोकॉपी किसी पारदर्शी फिल्म पर कर लें। उस फिल्म की सहायता से किसी भी भूखण्ड के नक्शे पर आठ दिशाएं बनाई जा सकती है।

नक्शे के केन्द्र से उत्तर दिशा की ओर एक बिन्दुदार रेखा खीचें जो नक्शे के आखिरी सिरे तक जाये। अब इस वृत्त के केन्द्र को भूखण्ड के केन्द्र पर इस प्रकार रखे की वृत्त की बिन्दुदार रेखा, भूखण्ड की बिन्दुदार रेखा के ठीक उपर हो। नीचे के चित्र में इसे दर्शाया गया है। अब इसके तीर वाले स्थानों पर बिन्दु लगा दें और आमने सामने के बिन्दुओं को मिलाती हुई रेखा खींच दे। इस प्रकार किसी नक्शे में आठों दिशाओं को आसानी से बनाया जा सकता है | अब अन्त में ब्रम्ह स्थान बना दिया जाये |

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