shani dev kundali

ग्रहोका स्वरूप एवं स्वभाव

व्यक्ति पर ग्रह-क्षेत्र का प्रभाव किंवा शुभाशुभ परिणाम पर विस्तृत विवेचन
करने से पूर्व ग्रहों के स्वरूप का ज्ञान होना आवश्यक है, क्योंकि जब तक किसी वस्तु
के स्वरूप का ज्ञान नहीं होगा तब तक उसके सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का
विचार-विनिमय केवल अन्धकार में अटकलें लगाने के समान होगा। अतः पाठकों
के जन्मकुण्डली सम्बन्धी ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र को पूर्ण रूपेण परिपुष्ट करने के विचार
से हम यहां ग्रहों के स्वरूप का वर्णन करते हैं।


1. सूर्य का स्वरूप-सूर्य सुदृढ़, गठीला तथा शक्तिशाली वर्गाकार स्वरूप का
है। इसका रंग (वर्ण) साधारणतः लाल किन्तु कहीं-कहीं इसका वर्ण श्याम काला
भी माना गया है। इसके नेत्रों का रंग मधु के समान है। इसके शरीर पर बाल अपेक्षाकृत
न्यून परिमाण में है। यह अत्यन्त चमकीला किंवा प्रतिभा-सम्पन्न हैं इसकी प्रकृति
पित्तज है।
सूर्य का स्वभाव-सूर्य का स्वभाव सात्त्विक है, इसकी विचारधारा प्रायः
आध्यात्मिक विषयों की ओर अधिक प्रभावित रहती है, सत्साहित्य तथा उच्च
अभिलाषाप्रिय है।
2. चन्द्रमा का स्वरूप-चन्द्रमा संचारशाली, कोमल वाणी वाला तथा सुन्दर
नेत्रों वाला है। इसके शरीर का गठन भी दर्शनीय है तथा अंग-प्रत्यंग पुष्ट है। इसका
आकार गोल है। इसकी आकृति कफज तथा वातज है।
चन्द्रमा का स्वभाव-चन्द्रमा का स्वभाव राजसिक है, इसकी विचारधारा
चंचल, अविश्वासी और असंतुष्ट है, प्राकृतिक दृश्यों तथा आमोद-प्रमोद की ओर यह
विशेष रूप से आकृष्ट रहता है। इसकी प्रकृति ठंडी या आलसी है यह भावुक, साहित्य
प्रेमी तथा संगीत प्रेमी है।
3. मंगल का स्वरूप-मंगल का शरीर लाल रंग का है, वैसे वह गौर वर्ण है।
इसकी कमर पतली है। इसकी दृष्टि क्रूर है। यह भी प्रतिभा-सम्पन्न है। इसकी प्रकृति
पित्तज है।
मंगल का स्वभाव-मंगल स्वभाव में राजसिक और तामसिक प्रकृति का
अद्भुत शक्ति वाला ग्रह है, साधारणतः यह प्रधान है इसे अपने शक्ति का सदैव
अभिमान रहता है। प्रवासी जीवन और पर्यटन इसे विशेष रुचिकर है। ऐश्वर्य और नेतृत्व
इसकी प्रकृति के प्रधान अंग हैं। उदार, दानी, निडर, सन्तोषी और सच्चा साथी है।
किन्तु सफलता में बाधा उत्पन्न करता है।
4. बुध का स्वरूप-बुध के शरीर का रंग दूध के समान है। इसका शरीर कुश
है। इसकी वाणी स्पष्ट है। इसकी प्रकृति कफज है।
बुध का स्वभाव-बुध का स्वभाव राजसिक है। यह श्रमशील, वाचाल,
चंचल, बुद्धिमान तथा आशावादी है। यह सदैव सावधान और चौकन्ना रहता है। यह
दूरदर्शी है। चतुर वक्ता और व्यायाम प्रेमी है। कुशल प्रबन्धकर्ता है। 5. बृहस्पति का स्वरूप-वृहस्पति के शरीर का रंग पीत है, इसका शरीर
आकार में लम्बोदर तथा स्थूल है। नेत्रों का रंग भी पीत है। इसकी प्रकृति कफज है।
बृहस्पति का स्वभाव-बृहस्पति का स्वभाव सात्विक है। यह अत्यन्त बुद्धिमान,
शुभराज चिह्नों में सम्पन्न तथा वैभवशाली है। इसकी मनोवृत्ति कोमल अर्थात् उदार है
और प्रायः सभी को समान दृष्टि से देखता है।
6. शुक्र का स्वरूप-शुक्र का वर्ण श्याम (काला), इसके केश घुंघराले हैं।
अंग-प्रत्यंगों का गठन सुन्दर तथा सुडौल है। नेत्र दर्शनीय हैं। इसकी प्रकृति भी कफज
है।
शुक्र का स्वभाव-शुक्र के स्वभाव में रजोगुण प्रधान है। यह सदैव प्रसत्र रहने
वाला तथा दूसरों को भी प्रसन्न रखने वाला है। प्राकृतिक दृश्य, मनोवृत्ति कोमल तथा
ललित कलाओं का विशेष प्रेमी है। यह काम कला में प्रवीण है, जिसके परिणामस्वरूप
स्वभावतः ही कामोत्तेजक रमणियों के प्रति अत्यधिक आकृष्ट रहता है।
7. शनि का स्वरूप-शनि का शरीर कृश है, इसका वर्ण काला है अंग-प्रत्यंग
कठोर हैं। इनके दांत आकार में बड़े हैं। नेत्र सुन्दर किन्तु पीतवर्ण हैं। इसकी वाणी
कर्कश तथा कठोर है, इसकी प्रकृति भी कफज है।
शनि का स्वभाव-शनि देव स्वभावतः ही तमोगुणी होता है। इसका स्वभाव
गम्भीर और कल्पना-शक्ति प्रबल है। यह शक्तिशाली, धैर्यवान, कट्टर धार्मिक तथा
विद्या व्यसनी है, किन्तु सहनशीलता तो उसे छू तक नहीं गई अत्यन्त उग्र है। ये शंकालु
हैं तथा स्वच्छता की ओर तनिक भी ध्यान नहीं देते।
8. राहु का स्वरूप-राहु केवल मस्तक ही मस्तक है-हाथ-पैर, धड़ आदि
अंग-प्रत्यंग कुछ भी नहीं हैं। यों तो श्यामवर्ण है तथा पुष्ट है। इसकी दृष्टि भी क्रूर है।
राहु का स्वभाव-राहु का स्वभाव तामसिक है। यह ऐश्वर्य प्रेमी तथा शक्तिशाली
है। इसकी इच्छा-शक्ति अत्यन्त प्रबल है तथा दुस्साहसी भी। यह परले सिरे का है।
वैसे यह कठोर और श्रमशील है।
9. केतु का स्वरूप-केतु के मस्तक नहीं है केवल हाथ-पैर, जानु, कटि,
उदर, पीठ तथा वक्षस्थान हैं यों तो यह श्याम वर्ण तथा सुदृढ़ है। अंग-प्रत्यंगों की गठन
सुन्दर तथा सुडौल है।
केतु का स्वभाव-केतु का स्वभाव भी तमोगुणी है। यह शक्ति-सम्पन्न और
नेतृत्व की अभिलाषा वाला है। इसकी विचार-शक्ति दृढ़ है तथा धैर्य असीम है।
आमतौर पर राशियों के स्वामी होते हैं और उस स्वामी का निवास-स्थान
दिशाओं की ओर इंगित करता है। अगर आप निम्नांकित राशियों में आते हैं तो उस दिशा
की तरफ मुख करके लाभ उठा सकते हैं। कोई कार्य आप अपने भाग्यशाली दिशा
से शुरू करें तो व्यवधान भी समाप्त हो जाएगा।1


