व्रत और उपवास मे क्या अंतर है

अच्छी सेहत के लिए कितना अहम है उपवास, जानें इसके फायदे

upavas उपवास

उपवास

जब हम सोते हैं तब हृदय के अतिरिक्त शरीर के सभी अंग विश्राम करते हैं। लेकिन हमारा पेट ही विश्राम नहीं करता विश्राम के पश्चात् स्फूर्ति प्राप्त होती है जिससे हमें अधिक काम करने का प्रोत्साहन मिलता है। यदि हम अपने पेट को भी आराम देना शुरू कर दें तो हम हमेशा निरोग रहेंगे। इस छोटे से गुरु मंत्र से हम कितने निरोगी होंगे इसका अनुमान वही लगा सकता है जो पहले रोगी रहा हो।

वैसे तो यदि हम विभिन्न पुस्तकें पढ़ें तो देखेंगे कि हर व्रत की अपनी महिमा है। वास्तव में हमारा निजी अनुभव यह है कि व्रत का लाभ ऐसे ही सुनिश्चित है जैसे सूर्य का निकलना। लेकिन हम इसे व्रत का नाम न देकर उपवास का नाम दे रहे हैं। हमारा उद्देश्य पाचन प्रणाली को विश्राम करवाना है। यदि हमने इसको भी विश्राम देने की अच्छी आदत डाल ली तो औषधि की आवश्यकता शायद ही कभी पड़ें। उपवास करने की परंपरा भारत में इतनी ही प्राचीन है जितना भारतीयों का इतिहास हमारे वैज्ञानिकों ने सभी प्रयोगों के पश्चात विभिन्न औषधियों का निर्माण किया था। सभी वैद्य या डॉक्टरों को ज्योतिष की शिक्षा अनिवार्य थी। थोड़े समय पश्चात भारत में ही नहीं पूरे विश्व

में ज्योतिष के वैज्ञानिक आधार पर चिकित्सा प्रारंभ हो जायेगी। हमारे शास्त्रों में विभिन्न समय पर इतने व्रत बता दिये हैं कि यदि हम उसकी सूची देखें तो व्रतों की संख्या वर्ष के दिनों की संख्या से अधिक हो जायेगी। यहां हम उपवास की बात कर रहे है हमारा आधार स्वास्थ्य लाभ और व्यक्ति को निरोग करना है। अतएव व्यक्ति को प्रति सप्ताह एक दिन का उपवास अवश्य करना चाहिए। वह यदि इस उपवास को किसी देवी या देवता के नाम पर व्रत की तरह करे तो सोने पर सुहागा वाली बात चरितार्थ होगी। भारत के विभिन्न भागों में नवरात्र जो अप्रैल तथा सितंबर में आते हैं तब बहुत ही लोग व्रत करते हैं। मुसलमान रोजा रखते हैं। ये व्रत की श्रृंखला में आते हैं। इसका उद्देश्य धर्म होता है। हमारा उद्देश्य निरोगता है। भोजन प्राणिमात्र के अस्तित्व के लिए आवश्यक है इसलिए उपवास प्रकृति के विपरीत प्रतीत होते हैं, परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। मानव शरीर पर उपवास की क्या प्रतिक्रिया होगी इसका वैज्ञानिकों ने पहले भी अनुभव किया था और अब और प्रयोगों के पश्चात उन्होंने पाया कि इसके लाभ ही लाभ हैं।

उपवास का शब्दिक अर्थ भोजन का पूर्ण रूप से या आशिक रूप से त्याग। कुछ लोग व्रत में जल भी ग्रहण नहीं करते तथा एक समय भोजन करते हैं। किंतु वैज्ञानिक दृष्टि से जल का ग्रहण करना उपवास में अति आवश्यक है। पातंजलि के योग सिद्धांतों में भी उपवास की महत्ता को स्वीकारा गया है। विनोबाजी भी उपवास किया करते थे।

जो भोजन हम ग्रहण करते हैं वह सीधे हमारे शरीर का भाग नहीं बन पाते। शरीर में मुंह से लेकर मल द्वार तक एक लम्बी नली पाई जाती है। जब भोजन आहार नाल में धीरे-धीरे आगे बढ़ता है तो इसमें पाचक एंजाइम मिलते हैं। पाचक रसों के प्रभाव से भोजन के प्रमुख अंश विलेय अवस्था में आ जाते हैं। जब भोजन आहार नाल के छोटी आंत वाले भाग में पहुंचता है तो भोजन के विलेय अंश अवशोषित कर रक्त में मिला दिये जाते हैं। शेष भाग, मलाशय में मल के रूप में एकत्रित हो जाता है।

छोटी आंत की भीतरी भित्ती में विशिष्ट प्रकार की रचनाएं पाई जाती हैं जिन्हें सूक्ष्मांकुर कहते हैं। भोजन के पचे हुए भाग को अवशोषित कर उसे रुधिर में मिलाने का कार्य ये ही सूक्ष्मांकुर करते हैं। जब ये वृद्ध हो जाते हैं तो कार्य क्षमता में क्षीणता आ जाती है। अंत में ये कोशिकाएं मर जाती है और उनके स्थान पर नई कोशिकाएं बन जाती हैं। प्रतिस्थापन की इस प्रक्रिया में शरीर को बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। उपवास के कारण जीर्ण कोशिकाओं को ही पुनः प्रभावकारी बना दिया जाता है तथा आराम मिलने के कारण आहार नाल की अवशोषण प्रक्रिया ठीक रहती है।

व्रत और उपवास मे क्या अंतर है

उपवास हमारे शरीर की एंजाइम प्रणाली को सक्रिय बनाता है। पाचन क्रिया के फलस्वरूप भोजन की अतिरिक्त मात्रा को ग्लाइकोडीन व वसा बदल कर शरीर में एकत्रित किया जाता है। जब शरीर को भोजन नहीं मिलता तो यकृत में संग्रहीत ग्लाइकोडीन व वसा को ग्लूकोज में बदल कर शरीर की ऊर्जा आपूर्ति को बनाए रखा जा सकता है। ग्लाइकोडीन व वसा को ग्लूकोज में बदलने की क्रिया एक विशिष्ट एंजाइम तंत्र द्वारा संपन्न होती है। उपवास करते रहने पर यह सक्रिय बना रहता है। उपवास न करने की स्थिति में यह तंत्र धीरे-धीरे निष्क्रिय हो जाता है। उपवास के बाद प्रीनि ओप्लास्टिक कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। इन कोशिकाओं को ही कैंसर कोशिकाओं में बदलने की संभावना होती है।

उपवास के समय प्रातः दूध ले सकते हैं और दिन भर पानी पीते रहे। उपवास में पानी पीना अति आवश्यक है। पानी के पीने से शरीर के अंदर के विजजातीय द्रव्य मूत्र की सहायता से बाहर निकलते रहते हैं और जिससे निरोग रहता है। इससे पाचन प्रणाली को भी आराम मिलता है।

शक्ति

सांयकाल फलाहार किया जा सकता है और दो या तीन फल मिलाकर लिए जा सकते हैं लेकिन फलों की मात्रा भी अधिक न हो जैसे दो केले एक संतरा या आधा सेब। इससे विजातीय द्रव्य भी बाहर निकल जाते हैं। और जो अतिरिक्त वसा हमारे शरीर में एकत्रित होती है वह भी उपवास के कारण आहिस्ता-आहिस्ता समाप्त होने लगती है जिससे शरीर धीरे-धीरे निरोग होने लगता है।

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