जानिए आपकी रशिअनुसार गुरु भगवान का आपकी कुंडली में क्या फल है ?

मेष : –

`मेष राशी का स्वामी मंगल होता है | गुरु व मंगल नैसर्गिक मित्र है इसलिए मेष राशी गुरु की मित्र राशी होगी | गुरु के मेष राशी के स्थित होने से जातक क्षमावान व तेजस्वी होता है | जातक आपने गुणों के कारन कीर्ति व प्रसिद्धि प्राप्त करता है | जातक उदार , सुकर्म करने वाला , धनवान तथा विचार पूर्वक कार्य करने वाला होता है | जातक नितिज्ञ , विवेकी , दानी, धार्मिक एव बुद्धिमान होता है | जातक विजय व सफलता प्राप्त करता है | जातक को अच्छे सहयोगी व कुशल सेवक मिलते है |

वृषभ : –

वृषभ राशी का स्वामी शुक्र है | गुरु देवताओ के गुरु है व शुक्र एक दुसरे के विपरीत दल में है | किन्तु दोनों शुभ व श्रेष्ट ग्रह है इसलिए गुरु के वृषभ राशी में स्थित होने से जातक अत्यंद उदार, परम बुद्धिमान , सम्पतीशाली , तेजस्वी एव क्षमाशील होता है| जातक विजयी, न्यान प्रिय एव यशस्वी भी होता है | जातक अपने कर्त्तव्य का पालन करता है | जातक सद्गुणों से परीपूर्ण होता है | जातक के अनेक मित्र होते है | जातक ब्राम्हणों और देवताओ की भक्ति पूर्वक पूजा करता है |

मिथुन : –

मिथुन राशी का स्वामी बुध है | बुध गुरु से समता का भाव रखता है इसलिए गुरु के मिथुन पर स्थित होने से जातक प्रतिष्ठा प्राप्त करता है एव सुखी होता है | जातक मधुरभाषी, पवित्र , निष्कपट एव शील स्वभाव का होता है | जातक कांतिमान, सर्व प्रिय एव चतुर स्वभाव का होता है | जातक के अनके मित्र एव पुत्र होते है एव उसका बड़ा परिवार होता है | जातक निति निपुण व्यपार से लाभ प्राप्त करने वाला होता है |

कर्क : –

कर्क राशी का स्वामी चन्द्रमा है | कर्क राशी में गुरु उच्च का होता है | गुरु व चन्द्रमा दोने ही सौम्य ग्रह है इसलिए गुरु के कर्क राशी में स्थित होने से जातक को पूर्ण रूप से शुभ फल की प्राप्ति होती है | जातक का सुंदर शरीर होता है | जातक सुकार्य करने वाला , गुणों से संपन्न , मीठी बातो से दुसरे को वश में करने वाला एव सज्जन होता है | जातक सदाचारी , ऐश्वर्यवान , शास्त्रों एव गूढ़ विद्यायो का ज्ञाता होता है | जातक दयालु एव कला प्रेमी भी होता है | जातक सत्यवादी एव समाज सुधारक होता है | अपनी सज्जनता , उदार चरित्र सदाचार एव विद्वता से जातक महाशय व प्रसिद्धि प्राप्त करता है |

सिंह : –

सिंह राशी का स्वामी सूर्य है | सूर्य एव गुरु नैसर्गिक मित्र है इसलिए सिंह राशी में गुरु स्थित हो तो जातक चतुर , उदार एव भाग्यशाली होता है | जातक उच्च पद को प्राप्त करता है | जातक न्यायवान , परोपकारी तथा कार्यकुशल होता है | जातक धर्म के प्रति आस्था रखता है एव पुण्यात्मा होता है | जातक अपने शत्रुओ पर विजय प्राप्त करता है | प्राय: जातक सबसे मित्रता व स्नेह रखता है |

कन्या : –

कन्या राशि का स्वामी बुध है। बुध गुरू से समता का भाव रखता है इसलिए गुरु के कन्या राशि पर स्थित होने से जातक विद्वान, सहनशील एवं सुखी होता है। जातक स्वभाव से चंचल होता है। जातक भोग विलास में व्याप्त रहता है। चित्रकला में जातक की विशेष रूचि होती है। जातक प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। ऐसा जातक व्यापार से यश तथा लाभ पाने वाला होता है।