राशियों के लिंग

1. मेष
2 मिथुन
3. सिंह
4. तुला
– ये पुरुष राशियां हैं
5. धनु
6. कुम्भ
7. वृष
8. कर्क
9. कन्या
10. वृश्चिक
11. मीन
12. मकर
– ये स्त्री राशियां हैं


राशियों, ग्रहों, नक्षत्रों के आधार पर रत्न का प्रयोग करना चाहिए। वैसे रत्न अनेक
प्रकार के होते हैं, परन्तु उनमें चौरासी प्रकार के रत्न मुख्य माने जाते हैं और उन रत्नों
में नवरत्न प्रमुख होते हैं। जिनका सम्बन्ध विशेष ग्रहों से होता है अर्थात् कुछ विशेष
प्रकार के रत्नों में भिन्न-भिन्न ग्रहों के राशियों को आत्मसात् करने की शक्ति विद्यमान
है। इन रत्नों को जब मनुष्य अपने शरीर पर धारण करता है तब वे अपने माध्यम से
ग्रहों की राशियों को मानव-शरीर में प्रविष्ट कर देते हैं। जिसके फलस्वरूप रत्न धारण
करने वाला मनुष्य उससे सम्बन्धित ग्रहों के शुभ प्रभाव का पर्याप्त लाभ उठाने लगता
है जैसा कि कहते हैं कि Stone for Madicien.