तुला : –

तुला राशि का स्वामी शुक्र है। बृहस्पति देवताओं के गुरू है व शुक्र दैत्यों के गुरू है। इस आधार पर गुरू व शुक्र एक दूसरे के विपरित दल में है। किंतु दोनों शुभ व श्रेष्ठ ग्रह है इसलिए गुरु के तुला राशि में स्थित होने से जातक सुंदर शरीर वाला होता है। जातक बुद्धिमान व सुखी होता है। जातक का शरीर स्वस्थ्य होता है। जातक के अनेक मित्र होते है। जातक को पुत्र का सुख प्राप्त होता है। जातक की कविता, लेखन एवं संपादन में रूचि होती है। जातक व्यापार में भी कुशल व सफल होता है। जातक व्यवहार कुशल, प्रसन्नचित्त तथा सम्मान प्राप्त करने वाला होता है। जातक सुपुत्रों से युत, जप, हवन, यज्ञ आदि उत्सव मनाने वाला ब्राह्मणों एवं देवताओं का पूजक, दानी तथा चतुर प्रवृत्ति वाला है।

वृश्चिक : –

वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल होता है । मंगल व गुरू नैसर्गिक मित्र है इसलिए वृश्चिक राशि में गुरू मित्र राशि का होता है जिसके प्रभाव से जातक कार्यकुशल होता है। जातक अभिमानी, उदार, तेजस्वी एवं शास्त्रज्ञ होता है। जातक पुण्य कर्म करने वाला होता है। जातक धन, स्त्री व पुत्रों का सुख प्राप्त करता है। जातक क्षमा करने वाला व दानी होता है। जातक के अनेक सेवक होते है।

धनु : –

धनु राशि का स्वामी स्वयं गुरू है। धनु राशि में 13 अंश तक मूलत्रिकोण का रहता है। 13 अंश से 30 अंश तक गुरु धनु राशि में स्वराशि का होता है। धनु राशि में स्थित गुरू के शुभ प्रभाव से जातक रूपवान व मनोहर होता है। जातक धर्म को प्रचारित करता है व धर्माचार्य होता है। जातक उच्च पद को प्राप्त करता है व धनवान होता है। जातक दंभी व चतुर भी होता है। जातक दानी, प्रभावशाली. दार्शनिक एवं उच्च विचारों वाला होता है ।

मकर : –

मकर राशि का स्वामी शनि है बृहस्पति शुभ व सतगुण वाला ग्रह है जबकि शनि क्रूर व तामसिक प्रवृति का ग्रह है। मकर राशि में गुरु नीच का होता है इसलिए वह क्षीण होने के कारण शुभ प्रभाव नहीं दे पाता | गुरु के मकर राशि पर होने से जातक चचंल होता है। जातक को सुख की प्राप्ति नहीं हो पाती है। जातक का परिश्रम व्यर्थ जाता है। जातक को धन जमा करने में कठिनाई होती है एवं प्रायः जातक धनहीन होता है। जातक बुद्धिहीन, अपव्ययी तथा दुःखी होता है। जातक भ्रष्ट बुद्धि से युक्त, सदैव दूसरों के लिए कार्य करने वाला होता है। ऐसा जातक स्त्री के अधीन रहते हुए स्त्री व पुत्र को कष्ट देने वाला होता है।

कुंभ : –

कुंभ राशि का स्वामी शनि है। बृहस्पति शुभ व सतगुण वाला ग्रह है जबकि शनि क्रूर व तामसिक प्रवृत्ति का ग्रह है। गुरु के कुंभ राशि पर होने से जातक का शरीर दुर्बल होता है। जातक रोगी, दुर्बुद्धि, दरिद्र एवं देवताओं की निंदा करने वाला होता है। जातक धनहीन, चिंतायुक्त एवं अच्छे कर्मों से विमुख होता है। ऐसा व्यक्ति स्त्री के अधीन रहने वाला तथा निर्दित स्त्री से प्रेम करने वाला होता है। जातक कपटी व डरपोक स्वभाव का भी होता है ।

मीन : –

मीन राशि का स्वामी स्वयं गुरू होता है। गुरू मीन राशि में स्वराशि का होगा। गुरु के मीन राशि में स्थित होने से जातक शास्त्रों का ज्ञाता होता है। जातक दूसरों के प्रति दया का भाव रखता है । जातक व्यवहार कुशल व बुद्धिमान होता है। जातक स्वभाव से शांत व संतुष्ट होता है। जातक राजमान्य व उच्च पद को प्राप्त करता है। साहित्य, लेखन व शास्त्रों के अध्ययन में जातक की विशेष रूचि होती है। जातक प्रसन्नचित रहता है एवं भाग्यशाली होता है।

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