1. सूर्य-सूर्य के लिए माणिक धारण किया जाता है। इसे सोने अथवा तांबे की
अंगूठी में रविवार के दिन, पूर्व दिशा की तरफ मख करके जब पष्य नक्षत्र, कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, ॐ घृणी सूर्याय नमः मंत्र का 6000 जप करके उस दिन
प्रातः सूर्योदय से 10 बजे के बीच जड़वाकर दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली में
सूर्य की पूजन के उपरान्त धारण करना चाहिए।

2. चन्द्रमा-चन्द्रमा के लिए मोती धारण किया जाता है। इसे चांदी की अंगूठी
में सोमवार के दिन जब पुष्य नक्षत्र हो तब सूर्योदय 9 बजे से पूर्व ॐ सो सोमाय नमः
मंत्र का 11,000 जप करके दाहिने या बायें हाथ की कनिष्ठा उंगली में उत्तर दिशा
की तरफ मुख करके धारण करना चाहिए।

3. मंगल-मंगल के लिए मूंगा धारण किया जाता है। इसे मंगलवार के दिन
मेष या वृश्चिक राशि पर चन्द्रमा अथवा मंगल हो और उसी दिन मृगशिरा, चित्रा या
घनिष्ठा नक्षत्र हो तब सूर्योदय से प्रातः 11 बजे के बीच ॐ अं अंगारकाय नमः मंत्र
का 11,000 की संख्या में जप करके सोने की अंगूठी में जड़वाकर दाहिने-बायें हाथ की
अनामिका अंगुली में पूर्व या दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके धारण करना चाहिए।

4. बुध-बुध के लिए पन्ना धारण किया जाता है। इसे बुधवार के दिन जब
अश्लेषा, ज्येष्ठा, तथा रेवती नक्षत्र हो उस दिन सूर्योदय से 12.30 बजे तक सोने की
या कांसे की अंगूठी में जड़वाकर ॐ बु बुधाय नमः मंत्र का 8,000 की संख्या में
जप कर दाहिने या बाएं हाथ की कनिष्ठा उंगली में पश्चिम की तरफ मुख करके
धारण करें।

5. गुरु-गुरु के लिए पुखराज धारण किया जाता है। गुरुवार के दिन जब पुष्य
नक्षत्र हो तब सूर्योदय से 8.30 बजे तक सोने की अंगूठी में जड़वाकर दाएं हाथ की
तर्जनी या बायें हाथ की तर्जनी या दाहिने हाथ की अनामिका उंगली में ॐ बृं
बृहस्पतये नमः
मंत्र का 19,000 की संख्या में जप करके पूर्व दिशा की तरफ मुख
करके धारण करना चाहिए।

6. शुक्र-शुक्र के लिए हीरा धारण किया जाता है। वृष, तुला अथवा मीन राशि
पर जब शुक्र हो अथवा भरणी, पूर्वाफाल्गुनी या पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र हो तब प्रातः काल से
लेकर 10 बजे तक सोने की अंगूठी या सोना, चांदी, तांबा में जड़वाकर तर्जनी या
अनामिका अंगुली में ॐ शुं शुक्रायः नमः मंत्री 16,000 जप करके पश्चिम-दक्षिण
दिशा मुख करके धारण करना चाहिए।

7. शनि-शनि के लिए नीलम धारण किया जाता है। जब मकर या कुम्भ में
शनि हो या शनिवार को उत्तराषाढ़ा, श्रावण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, चित्रा, स्वाति नक्षत्र
हो तब पंचधातु, फौलाद या सोने की अंगूठी में दाहिने या बाएं हाथ की मध्यमा उंगली
में ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का 23,000 की संख्या में जप करके पश्चिम दिशा
की तरफ मुख करके धारण करना चाहिए।

8. राहु-राहु के लिए शोमेदक धारण किया जाता है। इसे स्वाति, शतभिषा या
आर्द्रा नक्षत्र वाले दिन प्रातः 10 बजे तक पंचधातु या लोहे की अंगूठी में जड़वाकर
दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में ॐ शं राहवे नमः मंत्र का 18,000 की संख्या में
जप करके धारण करना चाहिए।

9. केतु-केतु के लिए लहसुनियां धारण किया जाता है। जब मेष, मीन या धनु
का चन्द्रमा हो या अश्विनी मघा, मूल नक्षत्र हो या शनिवार, बुधवार को 5 से 8 बजे सायं
के बीच लोहे या पंचधातु में जड़वाकर बायें हाथ की कनिष्ठा अंगुली में धारण करना चाहिए।

  1. ↩︎

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